3 साल में नहीं मिला नंबर-4 का बल्लेबाज :
2015 विश्व कप में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमीफाइनल में मिली हार के बाद पिछले तीन साल में टीम इंडिया में एक पोजिशन के लिए कम से कम 6 खिलाड़ियों को आजमाया जा चुका है लेकिन भारतीय टीम में यह जगह अभी भी वैकेंट है। लोकेश राहुल,केदार जाधव, मनीष पांडे, हार्दिक पांड्या, दिनेश कार्तिक, अजिंक्य रहाणे वो बल्लेबाज हैं जिन्हें खूब मौके मिले लेकिन अगले ODI मैच में नंबर-4 पर कौन खेलेगा यह कयास का विषय बन जाता है. वहीं अगर मौजूदा सीरीज की ही बात करें तो इंग्लैंड की सीरीज जीत में जिन खिलाड़ियों ने अहम भूमिका निभाई उसमें नंबर-3 पर जो रुट और नंबर-4 पर कप्तान इऑन मॉर्गन खेलने आए थे। इन दो खिलाड़ियों ने टीम इंडिया को पूरी सीरीज में आउटप्ले कर दिया। सौरव गांगुली ने इंग्लैंड सीरीज से ठीक पहले विराट को ODI में इसी क्रम पर खेलने की बात कही थी लेकिन कप्तान कोहली ने सिर्फ एक बार लोकेश राहुल को नंबर-3 पर भेजा और परिणाम सबके सामने है। सवाल यह उठता है कि आखिर विश्व कप में कौन होगा टीम इंडिया का नंबर-4. जवाब सिर्फ कोहली और टीम मैनेजमेंट के पास है। क्रिकेट पंडित तब तक कयास लगाते रहेंगे कि टीम को मजबूती देने के लिए आखिर कप्तान को खुद नंबर-4 पर खेलना चाहिए या फिर किसी खिलाड़ी को यह स्लॉट फिक्स कर देना चाहिए।
मध्यम क्रम की लचर होती रीढ़ :
क्रिकेट के किसी भी प्रारूप में टीम का मध्यम क्रम उसकी रीढ़ माना जाता हो, 2011 विश्व कप जीतने वाली टीम इंडिया के विश्व विजेता बनने के पीछे सबसे बड़ी वजह विराट,युवराज,धोनी और रैना जैसे धाकड़ बल्लेबाज की मौजूदगी थी। जिन्होंने अपनी शानदार बल्लेबाजी से टीम को 28 साल बाद विश्व चैंपियन बनाया था लेकिन मौजूदा टीम के मध्यम क्रम की बात करें तो पिछले तीन सालों में फिसड्डी साबित हुए हैं। लॉर्ड्स ODI में मिली हार के बाद कप्तान कोहली ने चिंता जताई थी कि वर्ल्ड कप से पहले टीम इंडिया को इस क्षेत्र में सबसे अधिक काम करना है। नंबर-4 पर रहाणे को कई मौके मिले लेकिन वो उसका फायदा नहीं उठा पाए, पांडे को भी प्रतिभा दिखाने का मौका मिला लेकिन ढाक के तीन पात, कार्तिक फॉर्म में हैं लेकिन उन्हें कम मौके मिले। अगर अंबाती रायडू समय से फिट हो जाते हैं तो शायद इंग्लैंड में खेला गया रैना का ODI मैच कहीं आखिरी न हो जाए। पिछले तीन सालों में रोहित, धवन और कोहली (टॉप-3) ने भारतीय टीम के लिए 59 फीसदी रन बनाए हैं। पिछले आठ मैचों में इन तीनों में से किसी एक ने शतक जड़ा है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि अनुभव से ज्यादा तरजीह शायद फॉर्म को मिले और लोकेश या रायडू इस नंबर पर एक बेहतर विकल्प हो सकते हैं।
कौन होगा टीम इंडिया का तारणहार :
भारत में कुछ क्रिकेट खिलाड़ियों को हाल के दिनों में आवश्यकता से अधिक तवज्जो दी जाने लगी है। बेंच स्ट्रेंथ मजबूत होने के बावजूद टीम इंडिया को अभी भी एक ऐसे अदद ऑल राउंडर की तलाश है जो टीम की जीत में हैंडी साबित हो। हार्दिक पांड्या के टीम में आते ही उन्हें 'दूसरा कपिलदेव' तक कहा जाने लगा लेकिन अब तक के प्रदर्शन के आधार पर अगर उनका मूल्यांकन किया जाए तो उनके लिए 'नाम बड़े और दर्शन छोटे' साबित हुए। पाकिस्तान के खिलाफ चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल को छोड़ पांड्या शायद ही भारतीय टीम की जीत में कोई आश्यचर्यजनक प्रदर्शन कर पाए हैं जैसी उनसे उम्मीद की जा रही है। 2011 विश्व कप में कुछ ओवर गेंदबाजी और बाद में लोअर मिड्डल ऑर्डर में शानदार गेंदबाजी कर सुरेश रैना ने अहम भूमिका निभाई थी लेकिन पांड्या निरंतर बढ़िया प्रदर्शन करने में अब तक बहुत सफल नहीं हुए हैं।
20-40 ओवर के बीच कौन होगा मोजो मैन :
टीम इंडिया के मिड्डल ऑर्डर बल्लेबाजी की तरह गेंदबाजी भी भगवान के भरोसे ही चल रही है। लग गया तो तीर नहीं तो तुक्का। टीम को मिली जीत तो स्पिन सेंसेशन और हुई हार तो विकल्प की कमी का बहाना। किसी एक गेंदबाज पर आवश्यकता से अधिक डिपेंडेंसी टीम इंडिया के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है। धोनी युग में अश्विन-जडेजा के कंधों पर यह भार था अब विराट के टेन्योर में कुलदीप-चहल के दुबले पतले कंधों पर बोझ बन गया है। यह टीम इंडिया की दशकों से चली आ रही समस्या है जिसका इलाज अब तक नहीं हो पाया है। हेडिंग्ले में इंग्लैंड के खिलाफ आख़िरी ODI में भी कुछ ऐसा ही हुआ। चहल और कुलदीप की स्पिन सेंसेशन कही जाने वाली जोड़ी पानी मांगते नजर आए। जिस जो रुट को कुलदीप ने VIDEO देखने से कुछ नहीं होगा कि चुनौती दी उस खिलाड़ी ने न सिर्फ बढ़िया तरीके से उन्हें खेला बल्कि दो ODI में लगातार दो शतक जड़ दिए. वर्ल्ड कप इंग्लैंड और वेल्स में होने वाले हैं इस लिहाज से बनी विदेशी पिचों पर अगर बीच के ओवरों में स्पिनर रन लुटाते रहे तो विश्व चैंपियन बनने का सपना कहीं सपना न रह जाए। अश्विन और जडेजा को ODI टीम में शायद ही जगह मिले लेकिन अगले 5 टेस्ट मैचों में वो बेहतर प्रदर्शन करें तो शायद वो अनुभव और प्रदर्शन के दम पर अपनी दावेदारी को और मजबूती से पेश कर पाएं।
डेथ ओवर में और धार की दरकार :
विश्व कप के बाद पिछले तीन सालों की बात करें तो टीम इंडिया के लिए सबसे चिंता का सबब डेथ ओवर की गेंदबाजी है। पिछले दो साल में टीम इंडिया के लिए जसप्रीत बुमराह डेथ ओवर की गेंदबाजी की सबसे बड़ी खोज रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पिछले दो सालो में ODI की 9 टीमों ने अंतिम के 10 ओवर में 7.27 की औसत से रन बनाए हैं। लेकिन रनों की इस बारिश में कुछ ऐसे गेंदबाज हैं जिन्होंने अपनी धारदार गेंदबाजी से पूरी दुनिया में नाम कमाया है। जसप्रीत बुमराह इस आंकड़े में शीर्ष पर हैं और पिछले 24 महीनों में 305 गेंदें फेंककर कुल 24 विकेट अर्जित किए हैं और 6.49 की औसत से रन दिए हैं। टीम इंडिया के स्विंग सेंसेशन भुवनेश्वर कुमार ने डेथ ओवरों में 312 गेंदों में 12 विकेट चटकाए हैं और 7.50 की औसत से रन खर्च किए हैं। टीम इंडिया की इन दो गेंदबाजों पर अधिक डिपेंडेंसी ही घातक साबित हो रही है। इनकी गैरमौजूदगी में कोई भी गेंदबाज इनके करींबी नहीं पहुंच पाया है। ऐसी स्थिति में इन दो दिग्गज खिलाड़ियों में से किसी एक का भी चोटिल हो जाना टीम के लिए घातक साबित होता है और परिणाम स्वरुप सीरीज में हार मिलती है। टीम इंडिया को अभी भी 16/17 प्रस्तावित ODI खेलने हैं. टीम इंडिया के विश्व कप की तैयारी को पूरा करने के लिए अब महज 360 दिनों का वक्त बचा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या टीम इंडिया बांकी बचे समय में खुद को विश्व कप के लिए तैयार कर पाती है या सिर्फ कोहली सिर्फ मुंह से से 'टफ और रूथलेस' क्रिकेट खेलते रहेंगे।