विश्व कप में भारत का पहला मैच-
7 जून 1975 को लॉर्ड्स के मैदान पर भारत और इंग्लैंड के बीच विश्वकप क्रिकेट का पहला मैच खेला गया था। भारत के कप्तान एस वैंकटराघवन थे। इंग्लैंड ने टॉस जीत कर पहले बल्लेबाजी की। जॉन जेम्सन और डेनिस एमिस की सलामी जोड़ी मैदान पर उतरी। एमिस ने 137 रनों की शानदारी पारी खेली। कीथ प्लेचर ने 68 रन बनाये। तेज गेंदबाज क्रिस ओल्ड ने 30 गेंदों पर 51 रनों की तूफानी पारी खेली। इंग्लैंड ने कुल 60 ओवरों में चार विकेट के नुकसान पर 334 रन बनाये। इस मैच में भारत की तरफ से सिर्फ एक स्पिनर कप्तान वैंकट राघवन ही खेले थे। मदन लाल, मोहिंदर अमरनाथ, कर्सन घावरी, सैयद आबिद अली और एकनाथ सोल्कर ने मध्यम गति की गेंदबाजी की। सबसे किफायती गेंदबाज वैंकटराघवन रहे। उन्होंने 12 ओवरों में सिर्फ 41 रन दिये। कोई विकेट नहीं मिला। बाकी सभी भारतीय गेंदबाजों की जमकर धुनायी हुई।
गावस्कर की पारी सुनील गावस्कर-
उस समय दुनिया के मशहूर बल्लेबाज बन चुके थे। टेस्ट मैचों में वे शतक और दोहरा शतक लगा कर तहलका मचा चुके थे। लेकिन विश्व कप के पहले मैच में उनकी सारी प्रतिष्ठा धूल में मिल गयी। गावस्कर और सोल्कर भारतीय पारी की शुरुआत करने मैदान पर उतरे। सोल्कर आठ रन बना कर पवेलियन लौट गये। उन्हें आर्नोल्ड ने आउट किया। अंशुमान गायकवाड़ ने 22, गुंडप्पा विश्वनाथ ने 37 और ब्रजेश पटेल ने नाबाद 16 रन बनाये। एक तरफ से विकेट गिरते रहे लेकिन गावस्कर दूसरे छोर पर जमे रहे। भारत के सभी बल्लेबाजों ने बेहद धीमी बल्लेबाजी की। जिसका नतीजा ये रहा कि भारत का स्कोर 60 ओवरों में 3 विकेट पर 132 रन ही पहुंच सका। इस तरह भारत 202 रनों से ये मैच हार गया।
गावस्कर ने 60 ओवरों में क्यों बनाये 36 नाबाद रन ?
ये पिच बैटिंग के लिए अनुकूल थी। इंग्लैंड के बल्लेबाजों ने रन बना कर ये दिखाया भी था। गावस्कर ने शुरू में नयी गेंद को सावधानी से खेला। तब सभी ने ये समझा कि शायद वे अपनी पारी को जमा रहे हैं। फिर शॉट खेलेंगे। लेकिन गावस्कर ठुक-ठुक करते रहे। भारत समर्थक दर्शकों का धैर्य जवाब देने लगा। वे गावस्कर के खिलाफ हूटिंग करने लगे। मैच के बाद गावस्कर ने कहा था कि स्लो पिच पर गेंद ठीक से बल्ले पर नहीं आ रही थी। शॉट खेलना मुश्किल था। इस लिए कम रन बने। पूर्व क्रिकेटर जीएस रामचंद्र उस समय भारतीय टीम के मैनेजर थे। उन्होंने कहा, यह बहुत ही शर्मनाक और स्वार्थी किस्म की बल्लेबाजी थी। इतनी खराब बल्लेबाजी मैंने इससे पहले कभी नहीं देखी। स्लो पिच का बहना बकवास है। अगर पिच स्लो थी तो इंग्लैंड ने 334 रन कैसे बनाये थे। गावस्कर की इस धीमी बल्लेबाजी पर इंग्लैंड के अखबारों ने चटखारे लेकर खबरे बनायीं। गावस्कर और भारतीय टीम का खूब मजाक उड़ाया गया।
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क्या गावस्कर को कोई नाराजगी थी ?
मैच के बाद इस बात की चर्चा जोरों पर थी कि गावस्कर टीम के चयन पर बहुत नाराज थे। टीम प्रबंधन ने स्पिनरों पर कम निर्भर रहने का फैसला किया था। इससे गावस्कर खफा थे। कहा जाता है कि वे वैंकटराघवन को कप्तान बनाये जाने के भी खिलाफ थे। लेकिन मैच के बाद गावस्कर ने अपनी इस पारी के बारे में कुछ खास नहीं कहा। उन्होंने खामोशी ओढ़ ली। कोई सवाल पूछता भी तो वे टाल देते। बहुत साल बाद जब वे क्रिकेट से रिटायर हो गये तो उन्होंने एक बार कहा था कि ये पारी उनके जीवन की सबसे खराब पारी है। मेरी अपनी कुछ आदतें थीं। मैं रन बनाने के लिए क्रॉस बैट शॉट नहीं खेल सकता था। नन क्रिकेटिंग शॉट भी मेरे दिमाग में नहीं आ रहे थे। उस वक्त मैं क्यों इतना धीमा खेला, समझ नहीं सका। मैं स्टंप छोड़ कर खेलने की हिम्मत नहीं जुटा सका। तब लगता था कि अगर स्टंप से आगे पीछे जाकर खेला तो बोल्ड हो सकता हूं। टीम के एक अन्य सदस्य कर्सन घावरी का कहना था कि गावस्कर ने मान लिया था कि 335 का टारगेट नामुमकिन है। उस समय एकदिवसीय मैच का ये सबसे बड़ा टोटल था। नामुमकिन लक्ष्य मान कर गावस्कर ने अगले मैच के लिए प्रैक्टिस करने की सोची थी। उनको कई बार ड्रेसिंग रूम से संदेश भी भेजा गया लेकिन गावस्कर ने तेज बल्लेबाजी नहीं की। वे टेस्ट मैच की तरह अपना विकेट बचाते रहे। टीम के साथी भी उनकी बल्लेबाजी पर हैरान थे। लेकिन इतनी खराब बल्लेबाजी के बाद भी गावस्कर को टीम से ड्रॉप नहीं किया गया। अगले मैच में गावस्कर ने पूर्वी अफ्रीका के खिलाफ 86 गेंदों में 65 रन बनाये जिससे भारत 10 विकेट से जीत गया।