अगले सप्ताह से ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट शहर में होने जा रहे राष्ट्रमंडल खेलों में भारत की स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधू ध्वजवाहक होंगी.
साल 2014 में हुए पिछले ग्लास्गो राष्ट्रमंडल खेलों में उन्होंने कांस्य पदक भी जीता था. सिंधू तब बेहद शर्मिली, अपने आप में खोई सी रहने वाली और कोर्ट पर भी सिर झुकाकर खेलने वाली खिलाड़ी थीं. लेकिन अब उनके तेवर बदले नज़र आते हैं.
वह कोर्ट पर चिल्लाती हैं, मुट्ठिया भींचती हैं, फैशनेबल भी हो गई हैं, रैम्प पर भी वॉक करती हैं और विज्ञापनों में भी नज़र आती हैं.
राष्ट्रमंडल खेलों में भारत पूरे कर पाएगा 500 पदक?
कॉमनवेल्थ में मुक्कों से सोना जीत पाएंगे भारतीय?
यही पीवी सिंधू अब पदक की सबसे बड़ी उम्मीद भी हैं और वो भी सोने का तमगे दिलाने की.
इससे बेहतर संदेश बैडमिंटन खिलाड़ियों के लिए शायद ही कोई और हो.
इससे यह भी पता चलता है कि भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ियों पर भारतीय ओलंपिक संघ का भरोसा सबसे अधिक है.
बैडमिंटन को 1966 में जमैका में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में पहली बार शामिल किया गया था. तब भारत के दिनेश खन्ना वहां से कांस्य पदक लेकर आए थे.
वेटलिफ्टिंग में दिखा है दम और डोप का दंश
भारत अभी तक बैडमिंटन में पांच स्वर्ण, चार रजत और 10 कांस्य पदक समेत कुल 19 पदक जीत चुका है.
इनमें 1978 में प्रकाश पादुकोण, 1982 में सैयद मोदी और साल 2014 में पारुपल्ली कश्यप की स्वर्णिम कामयाबी शामिल है.
महिला एकल वर्ग में साल 2010 में दिल्ली में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में साइना नेहवाल ने स्वर्ण पदक जीता.
इतना ही नहीं साल 2010 में तो ज्वाला गुट्टा और अश्विनी पोनप्पा की जोड़ी ने भी महिला युगल में स्वर्ण पदक जीता.
इस बार महिला एकल वर्ग में पीवी सिंधू के अलावा साइना नेहवाल और पुरुष एकल वर्ग में के श्रीकांत और एच. एस. प्रणय पदक जीतने के सबसे बड़े दावेदार हैं.
वैसे पीवी सिंधू इन दिनों पूरी तरह फिट नहीं हैं. सिंधू इस समय दुनिया में तीसरे नम्बर की खिलाड़ी हैं. इस साल उन्होंने ऑल इंग्लैंड ओपन के सेमीफाइनल में अपनी जगह बनाई लेकिन वहां वह जापानी खिलाड़ी से मात खा गईं.
इससे पहले वह इंडियन ओपन बैडमिंटन टूर्नामेंट के फाइनल में अमरीका की झांग बीवेन के हाथों हारीं. ख़िताबी मुक़ाबला हाथ से फिसलने से वह ख़ुद से इतना नाराज़ हुईं कि प्रेस कांफ्रेंस तक में नहीं आईं.
जो भी हो रियो ओलंपिक की रजत पदक विजेता पीवी सिंधू पर भारतीय उम्मीदों का सबसे अधिक भार है.
वेटलिफ्टिंग में दिखा है दम और डोप का दंश
गुरु गोपी के पास लौटने से फिर पदक की दावेदार बनीं साइना
साल 2010 की चैंपियन साइना नेहवाल पिछले काफी समय से अपनी ऐड़ी की चोट से परेशान रही हैं.
इस चोट ने उनके प्रदर्शन पर गहरा असर डाला. यहां तक कि उन्होंने गुरु पुलेला गोपीचंद का साथ छोड़कर विमल कुमार की शरण ली. लेकिन वह दोबारा पुलेला गोपीचंद के पास लौटी.
उन्होंने पिछले साल राष्ट्रीय चैंपियनशिप के फाइनल में पीवी सिंधू को हराकर अपना दमख़म भी दिखाया.
पिछले साल उन्होंने मलेशिया मास्टर्स भी जीता. ग्लास्गो में साइना नेहवाल को कोई पदक नही मिला, लेकिन इस बार वह पदक की दावेदार हैं.
पुरुष एकल वर्ग में इस बार के श्रीकांत और एच एस प्रणय दोनों ही पदक के दावेदार हैं.
पिछले ग्लास्गो राष्ट्रमंडल खेलों के स्वर्ण पदक विजेता पारुपल्ली कश्यप इस बार टीम में शामिल नहीं हैं.
वह लगातार चोट का शिकार होकर अपनी लय खो चुके हैं.
श्रीकांत इस समय दुनिया के दूसरे नम्बर के खिलाड़ी हैं. पिछले साल उन्होंने फ्रेंच ओपन, डेनमार्क ओपन, ऑस्ट्रेलियन ओपन और इंडोनेशिया ओपन जीतकर तहलका मचा दिया था.
ऐसी उपलब्धि हासिल करने वाले वह पहले भारतीय खिलाड़ी बने.
के श्रीकांत बेहद आक्रामक खिलाड़ी हैं. ताक़तवर स्मैश उनके खेल की विशेषता है.
के श्रीकांत पिछले इंडियन ओपन में दूसरे दौर में ही हारे तो ऑल इंग्लैंड ओपन में भी दूसरे ही दौर में हार गए.
हांलाकि शीर्ष वरीयता हासिल डेनमार्क के विक्टर ऐक्सेलसन के हटने से ऐसा लगता था कि दोनों टूर्नामेंट उनके नाम होंगे.
एच एस प्रणय आल इंग्लैंड के क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे. उनकी यह फार्म भरोसा दिलाती है. प्रणय उलटफेर करने में भी माहिर माने जाते है.
यह उनका पहला राष्ट्रमंडल खेल है इसलिए उनके उत्साह में कोई कमी नहीं हैं.
पिछले साल उन्होंने अमरीकी ओपन भी जीता था.
पिछले ग्लास्गो राष्ट्रमंडल खेलों में पुरुष एकल वर्ग में गुरुसाई दत्त ने कांस्य पदक जीता था.
ग्लास्गो में बेहद अनुभवी ज्वाला गुट्टा और अश्विनी पोनप्पा ने महिला युगल वर्ग में रजत पदक जीता. अब अश्विनी पोनप्पा का साथ देने के लिए एन सिकी रेड्डी हैं. पिछले साल इस जोड़ी ने सैयद मोदी अंतराष्ट्रीय टूर्नामेंट जीता था.
अश्विनी पोनप्पा और एन सिकी रेड्डी
सात्विक साईराज रैंकी रेड्डी और चिराग शेट्टी
इस बार बैडमिंटन खिलाड़ी अगर नहीं चमके तो कब चमकेंगे, क्योंकि रैंकिंग में भारतीय खिलाड़ी अन्य देशों के मुकाबले काफी आगे हैं. इसी वजह से शुरुआती ड्रॉ भी आसान रहेगा.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)