अंडर-19 क्रिकेट वर्ल्ड कप की खिताबी जीत में जितना योगदान भारत के युवा उभरते हुए सितारों का है, कमोबेश उतना ही योगदान मैदान के पीछे रणनीति बनाने वाले टीम के कोच राहुल द्रविड़ का भी है.
लेकिन जो कामयाबी का श्रेय लेने की होड़ में जुट जाए वो राहुल द्रविड़ भी नहीं बन सकता.
यही वजह है कि टीम की जीत के तुरंत बाद टीवी कैमरे पर प्रतिक्रिया देते हुए राहुल द्रविड़ सकुचाते नज़र आए.
जब राहुल सकुचा रहे थे, तभी उनके ठीक पीछे वर्ल्ड चैंपियन बने सितारे उनके लिए ज़ोर शोर से चीयर्स करते नज़र आ रहे थे.
इस फ्रेम को ज़रा ठहर कर देखिएगा, बार बार देखिएगा. ये फ्रेम अपने आप में एक मुकम्मल कहानी बयां करता है.
राहुल द्रविड़ के क़द वाला या फिर भारतीय क्रिकेट के दूसरे सितारे सचिन तेंदुलकर या सौरव गांगुली को आप उसी फ्रेम पर रख कर सोचिए कि क्या उनके सामने अंडर 19 के खिलाड़ी इतने सहज हो पाते.
द्रविड़ ने इसके लिए खुद को लीजेंडरी क्रिकेटर की छवि से बाहर निकाला होगा और इन खिलाड़ियों से आपसी रिश्ता मज़बूत किया होगा.
ये राहुल द्रविड़ से ही संभव है, खुद को गौण बना लेने वाली ये फितरत उनके साथ मानो चिपक गई है.
जब तक क्रिकेट के मैदान में रहे तेंदुलकर और गांगुली के सामने हमेशा खुद को साबित करते रहे और एक आउटस्टैंडिंग रिकॉर्ड के बावजूद उनकी गिनती हमेशा दूसरे तीसरे पायदान पर होती रही और अब वो भारतीय क्रिकेट के भविष्य को चमकाने में जुटे हैं, वो चुपके चुपके.
कोई चाहे तो इस एक फ्रेम में वो पूरी पटकथा पढ़ सकता है, जिसकी शुरुआत 2015 में तब हुई थी जब जगमोहन डालमिया ने भारतीय क्रिकेट को बेहतर बनाने के लिए सचिन तेंदुलकर, वीवीएस लक्ष्मण और सौरव गांगुली की अगुवाई में क्रिकेट सलाहकार समिति का गठन किया था.
ये बात ठीक है कि उस समिति में राहुल द्रविड़ नहीं थे, लेकिन ये उसी दिन तय हो गया था कि वो एक अहम भूमिका निभाने वाले हैं.
कुछ ही दिनों के अंदर राहुल द्रविड़ को भारत-ए और अंडर-19 क्रिकेट टीम की कोचिंग की ज़िम्मेदारी सौंप दी गई.
तो जिस कामयाबी का जश्न आज भारत के युवा क्रिकेटर मना रहे हैं, उसकी नींव राहुल ने तीन साल पहले शुरू कर दी थी.
दो साल पहले उनकी कोचिंग में अंडर-19 की टीम वर्ल्डकप फ़ाइनल तक पहुंची थी, लेकिन वेस्टइंडीज़ से पार नहीं पा सकी थी.
इस बार ऐसी कोई चूक नहीं हो जाए लिहाजा द्रविड़ ने टीम को थोड़ा पहले न्यूज़ीलैंड भेजने के लिए बीसीसीआई को तैयार किया और उसका नतीजा सामने है.
राहुल द्रविड़ ने किस तरह से अंडर-19 टीम को तैयार किया है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि पूरी टीम किसी एक या दो स्टार खिलाड़ियों पर निर्भर नहीं रही.
जिस शुभमन का बल्ला पूरे टूर्नामेंट में चमक बिखेर रहा था, उसे धकियाते हुए मनजोत शतक ठोक देते हैं.
कप्तान पृथ्वी शॉ के रहते दूसरे बल्लेबाज़ अपना काम बखूबी करते रहे.
जिस अनुकूल राय ने टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा विकेट चटकाए, उसका टूर्नामेंट में खेलना तक तय नहीं था, लेकिन द्रविड़ ने उन पर भरोसा कायम रखा.
टीम का हर खिलाड़ी अपनी भूमिका निभाने को तैयार नजर आता है और चुनौती आने पर संभाल लेने की कला में राहुल ने हर किसी को पारंगत करने की कोशिश की है.
अपनी इसी शैली की वजह से राहुल द्रविड़ इम्पैक्ट भारतीय क्रिकेट पर बना हुआ है, उनके संन्यास लेने के छह साल बाद भी.
इंडियन प्रीमयर लीग में राजस्थान रॉयल्स के खिलाड़ी और मेंटॉर के तौर पर उन्होंने करुण नायर, संजू सैमसन और धवल कुलकर्णी जैसे युवाओं को निखारा.
भारत-ए टीम के कोच के तौर पर द्रविड़ की मौजूदगी से भारतीय क्रिकेट टीम को हार्दिक पांड्या, केदार जाधव, यजुवेंद्र चहल, श्रेयस अय्यर, जयंत यादव और मनीष पांडेय जैसे क्रिकेटर मिल चुके हैं.
ऐेसे में एक बड़ा सवाल ये ज़रूर उभरता है कि राहुल द्रविड़ बतौर कोच क्या कुछ कर रहे हैं जिसके चलते वो बेंच पर एक मज़बूत टीम बनाते जा रहे हैं.
अपने पूरे करियर के दौरान राहुल द्रविड़ भरोसेमंद होने के बावजूद चुनौतियों का सामना करते रहे, लगातार बदलती परस्थितियों के अनुरूप खुद को ढालते रहे.
खुद की प्रतिभा को कमिटमेंट और नेट प्रैक्टिस के सहारे बढ़ाते रहे, इन सबने मिलाकर उन्हें एक मैच्योर मेंटॉर भी बनाया है.
अपने कोचिंग स्टाइल के बारे में राहुल द्रविड़ ने एक बार कहा था कि कोच तो हमेशा यही चाहता है कि उसे ऐसी प्रतिभाएं मिलें जो कुछ सीखना चाहते हों, भले वो मेरी पूरी बात सुनें ना सुनें लेकिन उनमें सीखने की इच्छा जरूरी है.
द्रविड़ के सामने ऐसी प्रतिभाओं को तलाशने और उन्हें निखारने की जो चुनौती है, उसमें वे काफी कायमाब नज़र आते हैं. लेकिन राहुल द्रविड़ इतने भर से संतुष्ट होने वालों में नहीं हैं.
क्रिकेट को लेकर उनकी सोच में क्या क्या पहलू शामिल हैं, इसका अंदाजा दिसंबर, 2011 में कैनबरा में डॉन ब्रैडमैन ऑरेशन के दौरान उनकी कही बातों से लगाया जा सकता है.
द्रविड़ ने कहा था, "ब्रैडमैन की कही एक बात दिमाग में जमी हुई है. दुनिया के सबसे बेहतरीन एथलीटों में अपनी निपुणता के साथ कुछ और गुण होने चाहिए"
"अपने जीवन को गरिमापूर्ण ढंग से, प्रतिबद्धता के साथ, साहस और सरलता के साथ चलाने की काबिलियत होनी चाहिए."
"उनकी बातों से गर्व, लक्ष्य, प्रतिबद्धता और प्रतिस्पर्धा जाहिर होती है, मेरे ख्याल से दुनिया भर के क्रिकेट ड्रेसिंग रूम में इन शब्दों को लिखकर टांग देना चाहिए."
द्रविड़ 39 साल तक क्रिकेट खेलते रहे, लगातार 15 साल तक टॉप क्लास क्रिकेट में वो बने रहे.
ना केवल बने रहे बल्कि टेस्ट मैचों में काफी हद तक भारतीय क्रिकेट को बोझ अपने कंधों पर ढोते रहे.
टेस्ट में उन्होंने जो 36 शतक जमाए उनमें 21 विदेशी मैदानों पर हैं, विदेशी मैदानों पर उनकी बल्लेबाजी का औसत 53 से ज्यादा का रहा.
भारत ने उनके करियर के दौरान विदेशी मैदानों पर जो 24 टेस्ट जीते उनमें उनका औसत 70 से ज्यादा का रहा.
जब तक खेलते रहे तब तक ब्रैडमैन के शब्द को जीवन में उतारे रखा और अब कोच के तौर पर उनकी ड्रेसिंग रूम में भी यही शब्द गूंजते रहते हैं.
सच यही है कि उनमें अभी भी इतनी क्रिकेट बाक़ी है कि आने वाले दसियों साल तक भारत की युवा प्रतिभाओं को निखार सकते हैू.
हालांकि अभी से उनको भारतीय क्रिकेट टीम का कोच बनाए जाने की सुगबुगहाट होने लगी है.
लेकिन राहुल द्रविड़ ये बखूबी जानते हैं कि जिन्हें आज वो तराश रहे हैं वही कल की भारतीय टीम के स्टार बनने वाले हैं.
लिहाजा मुख्य टीम के बदले अंडर-19 और भारत-ए टीम की कोचिंग से राहुल द्रविड़ का योगदान कमतर नहीं हो जाएगा.
भारतीय क्रिकेट की ये दीवार इतनी बुलंद है कि आने वाली कई जेनरेशन की भारतीय टीमें उनके सहारे चुनौतियों को पार करने का करिश्मा दिखाती रहेंगी.
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