पाकिस्तान का उतावलापन और आपा खो देना-
अगर हम एक सरसरी नजर डालकर देखें, तो यह बात तय है कि विश्व कप में भारत के खिलाफ खेलते हुए प्रैशर हैंडल करना पाकिस्तानियों की तुलना में भारतीयों को अधिक आता है। पाकिस्तान ने भारत की तुलना में कहीं अधिक उतावलापन विश्वकप में दिखाया है। यह बात ना केवल पाकिस्तान के फैंस पर लागू होती है बल्कि विश्व कप का मुकाबला खेल रहे पाकिस्तानी खिलाड़ियों पर भी पूरी तरह लागू होती है जिसके चलते कई बार मैन टू मैन बेहतर टीम होने के बावजूद पाकिस्तान ने विश्वकप में भारत से मुंह की खाई है।
इस इतिहास की नींव ही उतावले पन से भरी गई है। जी हां, 1992 विश्व कप भारत ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 49 ओवर में 7 विकेट के नुकसान पर 216 रन बनाए थे जिसका पीछा करते हुए पाकिस्तान ने जल्दी से दो विकेट गंवा दिए लेकिन उसके बाद जावेद मियांदाद और आमिर सौहेल अड़ गए इसके चलते भारतीय खेमे में तनाव होना लाजिमी था और विकेट के पीछे कीपिंग कर रहे किरण मोरे ने मियांदाद को स्लेजिंग करना शुरू कर दिया। यहां पर बेहद आराम से बैटिंग कर रहे मियांदाद अपने ऊपर नियंत्रण नहीं रख सके और अपना आपा खो बैठे।
इस मुकाबले में एक भारत-पाकिस्तान मैच की एक चर्चित याद भी शामिल है जब मियांदाद ने बंदर की तरह उछल उछल कर किरण मोरे के सामने अपना आपा खोया। जाहिर है मियांदाद का ध्यान भंग हो गया था और वे संयम नहीं रख सके। आखिरकार उनको अपना विकेट गंवाना पड़ा जिसके चलते बाद में पाकिस्तानी बल्लेबाजी कॉलेप्स हो गई थी।
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दंभ के ऊपर दबाव, यानी दोहरी खामी-
पाकिस्तान की बॉलिंग अटैक को खास पसंद करने वाले भारत के पूर्व ओपनिंग बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग ने भी इसी तरह की कुछ बात कही है। सहवाग ने हाल ही में एक बयान दिया है जिसमें उन्होंने कहा है कि पाकिस्तान पक्ष की ओर से हमेशा बड़े बयान आते हैं जिसके चलते वे भारत के खिलाफ मुकाबले में पहले ही खुद को दबाव में डाल लेते हैं जबकि भारत ऐसा नहीं करता है क्योंकि वह अपनी तैयारियों पर अधिक ध्यान देते हैं।
हम खुद जानते हैं 1996 के मुकाबले में आमिर सोहेल ने भी वेंकटेश प्रसाद की गेंदबाजी पर जबरदस्ती का दबाव अपने ऊपर ले लिया था और प्रसाद को आराम से चौके लगाने के बावजूद आमिर सोहेल की भारत पर हावी होने की मंशा उनको ले डूबी थी। वे अगली ही गेंद पर क्लीन बोल्ड हो गए थे और यहां से पाकिस्तान के विकेट लगातार गिरते जा रहे थे।
ये उतावलापन और दंभ दिखाने के उदाहरण हैं। लेकिन इन सब चीजों से जो दबाव आता है उसको हैंडल करना भी पाकिस्तान के बस में नहीं है और यह बात हमको 1999 का विश्व कप बता देता है। इस विश्व कप में भारत ने पहले बल्लेबाजी करते हुए केवल 287 रन बनाए थे और पाकिस्तान की टीम इसको बनाने में भी सक्षम नहीं रही थी। लो स्कोरिंग मैच में पाकिस्तान की लगातार हार दिखाती है कि वह भारत के मैच को ही अपने लिए अपने करियर का करो या मरो मरो का मुकाबला मान लेते हैं जिनके जिनके चलते बहुत बड़े बड़े बल्लेबाज भी उस दबाव को सहने में कामयाब नहीं होते।
2000 के दशक में भारतीय टीम की मूल सोच का बदलना-
अब आगे की कहानी थोड़ी अलग है क्योंकि पाकिस्तान ने भी तीन विश्व कप हार के बाद समझना शुरू कर दिया था कि भारत के खिलाफ केवल दबाव लेने से ही कुछ नहीं होगा बल्कि तैयारियां भी अपनी जगह होती है और दूसरी ओर भारतीय टीम अब मेन टू मेन लेवल पर धीरे-धीरे बेहतर होती जा रही थी। 90 के दशक के डरी हुई भारतीय टीम सौरव गांगुली की कप्तानी में अपने खोल से बाहर आने लगी थी और विपक्षी धुरंधरों की आंख में आंख मिलाकर मुकाबले जीतने का हुनर दिखाना शुरू कर चुकी थी।
कुछ ऐसी ही जीत की कहानी बयान करती है 2003 विश्व कप की भारत विजय जहां टीम इंडिया ने सेंचुरियन में हुए विश्वकप मुकाबले में पाकिस्तान को 6 विकेट से हराया था। पाक ने पहले बैटिंग करते हुए 273 रनों का अच्छा स्कोर खड़ा किया था लेकिन भारत ने इस लक्ष्य को भी हासिल कर लिया था क्योंकि यह वह टीम नहीं थी जब सचिन तेंदुलकर आउट हो जाते थे तो भारत ढह जाता था बल्कि अब टीम इंडिया के पास सौरव गांगुली की कप्तानी में मोहम्मद कैफ, राहुल द्रविड़ और युवराज सिंह जैसे भरोसेमंद मध्यक्रम के बल्लेबाज थे।
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भारत में महान कप्तानों का दौर शुरू-
भारत को पाकिस्तान के खिलाफ मुकाबले जिताने में कप्तानी और कप्तान की चतुराई भरी रणनीतियों का अहम योगदान रहा। पाकिस्तान के पास महान कप्तानों का दौर अब खत्म हो चुका था जबकि भारत के महान कप्तानों का दौर शुरू होने लगा था। सौरव गांगुली के बाद महेंद्र सिंह धोनी कप्तान के तौर पर नियुक्त हुए और 2007 विश्व कप में जब टी-20 प्रारूप सामने आया तो यह दोनों ही टीमों के लिए बिल्कुल नया था।
भारत पाकिस्तान ने पहला मुकाबला टाई किया लेकिन किसी को यह नहीं पता था कि बॉल आउट में किस तरह की रणनीति अपनानी है और यहां पर धोनी ने वाकई में चतुराई दिखाई और धीमें गेंदबाजों जैसे कि हरभजन सिंह रोबिन उथप्पा और वीरेंद्र सहवाग को लगाया जिन्होंने अच्छी तरह से स्टंप को हिट किया जबकि पाकिस्तान के खिलाड़ी ऐसा नहीं कर पाए। वे स्टंप पर बॉल मारने के लिए तरस गए। यहां ना केवल प्रेशर को हैंडल करने में भारत बेहतर रहा बल्कि कप्तान ने बहुत अच्छी चतुराई भी दिखाई।
नॉक-आउट मैच- बड़ी अपेक्षाएं, अप्रत्याशित नतीजें-
पाकिस्तान दबाव में अभी भी लगातार बिखर रहा था क्योंकि इसी विश्वकप के फाइनल मुकाबले में मिस्बाह उल हक फिर अपनी टीम को लगभग जीत की स्थिति तक ले गए थे लेकिन यहां से उनको एक ऐसी हार मिली जो शायद विश्व कप में पाकिस्तान को सबसे दुखाने वाली हार कही जा सकती है। जब सब कुछ सही जा रहा था तो मिस्बाह ने दबाव में बिखर कर एक स्कूप शॉट खेल दिया और जोगिंदर की गेंदबाजी पर श्रीसंत का वह कैच कौन भूल सकता है जिसने भारत को पहला विश्व कप चैंपियन ही बना दिया। इस मुकाबले में भारतीय गेंदबाजी ने उसको नहीं जिताया बल्कि एक बार फिर से पाकिस्तान अपनी नसों पर काबू नहीं रख पाया था।
एक और नॉक-आउट मुकाबला हमने विश्व कप 2011 में देखा। जहां पाकिस्तान की टीम भारत के 260 रनों के लक्ष्य का भी पीछा नहीं कर पाई थी। यह सब बातें दिखाती है कि पाकिस्तानियों के लिए कई बार भारत के खिलाफ मुकाबला लार्जर दैन लाइफ का मामला बन जाता है जबकि खेल के मैदान पर चीजें इस तरीके से काम बिल्कुल भी नहीं करती है। खेल में भावनाएं केवल आपको अच्छा प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं लेकिन जरूरत से ज्यादा भावनाएं और जोश आपकी परफॉर्मेंस का बेड़ा गर्क भी कर देता है।
2010 के बाद दोनों देशों के अंदरुनी हालात अलग-
पाकिस्तान की आगे की हार को दो देशों के अंदरुनी हालातों के अंतर से भी समझा जा सकता है। धीरे-धीरे पाकिस्तान का क्रिकेट भारत की तुलना में बहुत ही कमजोर होता जा रहा था क्योंकि दुनिया का कोई भी देश श्रीलंका की बस पर हुए आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान में आकर खेलना नहीं चाहता था और पाक के पास अच्छा घरेलू ढांचा भी मौजूद नहीं था जबकि दूसरी और भारत में आईपीएल की सफलता हर साल नया आसमान चूमती जा जारी थी जिसके चलते बहुत शानदार खिलाड़ी भारतीय टीम के पास आने लगे थे।
यही वजह थी कि भारत 2012 के टी20 विश्व कप में पाकिस्तान को बहुत आसानी से हरा गया।
टी20 की ही बात करें तो ढाका में 2014 T20 वर्ल्ड कप में यह टीमें फिर से भिड़ी और यहां पर धोनी ने चतुराई भरी कप्तानी का एक बार फिर से मुशायरा पेश किया जब ढाका की घूमती हुई पिच पर उन्होंने अमित मिश्रा, रविचंद्रन अश्विन, रवींद्र जडेजा और युवराज सिंह जैसे खिलाड़ियों को उतारा जबकि पाकिस्तान की टीम जुनैद खान उमर गुल और बिलावल भट्टी जैसे सीमरों के साथ ही जूझती रही।
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पिछले 10 सालों में टी20 में भारत ओवरऑल रिकॉर्ड में बेहतर-
कुछ ऐसे ही परिणाम हमको 2015 विश्व कप में भी देखने को मिले। 2016 में T20 वर्ल्ड कप में भी यही हाल देखने को मिला। T20 वर्ल्ड कप अब फिर शुरू हो चुका है और एक बार फिर से भारतीय टीम जीत के दावेदार है।
अगर पिछले 10 सालों में टी20 फॉर्मेट की बात करते हैं तो भारत और पाकिस्तान दोनों ने इस फॉर्मेट में बेहतर प्रदर्शन किया है लेकिन ओवरऑल रिकॉर्ड में भारत फिर भी थोड़ा आगे निकल जाता है क्योंकि पाकिस्तान ने पिछले एक दशक में 129 टी-20 मुकाबले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेले हैं जिसमें 77 में उसे जीत मिली है जबकि 45 में हार मिली है, दो मुकाबले टाई हैं और पांच मुकाबलों का कोई नतीजा नहीं मिला, जीत का प्रतिशत 59.7 रहा है जो कि अच्छा ही माना जाएगा। लेकिन, भारत ने इसी अवधि में 63.50% जीतें हासिल की हैं।