नई दिल्ली। दुनियाभर में देश का नाम रौशन करने वाला एक बॉक्सर आज पाई-पाई को तरस रहा है। वो उस पहचान को तरस रहा है जो सालों पहले उसने खो दी थी। आर्मी में अपनी सेवा दे चुके नेशनल लेवल बॉक्सर और मेडलिस्ट लाखा सिंह आज एक गाड़ी चलाते हैं। उन्होंने देश के लिए कई मेडल्स जीते हैं लेकिन एक हादसे ने उनकी जिंदगी हमेशा-हमेशा के लिए बदल के रख दी। अब वो सरकार और आर्मी से मदद की गुहार लगा रहे हैं।
लाखा सिंह ने 19 साल की उम्र में आर्मी ज्वाइन की थी। आर्मी में रहते हुए उन्होंने बॉक्सिंग में कई मेडल जीते। उन्होंने 1994 में एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल, हीरोशीमा एशियाड में 81 किलो कैटेगरी में ब्रॉन्ज और तश्केंट में बॉक्सिंग चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता था। वो 1996 के अटलांटा ओलंपिक्स में भारत के मजबूत दावेदार माने जा रहे थे लेकिन वो इसमें गोल्ड मेडल जीतने में नाकाम रहे। सिंह का प्रदर्शन एशियाई लेवल पर काफी अच्छा चल रहा था।
सब कुछ सही चल रहा था तभी 1998 का वो दिन आया जब सिंह ने ऐसा कदम उठाया कि आर्मी ने उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया। सिंह बॉक्सर दिपेंद्र थापा के साथ अमेरिका में वर्ल्ड मिलिट्री चैंपियनशिप में हिस्सा लेने जा रहे थे। तभी टेक्सस एयरपोर्ट पर सिंह थापा के साथ फरार हो गए जिसके बाग आर्मी ने उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया। ऐसी खबरें आई थीं कि दोनों अमेरिका में रहकर बॉक्सिंग का करियर बनाना चाहते हैं।
बतौर लाखा सिंह थापा ने उन्हें कहा था कि वो कुछ दोस्तों से मिलेंगे। इसके बाद दोनों एक गाड़ी में बैठे और कुछ ड्रिंक्स लीं। लाखा को इसके बाद जब होश आया तो वो एक कमरे में बंद थे। वो करीब एक महीने तक इस कमरे में बंद रहे और इसके बाद उन्हें यहां से बाहर निकाल दिया गया। अमेरिका में उनका वीजा एक्सपायर हो चुका था और वो वहां किसी को नहीं जानते थे। भारत लौटने के लिए टिकट का जुगाड़ करने में उन्हें 8 साल का लंबा वक्त लग गया। पैसे जोड़ने के लिए उन्होंने गैस स्टेशन से लेकर रेस्टोरेंट तक में काम किया।
लाखा सिंह भारत आने के बाद से कठिनाई का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। वो एक कार चला कर अपनी जिंदगी जी रहे हैं। इस कार से उन्हें केवल 8,000 की कमाई होती है। लाखा सिंह ने सरकार और आर्मी से मदद की गुहार लगाई है।
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