नई दिल्ली (विवेक शुक्ला)। आज विश्व विकलांगता दिवस है। देश भर में सेमिनार और गोष्ठियां हो रही हैं और कई जगह विकलांगों के अधिकारों पर चर्चाएं। खैर हम वो सब कुछ नहीं करने वाले, हम आपको मिलवाने जा रहे हैं उन जुझारू लोगों से जिन्होंने विकलांग होने के बावजूद हिम्मत नहीं हारी और अपनी एक अलग पहचान बनायी।
गिरिश शर्मा
आप जैसे ही गिरिश शर्मा का मोबाइल फोन नंबर मिलाते हैं, तो वे तुरंत फोन उठाकर आपको नमस्कार कहते हैं। संवाद शुरू होते ही समझ आ जाता है कि गिरिश नाम है जिंदादिल शख्स का। राष्ट्रीय स्तर के बैडमिंटन खिलाड़ी गिरिश वर्तमान में राष्ट्रीय चैंपियन हैं, विकलांगों के लिए होने वाली राष्ट्रीय चैंपियनशिप के। वे 2006 से सामान्य और विकलागों के लिए आयोजित होने वाली बैडमिंटन प्रतियोगिताओं में शिरकत कर रहे हैं। हालांके उनसे पहले भी विकलांग खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर की बैडंमिटन चैंपियनशिप में खेले हैं, पर गिरिश का मामला अलग है।
वे इस मुकाम पर पहुंचे हैं जब उनकी सिर्फ एक ही टांग है। कल्पना कीजिए कोई एक ही टांग से खेले। उनकी सिर्फ बायीं टांग है। उनसे पहले एक मूक--बधिर खिलाड़ी राष्ट्रीय फलक पर रहा है। गिरिश की कोर्ट के भीतर फूर्ति देखते ही बनती है। उनके बैकहैंडशॉट लाजवाब होते हैं।
क्या हुआ था गिरीश के साथ
गिरिश ने सुनायी अपनी आप बीती, "जन्म के समय मेरे दोनों पैर थे। मैं जब चार साल का था, तब हमारा परिवार रतलाम में रहता था। पिता रेलवे में थे। घर के पास रेल लाइन थी। मैं वहां एक दिन अपने दोस्तों के साथ चला गया। बस, वहां पर पटरियों के बीच मेरी एक टांग फंस गई। किसी तरह से मुझे लोगों ने बचा लिया पर एक टांग चली गई।
बैडमिंटन से कैसे रिश्ता बना?
गिरिश ने बताया कि वे अपने भाई के साथ साथ बचपन में आमतौर पर फुटबाल खेलते थे। लेकिन टीवी पर प्रकाश पादुकोण को देख-देखकर वे बैडमिंटन से इतने प्रभावित हुए कि वे इसके दीवाने हो गए। गिरिश का परिवार अब राजकोट में रहता है, पर वे 2007 में मुंबई शिफ्ट हो गए।