नई दिल्ली। ओलंपिक के 32वें संस्करण में भारत के लिये शनिवार का दिन बेहद शानदार रहा, जहां पर महिला वेटलिफ्टर मीराबाई चानू ने वेटलिफ्टिंग में 202 किग्रा वजन उठाकर सिल्वर मेडल जीता और पदक तालिका में खेलों के पहले दिन ही भारत का खाता खोल दिया। मीराबाई चानू के इस ऐतिहासिक जीत के देश भरे से बधाई संदेश दिये जा रहे हैं। इस बीच मीराबाई चानू की 60 वर्षीय मां टोंबी देवी ने पुराने दिनों को याद करते हुए बताया कि कैसे मीराबाई चानू जंगल में लकड़ियां बिनने के लिये पास के जंगल में करीब आधा एकड़ दूर तक जाना पड़ता था।
शनिवार को जब भारत के लिये मीराबाई चानू ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाली 5वीं खिलाड़ी बनीं तो उनके माता-पिता समेत परिवार के 5 रिश्तेदार साइखोम रंजन, रंजना, रंजिता, नानव और सनातोंबा अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख सके। मीराबाई की मां ने इस बारे में बात करते हुए कहा कि 6 बच्चों में वह सबसे छोटी थी ओर उनके पिता मनिपुर के पब्लिक वर्क विभाग में करते थे। मीराबाई बेहद सीमित साधनों के साथ बड़ी हुई है और उसने अपनी मां को परिवार चलाने के लिये चाय की एक दुकान से दूसरी दुकान पर काम करते हुए देखा है।
मीराबाई की मां के अनुसार वह बचपन में एक तीरंदाज बनना चाहती थी लेकिन एक छोटी सी घटना ने उनका ध्यान वेटलिफ्टिंग की ओर खींचा। वह शहर से 20 किमी दूर इम्फाल में खुमान लंपक स्टेडियम का पता करने जा रही थी, जहां पर एशियन मेडलिस्ट अनीता चानू वेटलिफ्टिंग कोच थी और यहां पर मीराबाई ने ट्रॉयल्स दिये और बतौर ट्रेनी चुन ली गई।
उन्होंने कहा,'मीराबाई ने अपने दोस्तों और पड़ोसियों से वेटलिफ्टिंग सेंटर का पता कर लिया था और जब उन्होंने शारीरिक और बाकी के टेस्ट पास कर लिये तो उन्हें मौका मिला। वह एक नैचुरल वेटलिफ्टर नजर आ रही थी।'
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मीराबाई ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर पदक जीत कर अपना नाम हासिल किया। जिसके बाद 2016 में मीराबाई ने 192 किग्रा का भार उठाकर कुनजरानी के 12 साल पुराने नेशनल रिकॉर्ड को तोड़ दिया। इसके साथ ही मीराबाई ने रियो ओलंपिक में क्वालिफाई किया। हालांकि मीराबाई के लिये यह ओलंपिक कुछ खास नहीं बीता, वह एक बार फिर साफ तरीके से वजन उठा पाने में नाकाम रही और क्वालिफाई नहीं कर सकी।
यह खबर सुनने के बाद मीराबाई की बेहोश हो गई थी और उन्होंने पिछली बातों को याद करते हुए कहा कि मीराबाई काफी घबरा गई थी और उसने वेटलिफ्टिंग छोड़ने तक के बारे में सोच रही थी। उस वक्त मैंने उसे समझाया कि तुम्हे हमारा पूरा समर्थन हासिल है तो तुम्हे कोशिश करने से घबराना नहीं चाहिये। यह एक संघर्ष है और तुम संघर्ष के बीच में नहीं छोड़ सकती। जब भी उसे चोट लगती थी मैं सिर्फ प्रार्थना करती थी और कई दिनों तक सो नहीं पाती थी।