नई दिल्ली। 'दक्षिण अफ्रीका में नस्लवाद आज भी हावी है। भले ही यहां रंगभेद के खिलाफ कई आंदोलन हुए हों, लेकिन यह आज भी यह एक ऐसी बीमारी है, जो पूरी तरह से साफ नहीं हो सकी है।' ये मानना है ICC के पूर्व मैच रेफरी और साउथ अफ्रीका के पूर्व ऑलराउंडर खिलाड़ी माइक प्रोक्टर का। टाइम्स ऑफ इंडिया के माइक प्रोक्टर मुताबिक बताते हैं कि कैसे उन्होंने और उनकी टीम ने (जब वह रेस्ट ऑफ साउथ अफ्रीका टीम के सदस्य थे और ट्रांसवाल के खिलाफ मैच खेलने के लिए आए थे) 1971 में उन्होंने अपने साथी खिलाड़ियों के साथ रंगभेद के चलते मैच से वॉक आउट किया था। इस दौरान ग्रीम पोलक और बैरी रिचर्ड्स सरीखे खिलाड़ी उस टीम का हिस्सा थे और वे सभी साउथ अफ्रीकन क्रिकेट एसोसिएशन की सिलेक्शन पॉलिसी का विरोध कर रहे थे।
प्रोक्टर बताते हैं 'साउथ अफ्रीका में स्कूल स्तर के क्रिकेट मैच में एक रंग के दो बोलर बोलिंग अटैक की शुरुआत नहीं कर सकते। चाहे ये दो गोरे हों या दो काले। इनमें से दूसरे बोलर का भिन्न रंग का होना अनिवार्य है। एक बच्चे के तौर पर लड़का या लड़की किसी खेल को खेलकर उसका लुत्फ उठाना चहाते हैं, तब उन्हें यह समझना होता है कि एक रंग का मेल नहीं हो सकता।'
गौरतलब है कि दक्षिण अफ्रीकी सीनियर क्रिकेट टीम में आरक्षण लागू है। यहां हुई सालाना जनरल मीटिंग में घोषणा की गई थी कि भविष्य में होने वाली दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट टीम की सभी सीरीज के लिए कम से कम छह काले खिलाड़ियों को शामिल किया जाएगा। नए नियम के तहत कम से कम 54 फीसदी काले खिलाड़ी और 18 फीसदी काले अफ्रीकी खिलाड़ी नेशनल टीम के लिए आईसीसी द्वारा मान्यता प्राप्त सभी प्रतियोगिताओं में खेलेंगे।
खबर के मुताबिक प्रोक्टर कहते हैं कि दक्षिण अफ्रीका में आज भी नस्लवाद मौजूद है और समय-समय पर इसका प्रभाव दिखता है। 'नस्लवाद की क्या परिभाषा है? निश्चितरूप से यह ऐसी नहीं ही कि गोरों के खिलाफ काले। नस्लवाद तब होता है, जब किसी नस्ल का व्यक्ति यह विश्वास करता है कि उसकी नस्ल दूसरी नस्लों से श्रेष्ठ है, तो रंगभेद पनपता है। यह पूर्वाग्रह, भेदभाव या किसी से बैर-भाव पर आधारित होता है।'
बता दें कि माइक प्रोक्टर की आात्मकाथ 'कॉट इन द मिडल' अब बाजार में आ चुकी है, इस पुस्तक में उन्होंने उन विषयों को छुआ है, जिनपर उन्होंने अपने लंबे करियर के दौरान कभी बात नहीं की। प्रोक्टर बड़े सम्मान के साथ यह मानते हैं, '2001 से 2008 के बीच भारतीय टीम इतनी अच्छी थी, जितना क्रिकेट इतिहास में कोई भी दूसरी टीम अच्छी रही है। प्रोक्टर ने मंकीगेट कांड मामले में भी अपनी किताब में लिखा है। प्रोक्टर कहते हैं कि उनके जीवनकाल में इंटरनेशनल क्रिकेट से दक्षिण अफ्रीका के निलंबन के बाद मंकीगेट कांड सबसे बड़ा केस था।