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रेप की बढ़ती घटनाओं पर गौतम गंभीर ने जताई चिंता, कहा- मेरी बेटियां बलात्‍कार का मतलब न पूछ बैठें

By Ankur Kumar Srivastava

नई दिल्‍ली। क्रिकेटर गौतम गंभीर सोशल मीडिया पर खासा एक्‍टिव रहते हैं और सामाजिक मुद्दों पर अपनी बात बेबाकी से रखते हैं। इस बार उन्‍होंने देश में महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहे अपराध पर चिंता प्रकट की है। गौतम ने चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि 'मुझे डर लगता है कि कहीं एक दिन उनकी बेटी उनसे रेप शब्‍द का मतलब न पूछ बैठे'। उन्‍होंने एक आर्टिकल में बेटियों की सुरक्षा को लेकर खुलकर सारी चिंताएं साझा की हैं। गंभीर ने लिखा है कि जब मैं 14 साल का था तब मुझे रेप शब्द के बारे में पहली बार पता चला। क्रिकेटर ने कहा है कि 1980 में रिलीज हुई फिल्म इंसाफ का तराजू मेरे जन्म के एक साल बाद रिलीज हुई थी। मुझे याद नहीं कि मैंने यह फिल्म दूरदर्शन पर देखी है या फिर किसी वीडियो टेप में। लेकिन मुझे फिल्म के बारे में याद है कि यह दो रेप पीड़ितों की कहानी पर आधारित फिल्म थी। एक यंग ब्वॉय के तौर पर मैं फिल्म में रेपिस्ट रमेश के मर्डर से बहुत संतुष्ट था। ये रोल एक्टर राज बब्बर ने निभाया था। विस्‍तार से जानिए और क्‍या कहा गंभीर ने

दो बेटियों का पिता होने के नाते परेशान भी हूं

गौतम ने लिखा कि आज जब मैं अखबारों के फ्रंट पेज पर बच्चियों के रेप की खबरें पढ़ता हूं। तो मुझे इस बात का डर सताता है कि जल्द ही मेरी बेटी मुझसे रेप शब्द का मतलब पूछेगी। 4 साल और 11 महीने की दो बेटियों के पिता होने के नाते मैं एक ही समय में परेशान भी हूं और खुश भी हूं। इन दिनों किंडरगार्टन स्कूल्स में बच्चों को गुड टच और बैड टच के बीच फर्क सिखाया जा रहा है। इसलिए परेशान होने की वजह साफ है और खुश इसलिए हूं क्योंकि कम से कम हम तो इस मुद्दे पर टाल-मटोल करने के बजाय इस रोकने की कोशिश कर रहे हैं।

कठुआ गैंगरेप का भी गंभीर ने किया जिक्र

क्रिकेटर ने नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों का उल्लेख करते हुए लिखा है कि एनसीआरबी के मुताबिक पिछले 10 सालों में बच्चों के साथ यौन अपराधों के मामलों में 336 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। 2016 में 19,765 रेप के मामले दर्ज हुए जबकि 2015 में 10,854 मामले। मुझे एहसास है कि यह हालत तब है जबकि ऐसे कई सारे मामलों में तो एफआईआर तक दर्ज नहीं कराए जाते। कठुआ गैंगरेप का जिक्र करते हुए इस खिलाड़ी ने लिखा है कि निठारी,कठुआ, उन्नाव और इंदौर जैसे ऐसे अनेकों मामले हैं जिनपर हम शर्मिंदा हुए हैं। मेरे विचार से ऐसे लोग आतंकवादियों से ज्यादा खतरनाक हैं।

दोषियों को पीडि़ताओं की उम्र की हिसाब से सजा क्‍यों?

ऐसे लोगों को रेपिस्ट की बजाए किसी और मजबूत शब्द से बुलाया जाना चाहिए। हिंदुस्तान टाइम्स में लिखे एक आलेख में उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा रेप के मामलों में लाए गए नए अध्यादेश का उल्लेख करते हुए कहा है कि सरकार ने अब 12 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ दुष्कर्म करने वालों के खिलाफ मौत की सजा का प्रावधान किया है। उन्होंने सरकार के इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि रेप, रेप ही होता है। फिर ऐसे मामलों में दोषियों को पीड़िता की उम्र के हिसाब से सजा क्यों? अपने लेख में कुछ गंभीर सवाल उठाते हुए गौतम ने कहा कि क्या हमारे पास रेप क्राइसिस सेंटर हैं?

Story first published: Monday, May 28, 2018, 19:56 [IST]
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