आक्रमक रवैये के चलते 2 साल में खत्म हो गया करियर
हम जिस खिलाड़ी की बात कर रहे हैं वह कोई और नहीं बल्कि वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम के विवादित गेंदबाज रॉय गिलक्रिस्ट की बात कर रहे हैं। जमैका में जन्में इस गेंदबाज का करियर उसकी प्रतिभा से ज्यादा विवादों के लिये याद किया जाता रहा है। रॉय गिलक्रिस्ट ने अपने करियर की शुरुआत 1957 में इंग्लैंड के खिलाफ की थी लेकिन उनके आक्रामक रवैये और अनुशासनहीनता के चलते उनका करियर महज 2 साल का ही रह सका। बेहद शानदार गेंदबाज होने के बावजूद रॉय गिलक्रिस्ट सिर्फ 13 ही टेस्ट मैच खेल सके।
बाउंसर फेंकने में उस्ताद था यह गेंदबाज
वेस्टइंडीज के लिय रॉय गिलक्रिस्ट बेहद शानदार गेंदबाज थे। गिलक्रिस्ट वेस्टइंडीज के कप्तान गैरी एलेक्जेंडर के नेतृत्व में 1958-59 में भारत दौरे पर टेस्ट सीरीज खेलने आये थे। गैरी एलेक्जेंडर की कप्तानी में भारत दौरे पर आई कैरेबियाई टीम के पास रॉय के रूप में सबसे खतरनाक गेंदबाज थे।
यह गेंदबाज बाउंसर फेंकने में उस्ताद था। इसी सीरीज के चौथे टेस्ट मैच में जब भारतीय बल्लेबाज कृपाल सिंह ने रॉय गिलक्रिस्ट की गेंद पर लगातार 3 चौके लगाये तो दोनों के बीच कुछ बहस हो गई। इसके बाद गिलक्रिस्ट ने जानबूझर छह मीटर तक गेंदबाजी के निशान को खत्म किया और बाउंसर फेंकी, जो कृपाल सिंह को लगी और इससे उनकी पगड़ी खुल गई।
अपने ही कप्तान पर तान दिया था चाकू
रॉय गिलक्रिस्ट यहां पर नहीं रुके और दिल्ली में खेले गये आखिरी टेस्ट मैच में उन्होंने स्वर्णजीत सिंह को जानबूझकर बीमर्स गेंदें फेंककर परेशान किया। इसके बारे में वेस्टइंडीज के कप्तान एलेक्जेंडर कैम्ब्रिज को भी जानकारी थी और उन्होंने रॉय को इस तरह की गेंदबाजी करने से रोका तो यह गेंदबाज अपने कप्तान से ही भिड़ गया। कप्तान ने रॉय को ऐसा न करने की चेतावनी देते हुए समझाने की कोशिश की लेकिन दोनों के बीच विवाद बढ़ गया।
विवाद ने असल रूप तब लिया जब लंच ब्रेक के दौरान गिलक्रिस्ट ने अपनी ही टीम के कप्तान पर चाकू तान दिया। इस विवाद से कैम्ब्रिज इतना आहत हुए कि उन्होंने रॉय को बीच मैच से वापस देश भेज दिया और रॉय के लिये इस सीरीज में खेला गया दिल्ली टेस्ट उनके करियर का अंतिम टेस्ट मैच साबित हुआ। भारत के खिलाफ सीरीज खेलने के बाद कप्तान एलेक्जेंडर बाकी खिलाड़ियों के साथ बचे दौरे के लिये पाकिस्तान चले गये।