2011 में नाजुक हालात ऐसे बदले थे मजबूत मोड़ की ओर
याद कीजिए 2011 का वो दिन जब 2 अप्रैल के दिन भारत ने श्रीलंका को फाइनल में मात देकर खिताब पर कब्जा किया था। हालांकि यह मैच भारत आसानी से नहीं जीता था। वानखेड़े के मैदान पर श्रीलंकाई गेंदबाजों ने भारत को जीत हासिल करने के लिए नाक में दम कर रखा था। श्रीलंका ने पहले बल्लेबाजी करते हुए भारत के सामने 6 विकेट खोकर 275 रनों का लक्ष्य रखा था। बड़े मुकाबले के हिसाब से भारतीय बल्लेबाजों पर दवाब था। दबाव बना भी जब सचिन तेंदुलकर(18) वीरेंद्र सहवाग(0) और विराट कोहली(35) के रूप में महज 21.4 ओवर में 114 रनों पर 3 विकेट गिर गए। मुथैया मुरलीधरन और लसिथ मलिंगा जैसै गेंदबाज हावी होते जा रहे थे। ऐसे में तब टीम की पारी को संभालने के लिए धोनी खुद पांचवें नंबर पर उतरे थे। धोनी ने जैसे ही मैदान पर क्रीज जमाए तो फिर उनकी गाैतम गंभीर(97) के साथ मिलकर क्लास बैटिंग के कारण श्रीलंकाई गेंदबाज विकेट निकालने में असमर्थ दिखने लगे। धोनी ने पिच व गेंदबाजों को समझा फिर अंत में तेजी से रन बटोरते हुए टीम को जीत दिला थी। अगर न्यूजीलैंड के खिलाफ हुए इस बार सेमीफाइनल मैच में धोनी पर टीम मैनेजमेंट ने भरोसा जताया होता और उन्हें ऊपर भेजा होता तो हो सकता था मैच का नतीजा कुछ और निकलता।
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तब युवराज से पहले आए थे धोनी
नाजुक हालात बनते देख धोनी ने तब खुद युवराज सिंह से पहले मैदान पर उतरने का फैसला लिया था। ऐसा नहीं था कि युवराज फाॅर्म में नहीं थे। वह सबसे सफल खिलाड़ी रहे थे लेकिन परिस्थितियों को समझते हुए युवराज को पांचवें नंबर पर नहीं भेजा गया था बल्कि धोनी खुद उतरे ताकि युवी दवाब में आकर अपना विकेट ना गंवा दें। लेकिन इस बार सेमीफाइनल जैसे बड़े मैच में कोच रवि शास्त्री की बल्लेबाजी क्रम को लेकर कोई प्लानिंग नहीं दिखी। भारत जब लक्ष्य के लिए उतरा तो 3 विकेट महज 5 रनों पर ही गिर गए। यह विकेट रहे विराट कोहली, रोहित शर्मा और केएल राहुल के। ऐसे में चाैथे नंबर पर रिषभ पंत आए गए सही था लेकिन पांचवें नंबर पर फिर 2011 की तरह धोनी को भेजा जाना चाहिए था ना कि दिनेश कार्तिक को। पंत टिक चुके थे। वह 32 रन बनाकर आउट हुए। वह जल्दबाजी में अपना विकेट गंवा बैठे क्योंकि उन्हें क्रीज पर समझाने वाला सीनियर खिलाड़ी नहीं था। अगर धोनी होते तो वह पंत को समझाते जैसा कि वो 2011 में युवराज सिंह के साथ मिलकर सूझबूझ के साथ खेले थे।
मिडिल ऑर्डर में धोनी ही नजर आ रहे थे मजबूत
इस विश्व कप में अगर देखा जाए तो भारत का मिडिल ऑर्डर बेकार था। क्योंकि नाजुक हालातों पंत, पांड्या जैसे बल्लेबाजों को ऊपर भेजकर आप मैच बनाने का रिस्क नहीं ले सकते। ऐसे हालात में जरूरत होती है विकेट पर टिकने की, विकेट पढ़ने की और फिर मैच आगे खींचने की, लेकिन पांड्या जैसै हाटिंग खिलाड़ी को भी धोनी से पहले भेजा गया जो समझ से परे था। धोनी मिडिल ऑर्डर में माैजूदा समय सबसे मजबूत खिलाड़ी नजर आ रहे थे लेकिन फिर भी उन्हें सातवें स्थान पर भेजा गया।धोनी ने 2011 के फाइनल में 79 गेंद पर 91 रन की बेहतरीन पारी खेली थी। कई लोगों के लिए धोनी का युवराज से पहले आना चौंकाने वाला था क्योंकि युवराज चौथे नंबर बढ़िया बैटिंग कर रहे थे। धोनी ने पिछले साल नवंबर में बताया था कि उन्होंने युवराज से पहले बल्लेबाजी का फैसला क्यों किया था। धोनी ने कहा था, ''चेन्नई सुपरकिंग्स के लिए श्रीलंका के ज्यादातर गेंदबाजों ने खेला था और मैं सभी को अच्छी तरह से समझता था। मैं खुद इसलिए पहले गया क्योंकि तब मुरलीधरन गेंदबाजी कर रहे थे। मैंने उन्हें नेट प्रैक्टिस में उन्हें बहुत खेला था और मुझे भरोसा था कि उनकी गेंद को आराम से खेलूंगा। यह सबसे बड़ा कारण था बैटिंग के लिए पहले जाने का।''
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नहीं निकला हल तो 2023 में भी आएंगी मुश्किलें
अब अगला विश्व कप 2023 में होगा। बड़ी बात यह है कि यह भारत में ही होगा ऐसे में भारत के पास अपने घर में खिताब जीतने का माैका रहेगा लेकिन मिडिल ऑर्डर का हल अभी भी नहीं निकला तो फिर वहां भी मुश्किलें ही नजर आने वाली हैं। धोनी अगला विश्व कप नहीं खेल पाएंगे, यानि की मिडिल ऑर्डर और टूटने वाला है। पिछले 4 सालों से भारत के टाॅप 3 बल्लेबाजों के चलने पर ही टीम ज्यादातार मैच जीत रही है। ऐसे में विराट कोहली को अब मिडिल ऑर्डर सेट करने के लिए सही खिलाड़ियों को चुनना चाहिए और लगातार माैके देने चाहिए ताकि वो उस परिस्थिति में खुद को डाल सकें। अन्यथा 2023 विश्व कप में भी फिर से यही कहानी दोहराई जाएगी जो अब देखने को मिली है।
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