नई दिल्ली। खेल के मैदान पर अक्सर ऐसे अजूबे देखने को मिलते हैं जिनके बारे में लोगों को तब पता चलता है जब उनके हाथ में सफलता का परचम होता है। आज हम ओलंपिक के योद्धाओं को समर्पित अपने कैंपेन ग्लोरी ऑफ इंडिया में उस खिलाड़ी की कहानी लेकर आये हैं जिसने बॉक्सिंग के खेल को सिर्फ इस वजह से चुना ताकि उसे सरकारी नौकरी मिल सके, हालांकि किस्मत को शायद कुछ और मंजूर था। हम बात कर रहे हैं बॉक्सिंग में भारत को इकलौता पदक दिलाने वाले भारतीय बॉक्सर विजेंदर सिंह की जो साल 2004 में पहली बार ओलंपिक का हिस्सा बने थे। एक इंटरव्यू के दौरान विजेंदर सिंह ने अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए कहा था कि जब मैने बॉक्सिंग शुरू की तो मैं सिर्फ इस वजह से ओलंपिक में खेलना चाहता था क्योंकि मुझे एक सरकारी नौकरी की तलाश थी, मुझे नहीं पता था कि ओलंपिक किस स्तर का खेल है, बस इतना पता था कि अगर यहां पर भारत को रिप्रजेंट किया तो सरकारी नौकरी जरूर मिल जायेगी।
विजेंदर कुमार ने अपने इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए साल 2003 के एफ्रो एशियन गेम्स में जीत हासिल कर एथेंस में होने वाले 2004 ओलंपिक्स के लिये क्वालिफाई कर लिया। हालांकि 2004 ओलंपिक्स के पहले ही राउंड में विजेंदर का सफर खत्म हो गया जब तुर्की के मुस्तफा कारागोल ने उन्हें हराया।
विजेंदर कुमार ने एथेंस ओलंपिक्स को याद करते हुए कहा कि जब तक मैं वहां पहुंचा नहीं था मुझे ज्यादा पता नहीं था लेकिन वहां पहुंचने के बाद जब भीड़ देखी तो समझ आया कि वह कितना बड़ा मंच है। एरेना को देखकर मैं हैरान रह गया। मेडल सेरेमनी के दौरान जब लाइटवेट वर्ग के 4 विजेता मैंने पोडियम पर खड़े देखे तो समझ आया कि वहां खड़ा होना कितना सुकून देता है।
ओलंपिक से वापस आने के बाद विजेंदर सिंह को नॉर्थ वेस्टर्न रेलवे में सरकारी नौकरी तो मिल गाई लेकिन अब उनका लक्ष्य बदल गया था। विजेंदर की आंखों में अब उस पोडियम पर खड़े होकर तिरंगा लहराने का सपना हर रोज छलांगे मार रहा था। विजेंदर सिंह ने फिर से ट्रेनिंग में ध्यान लगाया और 2006 के एशियन गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर अपनी काबिलियत साबित की। इसके तुरंत बाद ही विजेंदर सिंह ने 2006 के कॉमनवेल्थ गेम्स और 2007 की एशियन बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में सिल्वर मेडल जीता।
विजेंदर सिंह के प्रदर्शन को देखकर लग रहा था कि वो आसानी से बीजिंग ओलंपिक्स के लिये 75 किग्रा भारवर्ग में क्वालिफाई कर जायेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं और वो थाइलैंड में आयोजित किये गये ओलंपिक बॉक्सिंग क्वालिफॉयर के दूसरे राउंड से बाहर हो गये तो वहीं पर चीन में खेले गये दूसरे क्वालिफॉयर के पहले राउंड में ही बाहर होना पड़ा। अब विजेंदर के पास कजाखिस्तान बॉक्सिंग क्वालिफॉयर के रूप में आखिरी मौका बचा था। विजेंदर के लिये यह आर या पार की लड़ाई थी, जिसको देखते हुए विजेंदर अगर 6-7 महीनों तक घर नहीं गये और पटियाला में रहकर सिर्फ ट्रेनिंग की।
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ट्रेनिंग का फल कजाखिस्तान बॉक्सिंग क्वॉलिफायर में मिला जहां पर विजेंदर सिंह ने लगातार दूसरी बार ओलंपिक में क्वालिफाई करने का कारनामा किया। हालांकि इस बार विजेंदर का लक्ष्य सिर्फ क्वालिफिकेशन नहीं बल्कि देश के लिये पदक जीतकर उस पोडियम में खड़ा होना था। बीजिंग ओलंपिक के पहले राउंड में बड़ोऊ जैक के खिलाफ विजेंदर सिंह ने अपने इरादे साफ कर दिये और 13-2 से मैच जीतकर अपनी मजबूत दावेदारी पेश की।
विजेंदर सिंह यहीं पर नहीं रुके दूसरे राउंड में थाईलैंड के अंगख़ान चोमफ़ुआंग को 13-3 से हराया। विजेंदर ने यह मुकाबला एकतरफा अंदाज में भले जीता लेकिन इस मैच के दौरान अंगख़ान चोमफ़ुआंग के शक्तिशाली मुक्कों ने विजेंदर को बाईं तरफ से चोटिल कर दिया और क्वार्टर फाइनल से पहले मिली एक दिन की छुट्टी के दौरान उन्हें अपना इलाज कराना पड़ा। इस दौरान भारत के अखिल कुमार ने भी 54 किग्रा भारवर्ग में वर्ल्ड चैंपियन को हराकर क्वार्टर फाइनल में जगह बनाई और ऐसा लगा मानों पहली बार भारत को बॉक्सिंग से एक साथ दो पदक मिलने वाले हैं।
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हालांकि ऐसा हुआ नहीं, अखिल कुमार क्वार्टर फाइनल में हार गये जिसके बाद विजेंदर सिंह भारत की आखिरी उम्मीद बन गये थे। विजेंदर सिंह ने क्वार्टर फाइनल में एक बार फिर शानदार मुक्केबाजी की और कार्लोस गौन्गोरा को 9-4 से हराकर बॉक्सिंग में भारत के लिये पहला पदक पक्का कर लिया। सेमीफाइनल मुकाबले में विजेंदर सिंह का मुकाबला क्यूबा के एमिलियो कॉरिया से होना तय हो गया, लेकिन अब तक विजेंदर के शरीर पर काफी चोट आ चुकी थी।
ऐसे में सिर्फ एक दिन के अंतराल में रिकवर होना थोड़ा मुश्किल हो रहा था। फिर भी विजेंदर ने सेमीफाइनल मुकाबले में एमिलियो कॉरिया को जबरदस्त टक्कर दी पर जीत हासिल करने में नाकाम रहे। विजेंदर को 5-8 से हार का सामना करना पड़ा और वो ब्रॉन्ज मेडल के साथ ही अपने ओलंपिक सफर का अंत करने पर मजबूर हो गये। हालांकि उन्होंने भारत के लिये बॉक्सिंग में पहला ओलंपिक पदक जीतने का सपना जरूर पूरा कर लिया और पोडियम पर तिरंगा लहराते हुए शान से खड़े नजर आये।