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BBC Hindi

साठ के हुए सुनील गावसकर

By Staff

एक ऐसा बल्लेबाज़, जिसने न केवल अपनी पहली ही सिरीज़ में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अपनी शैली का लोहा मनवाया बल्कि दुनिया के सबसे ख़तरनाक आक्रमण के सामने रनों का पहाड़ खड़ा करते हुए उनको उनके ही गढ़ में मात देने में अहम भूमिका निभाई.हम बात कर रहे हैं लिटिल मास्टर सुनील मनोहर गावसकर की. शुक्रवार को क्रिकेट की दुनिया का 'ठिगना बादशाह' 60 वर्ष का हो गया.

दशकों तक क्रिकेट की दुनिया में भारतीय बल्लेबाज़ी का झंडा बुलंद करने वाले सुनील गावसकर की चमक अभी भी फींकी नहीं पड़ी है. आज भले ही ट्वेन्टी-20 क्रिकेट का समय हो और बात सिर्फ़ आतिशी बल्लेबाज़ी की हो रही हो. लेकिन जब-जब क्रिकेट की दुनिया में बेहतरीन कौशल की बात होगी, सुनील गावसकर का नाम उसमें ज़रूर शुमार होगा.

10 जुलाई 1949 को मुंबई में जन्मे सुनील गावसकर ने अपना क्रिकेट करियर वेस्टइंडीज़ के तूफ़ानी आक्रमण के ख़िलाफ़ वर्ष 1971 में शुरू किया था. पोर्ट ऑफ़ स्पेन के क्वींस पार्क ओवल मैदान इस चमकते सितारे की प्रतिभा का साक्षी बना और उसके बाद इस लिटिल मास्टर ने कभी मुड़कर नहीं देखा.

तूफानी बल्लेबाजी

इस टेस्ट में भारत सात विकेट से जीता. गावसकर ने अशोक मनकड के साथ पारी की शुरुआत की. पहली पारी में उन्होंने 65 रन बनाए, तो दूसरी पारी में नाबाद 67. दुनिया ने एक ऐसी प्रतिभा को देखा जो न सिर्फ़ कलात्मक शॉट लगाता था, बल्कि उतनी ही मनोहारी रक्षात्मक बल्लेबाज़ी भी करता था. दुनिया स्तब्ध थी कि कैसे इस ठिगने खिलाड़ी ने तूफ़ानी आक्रमण की धज्जियाँ उड़ा कर रख दी.

गावसकर ने किसी को निराश नहीं किया और अगले ही टेस्ट में शतक लगाकर बता दिया कि वे क्रिकेट की दुनिया में लंबे समय तक टिकने आए हैं. अजित वाडेकर की कप्तानी में भारत ने पहली बार वेस्टइंडीज़ को उन्हीं के देश में मात दी और इसमें प्रमुख भूमिका निभाई सुनील गावसकर ने.

इस सिरीज़ के पाँच में से चार टेस्ट मैचों में गावसकर खेले और उन्होंने 774 रन बनाए. पोर्ट ऑफ़ स्पेन में हुए आख़िरी टेस्ट की पहली पारी में गावसकर ने 124 और दूसरी पारी में 220 रन बनाए. भारत ने सिरीज़ जीती और क्रिकेट की दुनिया में एक चमकते हुए सितारे का जन्म हुआ और अगले 16 साल क्रिकेट की दुनिया उसके ईर्द-गिर्द घूमती रही.

टेस्ट शतक का रिकॉर्ड

गावसकर की प्रतिभा का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने वेस्टइंडीज़ के ख़तरनाक आक्रमण के ख़िलाफ़ 65.45 की औसत से रन बनाए. कई वर्षों तक सुनील गावसकर के नाम सर्वाधिक टेस्ट रन (10,122) और सर्वाधिक टेस्ट शतक का रिकॉर्ड रहा. गावसकर ने 125 टेस्ट के अपने करियर में 34 शतक लगाए. बाद में सचिन तेंदुलकर ने दिसंबर 2005 में गावसकर के शतकों का रिकॉर्ड तोड़ा.

उनकी शानदार पारियों में शामिल है- 1976 में न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ ऑकलैंड में 116 रन, 1976 में ही वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ पोर्ट ऑफ़ स्पेन में 156 रन, 1978 में वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ मुंबई में 205 रन, उसी साल कोलकाता में वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ नाबाद 182 रन, 1979 में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ ओवल में 221 रन, 1980 में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ चेन्नई में 166 रन, 1981 में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ बंगलौर में 172 रन, 1982 में श्रीलंका के ख़िलाफ़ चेन्नई में 155 रन, 1983 में वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ जॉर्जटाउन में नाबाद 147 रन, 1983 में वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ चेन्नई में 236 रन, 1985 में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ एडिलेड में नाबाद 166 रन, 1986 में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ सिडनी में 172 रन, 1986 में श्रीलंका के ख़िलाफ़ कानपुर में 176 रन.

असफल कप्तानी

गावसकर ने अपना आख़िरी टेस्ट पाकिस्तान के ख़िलाफ़ बंगलौर में खेला था. मार्च 1987 में हुए इस टेस्ट मैच की पहली पारी में गावसकर ने 21 रन बनाए और दूसरी पारी में दुर्भाग्यपूर्ण तरीक़े से 96 रन पर आउट हो गए. सुनील गावसकर को कई बार भारतीय टीम की कप्तानी सौंपी गई. लेकिन कप्तान के रूप में वे ज़्यादा सफल नहीं हुए. कप्तान के रूप में उनकी रणनीति पर सवाल उठे और कुछ नया प्रयोग न कर पाने के कारण कई मैच ड्रॉ रहे.

उनकी कप्तानी में भारत ने नौ टेस्ट मैच जीते, आठ में हार मिली जबकि 30 टेस्ट मैच ड्रॉ रहे. सुनील गावसकर के साथ विवाद भी ख़ूब हुए. लेकिन उनके क्रिकेट करियर में सबसे ज़्यादा चर्चा 60 ओवर के एक मैच में उनकी नाबाद 36 रनों की पारी की होती है.

इंग्लैंड के 334 रनों के जवाब में भारत की टीम 60 ओवर में तीन विकेट पर 132 रन ही बना पाई थी. गावसकर ने पारी की शुरुआत की और 174 गेंदों का सामना किया और सिर्फ़ एक चौके की मदद से 36 रन बनाए.

गावसकर की इस पारी के पीछे कई तरह के कारण गिनाए जाते हैं. इनमें से एक कारण यह भी बताया जाता है कि वे वेंकटराघवन को कप्तान बनाए जाने से ख़ुश नहीं थे. तो ये भी कहा जाता है कि वे एक दिवसीय क्रिकेट के प्रति अपना विरोध जता रहे थे.

हालाँकि बाद में गावसकर ने ख़ुद कहा कि वे खेल की गति के मुताबिक़ अपने को ढाल नहीं पाए थे. वैसे भी एक दिवसीय क्रिकेट में गावसकर का रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है. 108 वनडे मैचों में गावसकर सिर्फ़ एक ही शतक लगा पाए. वनडे मैचों में उनका औसत 35.13 रहा जबकि टेस्ट मैचों में ये औसत 51.12 है.

विवादों से भरा कार्यकाल

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) की क्रिकेट समिति के प्रमुख के रूप में सुनील गावसकर का कार्यकाल विवादों से भरा रहा. बल्लेबाज़ों के लिए नियमों में बदलाव के लिए उनकी आलोचना तो हुई ही, पद पर रहते क्रिकेट कमेंट्री करने को लेकर भी विवाद हुए और आख़िरकार गावसकर ने आईसीसी का पद छोड़ दिया.

लेकिन गावसकर एक बेहतरीन क्रिकेट कमेंटेटर के रूप में आज भी बहुत लोकप्रिय हैं. उन्होंने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के सलाहकार के रूप में भी काम किया है.पद्मश्री से सम्मानित सुनील गावसकर को वर्ष 1994 में एक साल के लिए मुंबई का मानद शेरिफ़ भी नियुक्त किया गया था. सुनील गावसकर ने चार किताबें भी लिखी हैं, जिनमें से एक सनी डेज़ उनकी आत्मकथा है.

सुनील गावसकर के बेटे रोहन गावसकर ने भी भारत की ओर से कुछ एक दिवसीय मैच खेले हैं लेकिन वे अपनी टीम में स्थायी जगह नहीं बना पाए. साठ वर्ष के हो चुके सुनील गावसकर का नाम अब भी क्रिकेट की दुनिया में सम्मान के साथ लिया जाता है. आज के कई दिग्गज क्रिकेटरों के आदर्श हैं लिटिल मास्टर, जिनमें से एक हैं मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर.

BBC Hindi

Story first published: Tuesday, November 14, 2017, 12:23 [IST]
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