फुटबॉल में बहुत पुरानी है ये परंपरा-
फुटबॉल में आमतौर पर खिलाड़ियों द्वारा एक दूसरे को अपनी जर्सी भेट करने का चलन रहा है। इसकी शुरुआत 1931 से मानी जा सकती है। तब फ्रांस ने इंग्लैंड को हरा दिया था और फ्रेंच खिलाड़ियों ने खुशी की खुमारी में इंग्लिश खिलाड़ियों से उनकी जर्सी मांग ली थी। इंग्लैंड के खिलाड़ियों ने बिना ज्यादा सोच-विचार करे यह दे भी दी। तब किसी को नहीं पता था कि यह इस खेल में सबसे लंबे समय तक चलने वाली परंपरा बन जाएगी।
अब एक दूसरे को जर्सी देना आपसी सम्मान की बात बन चुकी है। यह खेल में एक दूसरे का लोहा मानना का भी प्रतीक बन चुका है। हालांकि ऐसा नहीं है कि एक बेस्ट खिलाड़ी ही दूसरे टीम के बेस्ट खिलाड़ी को अपनी जर्सी देगा। कई बार खिलाड़ी जर्सी के लिए दूसरे खिलाड़ी से गुजारिश भी कर सकते हैं।
जर्सी के आदान-प्रदान के कई कारण-
जब खिलाड़ी एक दूसरे को जर्सी देते हैं तो उससे बाकी युवा प्लेयर्स में एक भी एक शानदार संदेश जाता है। यह उनको विपक्षी की इज्जत करना सिखाता है। यह बताता है खेल जीत और हार से ऊपर भी है। आप किसी भी स्तर पर गरिमा और इंसानियत के साथ पेश आ सकते हो।
इसके अलावा कई खिलाड़ी एक याद के तौर पर भी जर्सी दे देते हैं। कुछ खिलाड़ियों के लिए जर्सी एक कलेक्शन भी होती है। यह करियर के बाद एक याद के तौर पर इस्तेमाल होती है।
क्रिकेट में शुरू हो चुका है चलन-
फुटबॉल में खेल का अंत होने पर जर्सी दी जाती है। अब क्रिकेट में इसका चलन शुरू हो चुका है। आईपीएल 2018 के समय हार्दिक पांड्या और केएल राहुल ने एक दूसरे की जर्सी की अदला बदला की थी। यह आपसी सम्मान के साथ दोस्ती का भी प्रतीक थी। यह आईपीएल में वानखेड़े स्टेडियम की बात है।
तब केएल राहुल ने कहा था कि, हमने ये सब फुटबॉल में होते हुए बहुत देखा है और हार्दिक मेरे अच्छे दोस्त हैं। एक दूसरे की जर्सी को कलेक्ट करना अच्छा है और क्रिकेट में भी ऐसी परंपरा शुरू की जा सकती है।