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'कोई चिंकी कहता है तो कोई हाफ कोरोना', ज्वाला गुट्टा का छलका दर्द

नई दिल्ली। किसी पर नस्लीय टिप्पणी होना कोई नई बात नहीं है। अगर किसी को ट्रोल करना हो तो फिर लोग नस्ल व रंग को लेकर भेदभाव करना शुरू हो जाते हैं। ज्वाला गुट्टा भी नस्लीय टिप्पणियों का शिकार होती हैं। एक तरफ जहां पूरा देश कोरोना वायरस से लड़ने के लिए घर में बैठकर सावधानी बरत रहे हैं तो इस बीच भारत की पूर्व स्टार महिला बैडमिंटन खिलाड़ी ज्वाला गुट्टा सोशल मीडिया पर नस्लीय टिप्पणियों का शिकार रही हैं। कोई उन्हें चाइना का माल कह रहा है, कोई चिंकी तो कई हाफ कोरोना। ऐसा इसलिए क्योंकि कोरोना वायरस चीन से फैला तो इसके बहाने ज्वाला गुट्टा पर कमेंट आने शुरू हो गए। हालांकि लोगों के ऐसे बर्ताव पर ज्वाला गुट्टा का दर्द छलका है।

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किसी भारतीय को मलेलिया बुलाएं तो...

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ज्वाला गुट्टा ने एक न्यूज पेपर से बात करते हुए बताया कि जब वो किसी मुद्दे पर सहमति नहीं जताती हैं तो लोग उन्हेंचीन का माल, हाफ चीनी और चिंकी जैसी नस्लीय टिप्पणियां करते हैं। अब हाफ कोरोना शब्द भी जुड़ गया है। ज्वाला ने कहा, ''मुझे पता है कि लोग मेरा मजाक उड़ाते हैं। लेकिन यही लोग मेरे साथ फिर सेल्फी लेने के लिए भी आगे आ जाते हैं। चीनी मां की बेटी के रूप में बड़ा होना आसान नहीं है। एक भारतीय के तौर पर किसी को कोरोना और चाइनीज वायरस कहते हुए हम ये भूल जाते हैं कि हमारे यहां मलेरिया के भी बड़ी संख्या में मामले हुए थे और ट्यूबरक्लोसिस से हर साल दो लाख से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा देते हैं। जरा सोचिए कि अगर विदेश में कोई भारतीय सड़क पर घूम रहा हो और वहां के लोग उसे मलेरिया या टीबी कहकर बुलाएं तो कैसा महसूस होगा।

ज्वाला ने आगे कहा कि मेरी मां ने कभी नए कल्चर में ढलने में आई परेशानियों को लेकर शिकायत नहीं की। हालांकि यह आसान नहीं था। मेरा रंग भी साफ था। मगर मैंने कभी इस बात को नहीं समझा कि इसमें नस्लीय बिंदु भी शामिल है। मैं उन बच्चों को यही बात समझाने की कोशिश करती थी कि मेरा चेहरा थोड़ा बड़ा है, इसलिए मेरी आंखें छोटी लगती है। मगर जब मैंने बीसवें साल में प्रवेश किया, तब समझ आया कि इनमें से कुछ भी स्वीकार्य नहीं है। मैंने देखा कि नॉर्थईस्ट के लोगों को भी इसे लेकर हिंसा का सामना करना पड़ता है।

परदादा ने की थी टैगोर के साथ पढ़ाई

परदादा ने की थी टैगोर के साथ पढ़ाई

इसके अलावा ज्वाला ने अपने परदादा का भी जिक्र किया। ज्वालाने कहा कि मेरे परदादा भारत आए तो उन्होंने यहां आकर रवींद्रनाथ टैगोर के साथ पढ़ाई की थी। यहां तक कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उन्हें शांतिदूत नाम दिया था। वह सिंगापुर-चाइनीज न्यूजपेपर में चीफ एडीटर थे और महात्मा गांधी की आटोबायोग्राफी का अनुवाद करना चाहते थे। तभी मेरी मां उनकी मदद के लिए भारत आईं।

चीनी लोग बेहद परिश्रमी होते हैं

चीनी लोग बेहद परिश्रमी होते हैं

भारतीय बैडमिंटन स्टार ने बताया कि मैं साल 2002 में ग्वांगझू गई थी। वहां मैंने देखा कि आखिर क्यों ये देश ओलिंपिक पदक तालिका में शीर्ष पर रहता है। वे लोग ढाई घंटे का लंच ब्रेक लेते हैं और वहां सड़कों पर भी खेल की टेबल लगी रहती हैं। वहां सुनिश्चित किया जाता है कि लोग अधिक से अधिक शारीरिक गतिविधियों में हिस्सा ले सकें। चीनी लोग बेहद परिश्रमी होते हैं।

Story first published: Monday, April 6, 2020, 15:37 [IST]
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