अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जब भारतीय खेलों की बात चलती है तो सबसे पहले क्रिकेट का नाम आता है.
क्रिकेट से पहले हॉकी का दबदबा था जब भारत ने 1928 से 1956 तक लगातार 6 ओलंपिक गोल्ड मेडल जीते और बाद में दो बार और ओलंपिक ख़िताब जीता.
लेकिन जिस खेल में भारत ने सबसे ज़्यादा अंतरराष्ट्रीय पदक जीते हैं तो वो है कुश्ती.
दबदबा रहा है भारत का कुश्ती में
चाहे वो जूनियर हो, कैडेट, सीनियर या फिर महिला कुश्ती -- भारत ने हर खेल में और हर स्तर में मेडल जीते हैं.
कुछ तो यह खेल भारत के देहाती क्षेत्र में ही रह गया था और कुछ यू कहें की खेल ज़्यादातर मिट्टी में खेले जाने की वजह से और मीडिया में स्थान ना पाने की वजह से ज़्यादा सुर्खियों में नहीं आया.
केडी जाधव ने दिलाया था कुश्ती में पहला ओलंपिक मेडल
यहां तक की केडी जाधव का 1952 ओलंपिक का कांस्य पदक केवल इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गया था.
लेकिन बीजिंग और लंदन ओलंपिक खेलों में सुशील और योगेश्वर के पदक और फिर रियो में साक्षी मालिक का पदक, इसने भारतीय कुश्ती की तस्वीर ही बदल डाली.
और खेल के इसी बदले स्वरूप की पृष्ठभूमि पर भारतीय पहलवान एक नए जोश के साथ गोल्ड कोस्ट में मुकाबलों में उतरेंगे.
गोल्ड कोस्ट में ऐसा है भारतीय कुश्ती दल
भारतीय कुश्ती दल में 6 पुरुष और 6 महिला पहलवान शामिल हैं.
पुरुष: राहुल अवारे (57 किलो), बजरंग (65 किलो), सुशील कुमार (74 किलो), सोमवीर (86 किलो) मौसम खत्री (97 किलो) और सुमित (125 किलो ).
महिला: विनेश (50 किलो ), बबीता (54 किलो), पूजा ढांडा (57 किलो), साक्षी मलिक (62 किलो), दिव्या (68 किलो) किरण (76 किलो).
हालांकि सब पहलवान शारारिक रूप से तो फिट हैं, लेकिन मानसिक रूप से कुछ परेशान ज़रूर हैं.
बड़े खेल मेलों से पहले खिलाड़ी समय से काफी पहले वहां पहुँच जाते हैं जहाँ खेलों का आयोजन होता है.
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सबसे बाद में पहुंचेंगे भारतीय पहलवान
लेकिन इस बार भारतीय कुश्ती महासंघ ने फ़ैसला किया कि कुश्ती दल गोल्ड कोस्ट 10 अप्रैल को पहुंचेगा जबकि मुक़ाबले सिर्फ दो दिन बाद शुरू हो जाएंगे.
इस वजह से भारतीय पहलवान मायूस तो हैं लेकिन मैट पर उतरते ही शायद इसको भुलाकर मेडल जीतने के लिए पूरी जान लगा देंगे.
हालांकि, भारत ने कॉमनवेल्थ गेम्स में 90 मैडल जीते हैं जिनमें 38 गोल्ड हैं.
कनाडा हमेशा ही भारत से आगे रहा है लेकिन इस बार सुशील को विश्वास है कि भारतीय पहलवान कनाडा को पछाड़ देंगे.
तीसरे गोल्ड पर दांव लगाने को तैयार हैं सुशील कुमार
सुशील ने पिछले दो खेलों में गोल्ड जीता था और अब लगातार तीसरे गोल्ड के लिए जान की बाज़ी लगा देंगे.
वह 74 किलोग्राम वर्ग में अपनी चुनौती पेश करेंगे.
सुशील के सामने सबसे बड़ी चुनौती पेश करेंगे कनाडा के जेवन बेल्फोर और ऑस्ट्रेलिया के कोनर इवान्स.
बेल्फोर ने ग्लासगो में 65 किलो वर्ग में सिल्वर जीता था और अब वो 74 किलो में उतरेंगे.
न्यूज़ीलैंड के आकाश खुल्लर भी मंझे हुए पहलवान हैं लेकिन सुशील हाल में खुल्लर को जोहानेसबर्ग की कॉमनवेल्थ चैम्पियनशिप में हरा चुके हैं जिसकी वजह से उनका मनोबल तगड़ा होगा.
65 किलो में भारत का प्रतिनिधित्व बजरंग करेंगे.
बजरंग एक दिलेर खिलाड़ी हैं जो अपने समय पर किसी भी बड़े से बड़े पहलवान को हरा सकते हैं.
वो बड़े से बड़े हेरफेर का माद्दा रखते हैं.
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महिला पहलवान भी कम नहीं
सुशील की ही तरह महिला वर्ग में साक्षी मलिक से उम्मीदें हैं.
रियो ओलंपिक खेलों की कांस्य पदक विजेता साक्षी 62 किलो वर्ग में चुनौती पेश करेंगी.
उनका सबसे तगड़ा मुकाबला होगा कनाडा की मिशेल फ़ज़ारी से जिन्होंने 2017 की वर्ल्ड चैम्पियनशिप में ब्रॉन्ज़ जीता था.
50 किलो में विनेश भी मेडल की प्रबल दावेदार होंगी.
कनाडा की जेसिका मैक्डोनाल्ड, विनेश का मुकाबला करेंगी.
जेसिका ने दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स और 2013 की वर्ल्ड चैम्पियनशिप में ब्रॉन्ज़ जीता है.
साथ ही नाइजीरिया की अफ्रीकन चैम्पियन मर्सी जेनेसिस भी उलटफेर कर सकती हैं. साथ ही ऑस्ट्रेलिया की रुपिंदर कौर भी मैट पर होंगी.
रुपिंदर दरअसल 2007 में ऑस्ट्रेलिया जाने से पहले भारत की ओर से खेलती थी. पटियाला में जन्मीं और पली बढ़ी रुपिंदर मेलबर्न पढ़ने आई थीं.
लेकिन सिकंदर संधू से शादी करके मेलबर्न में रह गईं. हालांकि, रुपिंदर ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स भी गई थीं लेकिन मैच से पहले 200 ग्राम अधिक बॉडी वेट होने की वजह से 48 किलो वर्ग ले पाई थी.
उन्होंने 53 किलो वर्ग में भाग लिया था जहाँ बिल्कुल असफल रही थीं.
अब अपने नए देश के दर्शकों के सामने वो अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन दिखाने की कोशिश करेंगी.
मज़े की बात यह है कि जब वो मैट पर होंगी तो वहीं कुछ दूर उनकी 1 साल की बेटी साहेब अपनी माँ को एक्शन में देखेगी.
इस सबके बीच भारतीय खेमे को सबसे ज़्यादा कमी खलेगी नवजोत कौर की, जो कुछ ही दिन पहले सीनियर की एशियन चैम्पियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं.
गोल्ड कोस्ट के ट्रायल्स से कुछ दिन पहले चोट लगने की वजह से वो ट्रायल में कुछ नहीं कर सकी थीं.
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