ओलम्पिक पदक जीतने वाले पिता-पुत्र
एक समय ऐसा भी था जब भारतीय खिलाड़ी तफरीह के लिए ओलम्पिक खेलने जाते थे। 1976, 1984, 1988 और 1992 के ओलम्पिक में भारत को एक भी पदक नहीं मिला था। 1996 में लिएंडर पेस ने भारत को खाली हाथ लौटने की शर्मिंदगी से बचा लिया। 49 सदस्यीय ओलम्पिक दल में केवल लिएंडर पेस ही पदक जीत पाये थे। लिएंडर पेस 17 साल की उम्र में जूनियर विम्बलडन प्रतियोगिता जीत कर चर्चा बटोर चुके थे। जूनियर लेवल पर वे कुछ दिनों तक दुनिया के नम्बर एक खिलाड़ी भी रहे थे। लिएंडर पेस के पिता वेस पेस भारत के मशहूर हॉकी खिलाड़ी थे। 1972 के म्यूनिख ओलम्पिक में भारत ने हॉकी का कांस्य पदक जीता था। उस भारतीय टीम में वेस पेस भी शामिल थे जो मिडफिल्डर (मध्य पंक्ति का खिलाड़ी) थे। इस तरह पिता और पुत्र ने ओलम्पिक का कांस्य पदक जीत कर एक दुर्लभ कीर्तिमान बनाया।
अटलंटा में पेस का सुहाना सफर
टेनिस के एकल मुकाबले में लिएंडर पेस का भले बहुत नाम न था लेकिन वे मजबूत इरादों के साथ कोर्ट में उतरे। उनक पहला मैच अमेरिका के रिची रेनबर्ग से था। रेनबर्ग एक समय दुनिया के 20वें नम्बर के खिलाड़ी रह चुके थे। 1995 में उन्होंने जेरे पाल्मर के साथ मिल कर आस्ट्रेलियन ओपन का युगल खिताब जीता था। लेकिन पेस ने अपने से ज्यादा अनुभवी इस अमेरिकी खिलाड़ी को 6-7, 7-6 के साथ जोरदार टक्कर दी। तीसरे सेट में अभी स्कोर 1-0 ही था कि रेनबर्ग इंजुरी के चलते मैच से बाहर हो गये। किस्मत ने पेस के लिए जीत का दरवाजा खोल दिया। उनका दूसरा मैच वेनेजुएला के निकोलस परेरा से था। उन्होंने परेरा को आसानी से 6-3, 6-3 से हरा दिया। अब तीसरे मुकाबले में उनके सामने थे दुनिया के नम्बर दस और प्रतियोगिता के नम्बर तीन सीड थॉमस एंक्विस्ट। अधिकतर लोग यही मान रहे थे कि अब पेस का सफर खत्म होने वाला है। लेकिन पेस इस बात से बिल्कुल नहीं घबराये कि उनके सामने कौन सा दिग्गज खड़ा है। जोरदार मुकाबला हुआ। पेस ने इस स्विडिश खिलाड़ी को 7-5, 7-6 से हरा कर सबको हैरान कर दिया।
लिएंडर पेस ओलम्पिक सेमीफाइनल में
तीन मुकाबले जीत कर लिएंडर पेस क्वार्टर फाइनल में पहुंचे। पेस का मुकाबला इटली के रेंजो फरलेन से हुआ। फरलेन 1996 में दुनिया के 19वें नम्बर के खिलाड़ी थे। प्रतियोगिता में उन्हें 12वीं सीड हासिल थी। लेकिन पेस ने फिर कमाल का खेल दिखाया। उन्होंने फरलेन को 6-1, 7-5 से हरा कर सेमीफाइल में प्रवेश किया। सेमीफाइनल में उन्हें प्रतियोगिता के नम्बर एक खिलाड़ी आंद्रे अगासी से भिड़ना था। अगासी तब दुनिया के नम्बर तीन खिलाड़ी थे। इतने बड़े खिलाड़ी के सामने भी पेस ने शानदार खेल दिखाया। पहले सेट को टाइब्रेकर तक ले गये। लेकिन आखिरकार वह 6-7 से सेट हार गये। दूसरे सेट में अगासी ने पेस की एक न चलने दी और 6-3 से मुकाबला जीत लिया। अगासी फाइनल में पहुंचे और फिर स्वर्ण पदक भी जीता। अब पेस को कांस्य पदक के लिए ब्राजील के फर्नांडो मेलिगेनी से भिड़ना था।
ऐसे मिला कांस्य पदक
फर्नांडो मेलिगेनी ब्राजील के मूल ओलम्पिक टीम में शामिल नहीं थे। एक खिलाड़ी के बीच प्रतियोगिता में हट जाने से मेलिगेनी स्थानापन्न प्रतियोगी के रूप में शामिल किया गया था। अटलांटा ओलम्पिक में उन्हें कोई सीड हासिल न थी। लेकिन वे चार मैच जीत कर सेमीफाइनल में पहुंचे थे। सेमीफाइनल में बाएं हाथ से खेलने वाले मेलिगेनी का मुकाबला स्पेन के सर्गेई ब्रुगुएरा से हुआ। सर्गेई ने यह मुकाबला 7-6.6-2 से जीत कर फाइनल में जगह बनायी। अब कांस्य पदक के लिए लिएंडर पेस और फर्नांडो मेलिगेनी आमने सामने थे। भारत की सारी उम्मीदें पेस पर टिकी थीं। 44 साल बाद भारत का कोई खिलाड़ी व्यक्तिगत स्पर्धा में पदक जीतने के दरवाजे पर खड़ा था। मैच शुरू हुआ तो पेस पहला सेट 3-6 से हार गये। एकबारगी जैसे लगा कि भारत के करोड़ों खेल प्रेमियों की उम्मीदों पर पानी फिरने वाला है। वर्षों से जिस ख्वाब को लोग देख रहे थे अब वो टूटने वाला है। लेकिन तभी लिएंडर पेस ने अपनी सारी ताकत बटोर कर पलटवार किया। दूसरा सेट 6-2 से और तीसरा सेट 6-4 से जीत कर कांस्य पदक पर कब्जा जमा लिया। पूरे भारत के लिए यह गौरवपूर्ण क्षण था। पदकों का सूखा समाप्त होने पर देशवासी खुशी से झूम रहे थे।