गोल्ड मेडल जीतने के बाद बोलीं चानू, 'जख्मों को भरने में मदद मिलेगी'
अपनी इस कामयाबी के बाद चानू ने एक बेहद ही भावुक बात कही है। दरअसल चानू अब देश का नाम एशियन और ओलंपिक जैसे बड़े इवेंट्स में रौशन करना चाहती हैं। चानू ने कहा ,‘मेरा अगला लक्ष्य एशियाई खेल है। मैं इससे भी बेहतर करना चाहती हूं। वहां काफी कठिन स्पर्धा होगी और मुझे बहुत मेहनत करनी होगी।' चानू ने आगे कहा कि,‘एशिया में वेटलिफ्टिंग में काफी कठिन प्रतिस्पर्धा है, क्योंकि चीन और थाईलैंड होंगे। इसके बावजूद मुझे अच्छे प्रदर्शन का यकीन है। हालांकि इस मेडल से ओलंपिक में नाकामी के जख्मों को भरने में मदद मिलेगी। वहां किस्मत ने साथ नहीं दिया।'
क्या आपको पता है कि रियो ओलंपिक में चानू एक भी क्लीन लिफ्ट नहीं कर सकी थीं। ये किसी खिलाड़ी के लिए सबसे शर्मनाक प्रदर्शन होता है। रियो ओलंपिक में उनके नाम के आगे लिखा था 'डिड नॉट फिनिश' अर्थात 'पूरा नहीं किया।' ये किसी खिलाड़ी के लिए बेहद शर्मनाक होता है। लेकिन चानू ने हार नहीं मानी।
मीरा के लिए ओलंपिक का वो दिन बेहद निराशाजनक रहा। जिस वजन को वे रोज उठातीं थी उसे ओलंपिक में उठाने में हाथ काम नहीं कर रहे थे। जब मीरा अपनी कंपटीशन में हिस्सा ले रहीं थी तब भारत में रात थी। लेकिन जब दिन में लोगों ने ये खबर पढ़ी की मीरा एक भी क्लीन लिफ्ट नहीं कर सकीं तो लोगों की नजरों में वे विलेन बन गईं।
2016 के बाद डिप्रेशन में चलीं गईं थी मीरा
आलोचना का असर ये हुआ कि 2016 के बाद मीरा डिप्रेशन में चलीं गईं। उन्हें हर हफ्ते मनोवैज्ञानिक के सेशन लेने पड़े। इस असफलता के बाद एक बार तो मीरा ने खेल को अलविदा कहने का मन बना लिया था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और पिछले साल जबरदस्त वापसी की। न केवल वापसी की बल्कि वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया।
वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में गोल्ड जीता
48 किलोग्राम के अपने वजन से करीब चार गुना ज्यादा वजन यानी 194 किलोग्राम उठाकर मीरा ने पिछले साल वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में गोल्ड जीता। वे उस उम्र (22 साल) में ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला वेटलिफ्टर बनीं। मेडल लेते वक्त मीरा रो रहीं थीं। उनकी आंखों में 2016 की नाकामी के आंसू थे। मीरा ने कसम खाई कि वे इसे और आगे ले जाएंगी और नतीजा कॉमनवेल्थ का गोल्ड मेडल निकला। इससे पहले मीरा ने 2014 कॉमनवेल्थ में सिल्वर जीता था।
यहां से मिली प्रेरणा
मीरा कहती हैं कि "बचपन में जब मैंने कुंजरानी देवी को पहली बार वेटलिफ्टिंग करते हुए देखा, तो यह खेल मुझे काफी आकर्षक लगा। मैं चकित थी कि वह इतना वजन कैसे उठा पा रही हैं। इसके बाद मैंने अपने माता-पिता से कहा कि मैं भी ऐसा करना चाहती हूं। काफी मान-मनौव्वल के बाद वे सहमत हुए।" जिस कुंजुरानी को देखकर मीरा के मन में चैंपियन बनने का सपना जागा था, अपनी उसी आइडल के 12 साल पुराने राष्ट्रीय रिकॉर्ड को मीरा ने 2016 में तोड़ा था- 192 किलोग्राम वजन उठाकर।
ट्रेनिंग के लिए 60 किलोमीटर जाना पड़ता था
बचपन के दिनों में पूर्वी इंफाल स्थित मीरा के गांव में कोई वेटलिफ्टिंग सेंटर नहीं था। इससे उन्हें ट्रेनिंग के लिए 60 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती थी। हालांकि तमाम संघर्षों के बावजूद मीरा ने अपने टैलेंट का लोहा मनवा लिया। 8 अगस्त 1994 को जन्मी और मणिपुर के एक छोटे से गाँव में पली बढ़ी मीराबाई बचपन से ही काफी हुनरमंद थीं। 11 साल में वो अंडर-15 चैंपियन बन गई थीं और 17 साल में जूनियर चैंपियन।
|
एक गिलास दूध नहीं खरीद सकती थीं
मीरा का कहना है कि "हमारे कोच हमें जो डाइट चार्ट देते थे, उसमें चिकन और दूध अनिवार्य हिस्सा थे। पर मेरे घर की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि मैं हर दिन चार्ट के मुताबिक खाना खा सकूं। काफी समय तक मैं अपर्याप्त पोषण के बावजूद वेटलिफ्टिंग करती रही, जिसका बुरा असर मेरे खेल पर भी पड़ा। जब मैं एक गिलास दूध भी नहीं खरीद सकती थी, मैं यही सोचती थी कि जल्द ही यह वक्त गुजर जाएगा।"