पाकिस्तान क्रिकेट टीम के कप्तान सरफ़राज़ अहमद के लिए रविवार का दिन काफी मुश्किलों भरा रहा. एक तो बारिश ने उनका खेल खराब कर दिया, दूसरा जब टीम इंडिया रन पर रन बना रही थी तो वो मैदान पर जम्हाई लेते हुए पकड़े गए.
ठीक वक्त पर कैमरा उनकी तरफ घूमा और उनकी उस जम्हाई पर ढेरों मीम बन गए जो सोशल मीडिया पर शेयर किए गए. यहां तक कि कमेंटेटर भी पाकिस्तान के फिल्डर्स की पोज़िशन के लिए 'yawning gap' जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर रहे थे.
पाकिस्तान क्रिकेट टीम के कप्तान के बारे में सोशल मीडिया पर चर्चा भी खूब हुई. ये तथ्य इस बात की ओर भी इशारा करता है कि खेल में बहुत कुछ दांव पर लगा था.
क्रिकेट वर्ल्ड कप को अरबों लोग देखते हैं. जिसकी वजह से कई कंपनियां भी इस टूर्नामेंट में दिलचस्पी लेती हैं और अपनी टारगेट ऑडियंस तक पहुंचने के लिए अरबों डॉलर तक खर्च करने को तैयार रहती हैं.
और भारत इन सबका एक अहम हिस्सा है, जहां क्रिकेट की सबसे अमीर संस्था - बीसीसीआई ना सिर्फ इस खेल को लोकप्रिय बना रही है, बल्कि इसे एक ऐसे बिज़नेस का रूप भी दे रही है जिसमें ढेर सारा मुनाफा है. तो आइए आपको क्रिकेट के पीछे के बिज़नेस के बारे में बताते हैं.
मीडिया राइट्स से स्पॉन्सरशिप डील्स तक
कोई भी चैनल ऐसे ही क्रिकेट नहीं दिखा सकता. इसके लिए उसे प्रसारण का अधिकार यानी राइट्स खरीदने होते हैं. क्रिकेट में पैसा बनाने का ये पहला पड़ाव है.
ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल यानी बीएआरसी इंडिया के मुताबिक़ पिछले साल 70 करोड़ से ज़्यादा लोगों ने टीवी पर क्रिकेट देखा. और इस साल तो विश्व कप है, तो ज़ाहिर है कि ये आंकड़ा और बढ़ा होगा.
डिज़नी के स्वामित्व वाले स्टार इंडिया ने 2015 में करीब दो अरब डॉलर का समझौता कर आईसीसी टूर्नामेंट को 2023 तक प्रसारित करने का अधिकार खरीद लिया था.
इसके बाद कंपनी ने 2022 तक आईपीएल ब्रॉडकास्ट करने का अधिकार भी खरीद लिया था, इसके लिए उसने ढाई अरब डॉलर का सौदा किया.
और पिछले ही साल स्टार इंडिया ने पांच साल यानी 2023 तक के लिए भारतीय क्रिकेट के वर्ल्डवाइड राइट्स भी खरीद लिए. इसके लिए उसने 94.4 करोड़ डॉलर की रकम अदा की.
तो स्टार इंडिया इकलौती कंपनी है, जिसने सारे टेलिकास्ट अधिकार खरीदकर कमाई को पहले के मुक़ाबले 59 फीसदी बढ़ा लिया है.
कंपनी अब क्रिकेट की डिजिटल स्ट्रीमिंग भी करने लगी है. कंपनी का ये एक अहम कदम है, क्योंकि भारत में कई सारे लोगों के पास स्मार्टफोन हैं और लोग अपने फ़ोन पर मैच देखना पसंद कर रहे हैं.
डफ़ एंड फ़ेल्प के मुताबिक़ पिछले साल आईपीएल की ब्रांड वेल्यू 6.3 अरब डॉलर रही. और अब वर्ल्ड कप इससे आगे निकलने की कोशिश में है.
इसका एक नमूना ये है रहा कि भारत-पाकिस्तान के बीच 16 जून को हुए मुक़ाबले को कंपनी के डिजिटल प्लेटफॉर्म हॉटस्टार पर एक वक्त में 1.2 करोड़ से ज़्यादा लोगों ने देखा.
इस निवेश के बदले में जो मिलता है, वो मुनाफ़े का दूसरा पड़ाव है. और ये पैसा आता है विज्ञापनों की बिक्री से.
विज्ञापन खरीददारों के मुताबिक़ वर्ल्ड कप के लोकप्रिय मैचों के दौरान विज्ञापनों के रेट इस कदर बढ़ जाते हैं कि सिर्फ 10 सेकेंड के स्पॉट के लिए 25 लाख रुपए तक देने होते हैं. इसका मतलब है कि एक मैच से कम से कम सौ करोड़ की कमाई.
और पैसों का जो तीसरा ज़रिया है, वो है स्पॉन्सरशिप डिल्स. यहां से पिक्चर में आती है अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट बॉडी आईसीसी.
वर्ल्ड कप में कमर्शियल पार्टनर के तौर पर उसके पास 20 से ज़्यादा ब्रांड्स हैं और इनमें से लगभग 30 फीसदी भारत के ही हैं. जिनमें एमआरएफ़ टायर्स, शराब की कंपनियां - बीरा91 और रॉयल स्टैग और स्पोर्ट्स फेंटेसी बिज़नेस कंपनी - ड्रीम 11 शामिल हैं.
यहां तक कि अमरीका की एक कंपनी, उबर भी इनमें शामिल है. ये कंपनियां भारत में अपना कारोबार बढ़ाने की कोशिश कर रही है.
ये कंपनियां पहली बार अपने मार्केटिंग अभियान के लिए एक सेलेब्रिट्री का इस्तेमाल कर रही है और वो सेलेब्रिटी हैं इंडियन क्रिकेट टीम के कप्तान - विराट कोहली.
उबर इंडिया के अध्यक्ष प्रदीप परमेश्वरम ने बीबीसी के वर्क लाइफ़ इंडिया कार्यक्रम में कहा, "विराट को हम दुनिया में कहीं भी एक वैश्विक सेलेब्रिटी के तौर पर इस्तेमाल कर सकते थे. बात ये थी कि अगर आप जनता के ब्रांड हैं तो आपको उनसे जुड़ने का तरीका खोजना होगा. विराट एक अरब से ज़्यादा लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं."
"विराट वो चीज़ें कर रहे हैं, जो किसी ने नहीं किया. वो फिटनेस और पर्फोरमेंस के मामले में आदर्श बनते जा रहे हैं. इसलिए हमें लगा कि वो हमारी कंपनी के लिए एकदम फिट हैं."
अमूल और केंट आरओ जैसी कई और कंपनियां भी अंतरराष्ट्रीय बाज़ार तक पहुंच बनाने के लिए ऐसी ही रणनीति आज़मा रही हैं.
ये कंपनियां अफगानिस्तान और श्रीलंका की टीमों की स्पॉन्सर भी हैं.
क्रिकेट में पैसा कमाने का चौथा ज़रिया है - स्टेडियम की टिकटों की ब्रिक्री. असल में पैसा कमाने का ज़रिया यही है.
बड़े मुक़ाबलों या कुछ अहम मैचों के दौरान टिकटों की मांग बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है.
ब्रॉडकास्ट और स्पॉन्सर से आया मुनाफ़ा आईसीसी के खाते में जाता है, वहीं पब्लिकेश्न्स और टिकट से आया पैसा इंग्लैंड और वेल्स क्रिकेट बोर्ड को मिलता है.
और जो पैसा स्टेडियम के अंदर के खाने-पीने की चीज़ों और कार पार्किंग से बनता है वो उन्हें जाता है, जहां मैच हो रहा है.
मिसाल के तौर पर - 16 जून को जिस ओल्ड ट्रैफ़र्ड मैदान पर भारत-पाकिस्तान का मैच हुआ, वहां 26,000 लोगों के बैठने की व्यवस्था है. बताया जाता है कि ये सारी सीटें पहले 48 घंटे में ही बिक गई थीं.
एक दूसरी ख़बर के मुताबिक़ आख़िरी मिनट के खरीददारों के लिए टिकटों की कीमत 6000 डॉलर रखी गई थी.
क्रिकेट लोकप्रिय होता जा रहा है, लेकिन इसकी कई तरह से आलोचना भी होती है. जिनमें से एक है कि इस पैसे का बड़ा हिस्सा पुरुष टीम के पास जाता है.
वहीं महिला क्रिकेट टीम इस मामले में काफी पीछे है और कंपनियां उनमें पैसा लगाने में कम दिलचस्पी लेती हैं. भारतीय महिला क्रिकेट टीम की पूर्व कप्तान अंजुम चोपड़ा मानती हैं अब धीरे-धीरे इसमें बदलाव आ रहा है.
बीबीसी के वर्क लाइफ इंडिया कार्यक्रम के दौरान अंजुम चोपड़ा ने कहा, "भारत में ये बदल रहा है. महिला क्रिकेट टीम 2017 का वर्ल्ड कप हार गई था, फिर भी उनके पास कमर्शियल डील्स के कई सारे कॉन्ट्रेक्ट हैं और स्पॉन्सर भी कई सारे हैं. मैं नहीं कहूंगी की भेदभाव होता है. लेकिन ये है कि खेल को बेहतर किए जाने की ज़रूरत है."
"अगर भारत की टीम वैश्विक स्तर पर ज़्यादा जीत हासिल करने लगेगी, तो खुद-ब-खुद ध्यान उनकी तरफ जाएगा और उनके पास पैसा भी आएगा. तो ये नतीजों पर निर्भर करता है."