इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेली जानी वाली एशेज सिरीज़ का नतीज़ा चाहे कुछ भी हो लेकिन मोइन अली ब्रितानी एशियाई लोगों के बीच बड़े सितारे रहेंगे.
इस मुस्लिम ऑलराउंडर का कहना है कि वे सभी मजहब के लोगों को प्रेरित करते रहेंगे.
बीबीसी न्यूज़बीट से एक ख़ास बातचीत में कहा, "मैं चाहता हूं कि लोग मेरी तरफ़ देखें और मेरे जैसा बनें. सारे मुसलमान ख़राब नहीं होते हैं."
एक मुसलमान के तौर पर इंग्लैंड के लिए क्रिकेट खेलने से मोइन की ज़िंदगी में क्या फर्क पड़ा और वो भी ऐसे वक्त में जब उनके धर्म को आलोचनाओं से गुजरना पड़ रहा है.
मोइन अली कहते हैं, "लोगों के दिमाग में कई तरह की नकारात्मक बातें हैं. मुझे उम्मीद है कि मैं अलग-अलग धर्मों के लोगों को प्रेरित कर सकूंगा ताकि वे जिस राह पर चलना चाहते हैं, उन्हें उसे करने में डर न लगे. चाहे वे क्रिकेट खेलना चाहें या कोई और खेल या वे जो भी करना चाहें."
मोइन ब्रिटेन के उन गिने चुने एशियाई लोगों में से हैं इंग्लैंड के लिए टॉप लेवल पर खेले हैं.
नवंबर, 2016 में जब मोइन अली को राजकोट में भारत के ख़िलाफ़ टेस्ट खेलने के लिए टीम में शामिल किया गया तो उन्होंने इतिहास बनाने में मदद की थी.
मोइन अली के साथ आदिल रशीद, हसीब हमीद और ज़फ़र अंसारी भी तब इंग्लिश टीम का हिस्सा बने थे.
ये पहली बार था कि चार ब्रितानी एशियाई इंग्लैंड की की क्रिकेट टीम के लिए चुने गए थे.
ब्रिटेन के लिए इसे एक ऐतिहासिक क्षण क़रार दिया गया लेकिन साल भर बाद केवल मोइन अली ही ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ इंग्लैंड के लिए खेल रहे थे.
मोइन अली के उदय की कहानी इंग्लैंड में खेलने वाले एशियाई क्रिकेटरों में अपने आप में एक अनोखा मामला है.
उन्होंने बताया, "जब मेरी उम्र 13 साल से 15 साल के बीच था तो मेरे पिता ने मुझसे केवल इतना कहा कि स्कूल के बाद हर दिन दो घंटे प्रैक्टिस करो. उसके बाद तुम्हारा जो दिल करे, वो करो. मुझे याद है कि मेरे पिता मुझे खेल के लिए ले जाते थे. वो रात भर टैक्सी चलाते थे, सुबह छह बजे घर आते थे और नौ बजे मुझे ले जाते थे. उन्होंने मेरे क्रिकेट के लिए अपनी पूरी ज़िंदगी लगा दी."
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