आसान नहीं रहा संदीप कुमार का सफर
हालांकि संदीप कुमार के लिये ओलंपिक तक का सफर आसान नहीं रहा था और इसी उतार-चढ़ाव की कहानी का जिक्र करते हुए उन्होंने माईखेल से बात की और अपने बचपन को याद किया कि जब उनकी मां ने उन्हें छोटी सी उम्र में छोड़कर दुनिया को अलविदा कह दिया तो उन्होंने तभी घर के काम और अपनी पढ़ाई के बीच संतुलन बनाना सीख लिया था। तीन भाई बहनों में सबसे छोटे संदीप कुमार ने अपनी मां के देहांत से पहले सबसे कम समय उनके साथ बिताया।
उन्होंने कहा,' मैं सिर्फ 7 साल का था जब मेरी मां का देहांत हो गया था। उस दिन के बाद से मेरा बचपन पूरी तरह से बदल गया। मैं खेतों में पिता जी के साथ काम करता था और स्कूल से आने के बाद हमारी गाय-भैंसों का ख्याल रखता था।'
5-10 रुपये के लिये करते थे दंगल में लड़ाई
इस दौरान संदीप ने उन दिनों को भी याद किया जब उनके घर की आय बेहद कम थी और खर्चे के लिये भैंस के दूध पर निर्भर पर रहना पड़ता था। संदीप ने बताया कि सही से बारिश न होने के चलते ज्यादा फसल नहीं होती थी। संदीप ने आगे बताया कि घर की आय में योगदान देने के लिये हरियाणा के बाकी बच्चों की तरह शुरू में पहलवानी की और दंगल में 5-10 रुपये की ईनामी राशि वाली कुश्ती में हिस्सा लिया।
उन्होंने कहा,'अपने बचपन और टीनेज के दौरान मैं आस-पास के गांवों में दंगल लड़ने जाता था, जहां पर हर कुश्ती पर 5-10 रुपये मिलते थे और इससे मैं अपनी दैनिक जरूरतों को पूरी करने की कोशिश करता था।'
शुरुआती जीवन की मेहनत ने बनाया मजबूत
संदीप ने आगे बताया कि शुरुआती दिनों की कड़ी मेहनत ने मजबूत बनाया और 12वीं पास करने के बाद उन्होंने भारतीय आर्मी ज्वाइन कर ली। इस निर्णय ने संदीप का जीवन बदल दिया। मौजूदा समय में भारतीय सेना के सूबेदार संदीप ने आर्मी ज्वाइन करने के अपने निर्णय को जीवन बदल देने वाला बताया और कहा कि इसका चयन आसान नहीं था।
उन्होंने कहा,'मैंने दिसंबर 2006 में 12वीं पास करने के बाद बरेली की जाट रेजिमेंट से भारतीय सेना ज्वाइन कर ली। वह काफी मुश्किल समय था लेकिन सेना ने मेरा जीवन बदल दिया। मैं भारतीय आर्मी की खुली भर्ती के टेस्ट में गया था जहां पर पास होने के बाद मुझे नौकरी मिली। मुझे आज भी याद है कि मैं सिर्फ 36 रुपये लेकर दूसरे शहर गया था और सारा दिन मेहनत करने के बाद जब पता लगा कि मुझे नौकरी मिल गई तो मैं काफी खुश हुआ। अब मैं यहां हूं देश का दूसरी बार ओलंपिक में प्रतिनिधित्व करने जा रहा हूं।'
आर्मी की वजह से चुना रेसवॉकिंग
संदीप कुमार ने भारतीय आर्मी में जाने के बाद रेसवॉकिंग चुनने के अपने निर्णय के बारे में बात करते हुए बताया कि मैंने अपनी ट्रेनिंग के दौरान बेहद शानदार प्रदर्शन किया और 2008 में 180 कैडेटस के बीच अपनी खास जगह बनाई। हमारे कैप्टेन सीताराम जो कि खुद एक रेसवॉकर रह चुके हैं और नेशनल लेवल और आर्मी स्तर पर कई रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके हैं ने मुझे रेसवॉक करने के लिये प्रोत्साहित किया और खुद ट्रेनिंग दी। कोरोना के चलते जब पिछले साल पूरे देश में लॉकडाउन लगा हुआ था तब उस वक्त मैं बेंगलोर स्थित साई सेंटर के अपने कमरे में ट्रेनिंग कर रहा था। मई 2020 में अपने गांव लौटकर मैंने ट्रैक्टर से खेत की जुताई की और अगले 4-5 महीनों तक ट्रेन किया।
संदीप कुमार का मानना है कि अब वो पहले से ज्यादा बेहतर हो चुके हैं और 20 किमी रेस वॉक के लिये शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह से तैयार हैं। इस कैटेगरी में मेरी टाइमिंग पोडियम पर फिनिश करने से ज्यादा दूर नहीं है और ओलंपिक में जब आस-पास दुनिया के दिग्गज खिलाड़ी साथ होंगे तो मैं खुद को और ज्यादा पुश करूंगा ताकि मैं भारत के लिये पगक हासिल कर सकूं।