कभी नहीं सोचा था कि देश के लिये खेलूंगा
आईपीएल में सनराईजर्स हैदराबाद की टीम के लिये खेलने वाले खलील ने बताया कि कैसे वह बचपन से इस खेल के प्रति उनके दिल में बहुत अधिक लभाव था। इस दौरान उन्होंने बताया कि जब बचपन में उनके टीम के साथी उन्हें खेलने के लिये बुलाते थे तो उनके घरवाले उन्हें भगा देते थे।
उन्होंने कहा, ‘क्रिकेट से अगर एक दिन से ज्यादा दूर होता है तो बॉडी इसकी मांग करने लगता है। बचपन में कभी नहीं सोचा था कि इंडिया के लिए खेलूंगा। पता नही था कैसा फ्यूचर होगा। किस तरह से यहां का प्रोसेस है और कैसी क्रिकेट खेली जाती है। लगता था कंप्टीशन बहुत है। एकेडमी में भी बहुत लड़के आते थे। ऐसा नहीं था कि शुरू से इंडिया के लिए खेलने का सपना था।'
इस वजह से बना गेंदबाज
खलील अहमद ने बताया कि जहां बचपन में लोगों को बल्लेबाजी करना पसंद होता था वहां पर मेरे गेंदबाजी चुनने के पीछे काफी मजेदार कहानी है।
उन्होंने कहा, ‘ बचपन में सबलोग बल्लेबाजी के लिए मैदान पर लड़ते दिखाई दिया करते थे, समस्या यह थी कि ऐसे में जब सभी अगर बल्लेबाजी करेंगे तो गेंद कौन फेंकेगा। सबको लड़ता देख मेरे मन में ख्याल आता कि इस गुस्से को मैं ही सुलझा सकता हूं इसलिये मैंने उनसे कहा कि तुम लोग बल्लेबाजी करो और मैं गेंदबाजी करता हूं। धीरे- धीरे बॉलिंग के प्रति मेरा झुकाव बढ़ता गया और मैं इसमें अच्छा भी करने लगा तो आगे का सारा ध्यान इसी पर फोकस कर दिया।'
दोस्तों को भगा देते थे घरवाले
खलील ने बताया कि बचपन में क्रिकेट खेलना आसान नहीं होता था क्योंकि जब उनके दोस्त खेलने के लिये उन्हें बुलाते थे तो उनके घरवाले उन्हें डरा कर भगा देते थे, जिसका उन्होंने काफी लाजवाब तोड़ निकाला और झूठ बोलकर खेलने के लिये निकल जाते थे।
उन्होंने कहा,‘दरअसल, मैं घर में सबसे छोटा लड़का हूं। तीन बड़ी बहनें हैं। घर का सारा छोटा-बड़ा काम मुझे ही करना पड़ता था। अगर मैं खेलने के लिए निकल जाता था तो वह समय 4 घंटे का होता था। उस दौरान कोई काम होता था तो समस्या हो जाती थी कि काम कौन करेगा। इसके लिए मुझे डांट लगती थी। क्यों जाता है खेलने, थोड़ा पढ़ाई पर भी ध्यान दे और घर में रहा कर। राजस्थान में मई-जून के अंदर अगर आप खेल रहे है तो सोच भी नहीं सकते कि कितनी गर्मी पड़ती है। शुक्रवार को नमाज के बाद हम अक्सर टेनिस गेंद से खेलते थे। तो लोगों को मेरी जरुरत होती है, क्योंकि टेनिस बॉल में सब बैटिंग करते हैं तो छक्के बहुत लगते थे। सब मुझे घर पर बुलाने आते थे तो मेरे सुनने से पहले घर वाले सुन लेते थे। वे कहते थे कि खलील नहीं जाएगा, तुमलोग भी घर जाओ गर्मी है। इसका हमने तोड़ निकाला। वे बाद में घर के सामने आकर आवाज लगाने की जगह गाना गाते थे।'