हैदराबाद। कानपुर के कुलदीप यादव की सफलता वाकई परीकथा सरीखी है। कुलदीप ने जब क्रिकेट खेलना शुरू किया तो तो वो तेज गेंदबाज बनना चाहते थे। इसी दौरान वो क्रिकेट कोच कपिल पांडे के संपर्क में आये। कपिल ने उनकी गेंदबाजी देख उन्हें स्पिनर बनने की सलाह दी। कोच की सलाह पर खब्बू कुलदीप ने जो पहली गेंद फेंकी वो चाइनामैन थी। ये देखकर कपिल पांडे के चेहरे पर चमक आ गयी।
उन्होंने ठान लिया कि वो कुलदीप को चाइनामैन गेंदबाजी के ऐसे गुर सिखाएंगे कि वो एक दिन देश के लिये खेलेगा। वैसे भी उस समय तक देश में कोई भी चाइनामैन गेंदबाज नहीं था। कुलदीप के साथ कोच ने जो मेहनत की उसने आज कुलदीप को भारतीय टीम में स्थान दिला दिया है। दरअसल चाइनामैन गेंद उस बाल को कहते हैं जब कोई बायें हाथ का स्पिनर दाहिने हाथ के बल्लेबाज के लिये गेंद को आफ स्टंप से अंदर को स्पिन कराता है।
कुलदीप ने जो पहली गेंद फेंकी वो चाइनामैन थी
बायें हाथ के बल्लेबाज के लिये चाइनामैन गेंदबाज की गेंद बाहर को निकलती है। कुलदीप ने सालों की मेहनत से इस कला में महारत हासिल की। नतीजा सामने है उनका चयन वेस्टइंडीज के खिलाफ वनडे टीम में हुआ। बिना रणजी खेले सीधे टीम इंडिया में इंट्री कम ही लोगों को मिलती है। यहां तक कि लिविंग लीजेंड सचिन तेंडुलकर भी रणजी, दलीप और देवधर ट्राफी खेलने के बाद ही टीम में चुने गये थे। सचिन ने इन तीनों प्रतियोगिताओं में अपने पहले ही मैच में शतक लगाया था।
घर में प्यार से कुलदीप को गुड्डू कहकर बुलाया जाता है
कानपुर के रहने वाले कुलदीप एक साधारण परिवार से हैं। उनके पिता राम सिंह यादव ईंट भट्ठे का काम करते हैं। मां उषा यादव गृहणी हैं। घर में प्यार से कुलदीप को गुड्डू कहकर बुलाया जाता है। टीम के साथी मैदान पर उन्हें 'केडी' कहकर संबोधित करते हैं। कुलदीप शेन वार्न को अपना आदर्श मानते हैं और उन्हीं की तरह गेंदबाजी से दुनियाभर में नाम कमाना चाहते हैं।