भारतीय कप्तान मिताली राज
1999 में करियर का डेब्यू करने वाली मिताली राज मौजूदा आईसीसी वनडे रैंकिंग में दूसरे नंबर पर हैं। महिला क्रिकेट के इतिहास में दूसरी सबसे ज्यादा रन बनाने वाली खिलाड़ी हैं मिताली राज। मौजूदा विश्वकप में भी मिताली का बल्ला जनकर रन उगल रहा है। लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि अपने बल्ले के दम पर गेंदबाजों को नचाने वाली मिताली राज कभी क्लासिकल डांसर बनना चाहती थीं। दरअसल तमिल परिवार में जन्म लेने के कारण मिताली ने बचपन में ही क्लासिकल डांस सीखना शुरू कर दिया और 10 साल की उम्र तक भरतनाट्यम करने लगी थीं। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। दरअसल मिताली के पिता चाहते थे कि बेटी क्रिकेट खेले, और फिर क्या था मिताली ने 10 साल की उम्र में डांस छोड़कर बल्ला पकड़ लिया। हैदराबाद में पढ़ाई करते समय स्कूल में लड़कों के साथ क्रिकेट की प्रैक्टिस करती थीं। 17 साल की उम्र में मिताली का चयन भारतीय टीम में हो गया।
महिलाओं की विराट कोहली- स्मृति मंधाना
मेजबान इंग्लैंड के खिलाफ पहले मैच में विस्फोटक बल्लेबाजी करने के बाद वे्टइंडीज के खिलाफ दूसरे मैच में शतक लगाने वाली स्मृति मंधाना अपने करियर की शानदार फॉर्म में हैं। स्मृति के बेहतरीन फॉर्म और शॉट सिलेक्शन को देखकर उन्हें वुमन टीम की विराट कोहली कहा जाने लगा है। महज 16 साल की उम्र में टीम इंडिया के लिए डेब्यू करने वाली स्मृति का जन्म 18 जुलाई 1996 को मुंबई में हुआ था। क्रिकेट की तरफ स्मृति का रुझान अपने पिता और भाई की वजह से हुआ था। पिता मुंबई में डोमेस्टिक क्रिकेट खेल चुके थे भाई भी क्रिकेट खेलता है। स्मृति को महज 9 साल की उम्र में माहराष्ट्र की अंडर-15 टीम में जगह मिल गई थी। 15 साल की उम्र तक स्मृति डॉमिस्टिक टूर्नामेंट की स्टार बन चुकी थीं। स्मृति ने एक इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने बोर्ड एग्जाम की चिंता के चलते क्रिकेट छोड़ने पर विचार किया था। दरअसल स्मृति आगे साइंस की पढ़ाई करना चाहती थीं। हालांकि मां-बाप के समझाने के बाद स्मृति ने क्रिकेट खेलना जारी रखा और अगले ही साल उन्हें बांग्लादेश के खिलाफ मैच में डेब्यू करने का मौका मिल गया। आपको बता दें कि सबसं कम उम्र में विश्वकप में शतक लगाने वाली तीसरी खिलाड़ी बन चुकी हैं मंधाना।
एकता बिष्ट- चाय की दुकान से पिता ने पूरे किए बेटी के सपने
सिर्फ छह साल की उम्र में जिस लड़की ने क्रिकेट खेलना शुरू किया वो आज बुलंदियों पर है और उसने अपनी सफलता के झंडे गाड़ पूरी दुनिया में वाहवाही लुटाने का काम किया है। एकता बिष्ट ने हाल ही में वीमेंस वर्ल्ड कप में पाकिस्तान की टीम को हथियार डालने के लिए मजबूर कर दिया। फिलहाल भारत की स्लो लेफ्ट आर्म बॉलर एकता बिष्ट चर्चा में बनीं हुई है जिसने पाकिस्तान के खिलाफ 5 विकेट लेकर भारत को एकतरफा जीत दिलाने का काम किया। लेकिन उत्तराखंड के अल्मोड़ा की रहने वाली बिष्ट की कहानी पहाड़ की तरह कठिनाइयों भरी रही हैं। बिष्ट के पिता कुंदन सिंह बिष्ट ने इंडियन आर्मी से हवलदार पद से रिटायर होने के बाद अपनी बेटी का सपना पूरा करने के लिए चाय की दुकान डाली और उस इनकम से घर और एकता की जरूरतों को पूरा किया। इस उभरते खिलाड़ी के जीवन में एक पल वो भी आया जब एकता का 'इंडिया ए' में चयन तो हो गया लेकिन इसके लिए उन्हें मुंबई जाना था और 10 हजार रूपये की जरूरत थी। एकता की मां तारा बिष्ट के अनुसार उस दौरान एकता के कोच (लियाकत अली खां) और उनके देवर ने एकता की मदद की थी। एकता की मां तारा बिष्ट के अनुसार 'हमारे घर की माली हालत तब सुधरी जब एकता का क्रिकेट टीम में चयन हो गया और उसके बाद हमने चाय दुकान भी बंद कर दी'। एकता 2006 में उत्तराखंड महिला टीम की कप्तान बनीं और 2007 से 2010 तक उत्तर प्रदेश टीम की तरफ से खेल चुकी हैं।
सुषमा वर्मा- हिमाचल प्रदेश की पहली महिला अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर
भारतीय विकेट कीपर बल्लेबाज सुषमा वर्मा तेजी से रन बनाने में माहिर हैं। महिला वर्ल्ड कप में पाकिस्तान के खिलाफ अहम समय पर सुषमा वर्मा ने 35 रनों की शानदार पारी खेली थी। सुषमा वर्मा शिमला जिले के सुन्नी गडेरी गांव की रहने वाली हैं। आपको बता दें कि सुषमा वर्मा वर्ष 2009 2011 में हिमाचल प्रदेश की तरफ से अंडर-19 में भी खेल चुकी हैं। सचिन तेंदुलकर को अपना आदर्श मानने वाली सुषमा हिमाचलल की पहली महिला अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर हैं। विकेट के पीछे तेजी के चलते सुषमा को महिला क्रिकेट का एमएस धोनी कहा जाता है।
मानसी जोशी- खेतों में क्रिकेट खेलकर हासिल किया मुकाम
पहले दो मैचों में बाहर रहना वाली मानसी जोशी को पाकिस्तान के खिलाफ खेलने का मौका मिला। मानसी ने पाकिस्तान के खिलाफ मैच में दो विकेट लिए। विश्व कप का सफर तय करने वाली यह क्रिकेटर कभी पहाड़ के सीढ़ीनुमा खेतों में बच्चों के साथ क्रिकेट खेला करती थी। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले की मानसी जोशी अपने कोच पीयूष रौतेला को अपनी सफलता का श्रेय देती हैं। पहाड़ों के बीच क्रिकेट खेलकर भारत की राष्ट्रीय महिला क्रिकेट टीम तक का सफर तय करने वाली मानसी जोशी से आगे भी ऐसे ही प्रदर्शन की उम्मीद है।