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जब गोल्ड मेडल मिलने पर Yuvraj Singh से पिता ने कहा था, लड़कियों वाला खेल छोड़ो

By अशोक कुमार शर्मा

नई दिल्ली। भारतीय क्रिकेट में युवराज सिंह को नायक का दर्जा हासिल है। वे रियल फाइटर हैं। खेल के मैदान में विऱोधियों को हराया तो जिंदगी के सफर में कैंसर को मात दी। उनके नाम पर रिकॉर्ड बुक में कई उपलब्धियां दर्ज हैं। 2007 के टी-20 विश्व कप में 6 गेंदों पर 6 छक्के, 2002 में नेटवेस्ट ट्रॉफी के फाइनल में मोहम्मद कैफ के साथ खेली गयी 69 रनों की पारी , विश्वकप 2011 में 362 रन और 15 विकेट के साथ मैन ऑफ द सीरीज का पुरस्कार उनको महान खिलाड़ियों की कतार में खड़ा कर देता है। लेकिन दिलचस्प बात ये है कि युवराज सिंह शुरू में क्रिकेटर नहीं बनना चाहते थे। अगर उनके पिता ने दबाव नहीं बनाया होता वे रोलर स्केटिंग के बड़े खिलाड़ी होते। लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था। युवराज सिंह ने एक बार बल्ला थामा तो फिर क्रिकेट के सबसे बड़े इंटरटेनर बन गये।

स्पीड स्केटिंग खेलने पर जब हुए नाराज पिता-

स्पीड स्केटिंग खेलने पर जब हुए नाराज पिता-

युवराज सिंह के पिता योगराज सिंह हरियाण के एक बड़े पुलिस अधिकारी के पुत्र थे। योगराज सिंह ने कपिल देव के साथ ही चंडीगढ़ में देश प्रेम आजाद से तेज गेंदबााजी के गुर सीखे थे। एक टेस्ट मैच खेलने का मौका भी मिला। लेकिन समर्पण की कमी के कारण योगराज सिंह का करियर एक टेस्ट से आगे नहीं बढ़ा। इसके बाद योगराज सिंह ने अपने पुत्र युवराज को कामयाब क्रिकेट बनाने की जिद ठान ली। जब युवराज 11 साल के थे तब उन्होंने राज्यस्तरीय स्पीड रोलर स्केटिंग प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता। वे खुशी से उछलते हुए घर पहुंचे। जैसे ही उनका समाना अपने पिता से हुआ उनकी खुशी खाफूर हो गयी। योगराज ने चिल्लाते हुए कहा, तो क्या अब तुम लड़कियों वाला खेल खेलोगे, बंद करो ये स्केटिंग वेस्केटिंग, क्रिकेट पर ध्यान दो। उतना कहते हुए योगराज सिंह ने युवराज का गोल्ड मेडल कमरे से बाहर फेंक दिया। युवराज डर के मारे मां के पास चले गये।

सिद्धू ने खारिज कर दिया था युवराज को-

सिद्धू ने खारिज कर दिया था युवराज को-

पिता के दबाव में युवराज क्रिकेट खेलने लगे। लेकिन उनके खेल में निखार नहीं आ रहा था। तब तक युवराज 13 साल के हो चुके थे। योगराज किसी कीमत पर युवराज को बड़ा क्रिकेटर बनाना चाहते थे। एक दिन परेशानहाल योगराज, युवराज को लेकर नवजोत सिंह सिद्धू के पास पहुंचे। वे देश के नामी क्रिकेटर थे। पटियाला के महारानी क्लब के ग्राउंड पर सिद्धू ने युवराज का टेस्ट लिया। उस समय तक युवराज को क्रिकेट की बहुत समझ नहीं थी। बैटिंग के लिए कैसे स्टांस लेना है, लेग स्टंप का गार्ड लेना है या मिडिल स्टंप का, उन्हें कुछ पता न था। नवजोत सिद्धू ने युवराज को टेस्ट में फेल कर दिया। पिता- पुत्र निराश हो कर चंडीगढ़ लौट आये।

युवराज के पिता ने हिम्मत नहीं हारी-

युवराज के पिता ने हिम्मत नहीं हारी-

नवजोत सिंह सिद्धू के खारिज करने के बाद भी योगराज सिंह ने हिम्मत नहीं हारी। 1993 में योगराज सिंह युवराज को लेकर दिल्ली पहुंचे और भारत के पूर्व कप्तान बिशन सिंह बेदी से मिले। युवराज को बेदी ने अपने समर कैंप में जगह दे दी। योगराज अपने पुत्र युवराज को वैसा तेज गेंदबाज बनाना चाहते थे जो ठीक ठाक बैटिंग भी करे। बेदी के कैंप में उन्हें इसी मकसद से डाला गया था। युवराज की लम्बाई और कद-काठी तेज गेंदबाज के लायक थी। वे कैंप में तेज गेंदबाजी की प्रैक्टिस करते और आठवें नम्बर पर बैटिंग के लिए आते। एक दो दिनों के बाद बिशन सिंह बेदी कैंप में पहुंचे। जैसे ही युवराज ने अपनी पहली बॉल डाली वे जोर से चिल्लाये, ये क्या रहे हो ? एस एक्शन से तुम कभी सीमर नहीं बन सकते। जाओ बैटिंग करे। बेदी का कैंप गर्मियों में हिमाचल प्रदेश आ गया था। युवराज बैटिंग पर ध्यान देने लगे। उनकी बैटिंग को निखारने में कैंप के कोच ने बहुत मदद की। युवराज ने बेदी के कैंप में ही जब पहली सेंचुरी बनायी तो तहलका मच गया। युवराज ने कुछ ऐसे छक्के लगाये कि गेंद स्टेडियम से बाहर चली गयी। हिमाचल प्रदेश के इस ग्राउंड के बाहर पहाड़ों की ढलान थी। जो गेंद स्टेडियम से बाहर जाती वो गहरी खाई में गिर जाती। कई गेंदे खाई में गिर चुकी थीं। इस समय एक गेंद की कीमत 300 रुपये थी। तब बेदी ने कैंप में नियम बना दिया अब जो बल्लेबाज शतक के बाद छक्के लगाएगा उसे आउट माना जाएगा।

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युवराज का क्रिकेटर बनना-

युवराज का क्रिकेटर बनना-

बेदी के कैंप में युवराज ने अपनी बल्लेबाजी पर बहुत ध्यान दिया था। इसके बाद जूनियर लेबल पर उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया। बेदी के कैंप से लौटने के कुछ दिन बाद ही युवराज का पंजाब की अंडर- 16 टीम में चुनाव हो गया। ये 1995 की बात है। 1996 में उनका चयन पंजाब अंडर- 19 टीम में हुआ। उन्होंने हिमाचल प्रदेश के खिलाफ 137 रन बना कर सबका ध्यान अपनी ओर खींचा। 1997 में उन्हें पंजाब की रणजी टीम में चुन लिया गया। लेकिन इस मैच में युवराज का प्रदर्शन बहुत खराब रहा। उन्हें ओपनर के रूप में उतारा गया और वे जीरो पर आउट हो गये। एक कैच भी छोड़ा। इसके बाद युवराज दो टीम से ड्रॉप कर दिया गया। उनको खराब फील्डर और कमजोर बल्लेबाज मान लिया गया। करीब दो साल तक उनका भविष्य अधर में रहा। युवराज ने खराब फील्डर के दाग को धोने के लिए मैदान पर घंटों अपना पसीना बहया। बल्लेबाजी को सुधारने पर पूरा ध्यान दिया। इसके अलवा उन्होंने अपनी स्पिन गेंदबाजी पर भी खूब मेहनत की। गुमनामी के इन दो सालों में युवराज ने इतनी मेहनत की कि उनका कायापलट हो गया।

युवराज के खेल का टर्निंग प्वाइंट-

युवराज के खेल का टर्निंग प्वाइंट-

1999 में पंजाब अंडर-19 कूच बिहार ट्रॉफी के फाइनल में पहुंचा था। पंजाब का मुकाबला बिहार से था। इस मैच में युवराज ने 358 रनों की बेमिसाल पारी खेली। इसके बाद युवराज का इंडिया अंडर-19 टीम में चुनाव हो गया। 1999 में श्रीलंका की अंडर -19 टीम भारत आयी थी। युवराज ने श्रीलंका के साथ तीसरे एकदिवसीय मैच में 55 बॉल पर 89 रनों की आतिशी पारी खेली थी। फिर तो युवराज की विस्फोटक बल्लेबाज के रूप में चर्चा होने लगी। दो साल बाद 1999 में युवराज का फिर पंजाब रणजी टीम में चयन हुआ। युवराज ने हरियाणा के खिलाफ शानदार 149 रन बना कर टीम में अपनी जगह पक्की कर ली। 2000 में अंडर-19 वर्ल्ड कप में युवराज ने अपने खेल से तहलका मचा दिया। भारत ने अंडर-19 का विश्वकप जीता। बैटिंग और बॉलिंग में शानदार प्रदर्शन के लिए युवराज को मैन ऑफ द टूर्नामेंट चुना गया। वे दुनिया के अकेले ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने जूनियर और सीनियर वर्ल्ड कप में मैन आफ दी सीरीज का खिताब जीता है। इस जूनियर टीम के कप्तान मोहम्मद कैफ थे। युवराज का खेल अब सरपट दौड़ने लगा था। एक उपयोगी ऑलराउंडर के रूप में उनका नाम चमकने लगा। आखिरकार 2000 में ही उनको भारतीय क्रिकेट टीम में चुन लिया गया। युवराज ने भारत के लिए 40 टेस्ट मैच खेले जिसमें तीन सेंचुरी और 11 हाफ सेंचुरी लगायी। उन्होंने 304 वनडे मैच खेले और कुल 8701 रन बनाये जिसमें 14 सेंचुरी और 52 हाफ सेंचुरी शामिल है।

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Story first published: Monday, June 10, 2019, 17:31 [IST]
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