नयी दिल्ली (ब्यूरो)। दुनिया के महानतम बल्लेबाज और क्रिकेट के भगवान के रूप में माने जाने वाले सचिन तेंदुलकर के सामने जब कोई गेंदबाज आता था तो हताश हो जाता था मगर बेजोड़ करियर के दौरान टीम इंडिया की कप्तानी करते समय सचिन काफी हताश हो गये थे। हताशा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सचिन ने क्रिकेट से पूरी तरह से अलग होने का मन बना लिया था। जी हां टीम इंडिया की असफलता से सचिन इतना डर गये थे कि उन्होंने क्रिकेट से संयास लेने का मन बना लिया था।
तेंदुलकर की किताब के एक्सक्लूसिव मुख्य अंश के अनुसार, मुझे हार से नफरत है और टीम के कप्तान के रूप में मैं लगातार खराब प्रदर्शन के लिए खुद को जिम्मेदार मानता था। इससे भी अधिक चिंता की बात यह थी कि मुझे नहीं पता था कि इससे कैसे उबरा जाए, क्योंकि मैं पहले ही अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहा था। बकौल तेंदुलकर, मैंने अंजलि से कहा कि मुझे डर है कि मैं लगातार हार से उबरने के लिए शायद कुछ नहीं कर सकता। लगातार करीबी मैच हारने से मैं काफी डर गया था। मैंने अपना सब कुछ झोंक दिया और मुझे भरोसा नहीं था कि क्या मैं 0.1 प्रतिशत भी और दे सकता हूं।
31 मार्च 1997 को बताया करियर का सबसे बुरा दिन
वेस्ट इंडीज के खिलाफ मिली इस करारी शिकस्त के बारे में सचिन ने लिखा है, "31 मार्च 1997 भारतीय क्रिकेट के इतिहास में सबसे काला दिन था और निश्चित तौर पर मेरे करियर का भी सबसे बुरा दिन था। सच में उस हार के लिए कोई दलील नहीं दी जा सकती। मैं हार के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहता। टीम का हिस्सा और कप्तान होने के लिए मैं पूरी तरह से उस हार के जिम्मेदार था। इस हार में पूरी तरह टूट चुका था और मैंने अपने आप को दो दिनों तक कमरे में बंद कर लिया था। उस समय मैं इस हार से उबरने की कोशिश कर रहा था। मैं जब भी पीछे मुड़कर उस सीरीज की तरफ देखता हूं तो उस हार का दर्द महसूस करता हूं।"