नई दिल्ली। साल 2004 के ओलंपिक्स में भारत के लिये नया इतिहास लिखा जा चुका था और भारतीय दल शूटिंग में अपना पहला पदक हासिल कर चुका था, जिसने कई और निशानेबाजों को ओलंपिक में गोल्ड पर निशाना लगाने का सपना आंखों में दे दिया। एथेंस ओलंपिक्स में अभिनव बिंद्रा ने क्वालिफाई किया था लेकिन जीत से चूक गये। अभिनव बिंद्रा ने इसके बाद हार नहीं मानी और अगले ओलंपिक्स के लिये पहले दिन से ही तैयारियांं शुरू कर दी।
अभिनव बिंद्रा ने ओलंपिक से लौटने के बाद कोच हेंज रिंकीमियर और गेब्रियल बुहल्मन की देख रेख में अपनी शूटिंग को बेहतर बनाने के लिये जर्मनी के डोर्टमेंट में काफी लंबा समय बिताया। इसके बाद बिंद्रा कोच यूवे रिस्तेर से मिलने के लिये म्यूनिख गये जहां पर उन्होंने अपनी आशंकाओं का समाधान किया और बड़े मंच पर प्रदर्शन करने का हुनर सीखा।
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इतना ही नहीं बिंद्रा ने एंकल बूट पहनकर शूटिंग एरिया में चलना और ओलंपिक फाइनल की कई मॉक रिहर्सल किया। अपने निशाने को बेहतर करने के लिये ओलंपिक से कुछ हफ्ते पहले अभिनव बिंद्रा ने कमांडो के अंदर ट्रेनिंग ली। अभिनव बिंद्रा जब बीजिंग पहुंचे तो उन्हें विश्वास था कि वो इस बार गोल्ड मेडल पर निशाना लगाने वाले हैं।
कॉमनवेल्थ गेम्स में 4 बार के गोल्ड मेडल विजेता अभिनव बिंद्रा ने बिना किसी परेशानी के लिये बीजिंग ओलंपिक्स के लिये क्वालिफाई कर लिया। फाइनल्स में जब अभिनव बिंद्रा पहुंचे तो उन्हें साइटिंग टाइम में परेशानी का सामना करना पड़ा। साइटिंग टाइम वो समय होता है जहां पर निशानेबाज को 5 मिनट का समय दिया जाता है जिसमें वो फाइनल से पहले राइफल की जांच करने के लिये शूट करते हैं। इस दौरान अभिनव बिंद्रा की राइफल की शूट डिवाइस बंद थी और आखिरी वक्त में उससे निपटने के लिये बदल दिया गया।
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जैसे ही फाइनल राउंड शुरू हुआ अभिनव बिंद्रा ने पहले ही शॉट में बेहतरीन निशाना लगाया और क्वालिफिकेशन स्टेज में टॉप पर रहने वाले फिनलैंड के हेनरी हेक्किनन के साथ आखिरी शॉट तक बराबरी की, आखिरी शॉट में हेक्किनन 9.7 स्कोर ही कर सके लेकिन अभिनव बिंद्रा ने आखिरी शॉट में लगभग 10.8 का स्कोर किया।
अभिनव बिंद्रा ने 2004 एथेंस ओलंपिक के स्वर्ण पदक विजेता झू किनन को पीछे छोड़ते हुए 10 मीटर पुरुष एयर राइफल को 700.5 के स्कोर के साथ पूरा किया, झू किनन को सिल्वर मेडल से ही संतोष करना पड़ा। इस जीत के साथ ही अभिनव बिंद्रा ने राहत की सांस ली और कहा कि 4 साल से की जा रही मेरी लगातार मेहनत का फल आखिरकार मिल ही गया।