तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
For Quick Alerts
ALLOW NOTIFICATIONS  
For Daily Alerts
 

1987 के विश्व कप ने नवजोत सिद्धू को बनाया था 'जीरो' से 'हीरो', फिर छा गए 'गुरु'

By Ashok Kumar Sharma

नई दिल्ली। पंजाब के कला, पर्यटन और संस्कृति मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के लिए क्रिकेट का चौथा विश्वकप यादगार लम्हा है। इस प्रतियोगिता में सिद्धू ने कई लाजवाब पारियां खेली और वे देखते -देखते 'सिक्सर सिद्धू' के नाम से मशहूर हो गए। रिलायंस विश्वकप क्रिकेट ने ही सिद्धू के मंद हो चले क्रिकेट करियर को रफ्तार दी थी। 1987 में वे चमके तो फिर कई साल तक क्रिकेट की दुनिया में छाये रहे। क्रिकेट से मिली मकबूलित ने उन्हें टेलीविजन का चर्चित चेहरा बनाया। टेलीविजन पर शेरोशायरी से सजी लच्छेदार भाषा का सिक्का जमाया तो राजनीतिक पारी खेलने का मौका मिल गया। पहले भाजपा में गये अब कांग्रेस के लिए बल्लेबाजी कर रहे हैं।

1987 का विश्वकप और छक्कों पर इनाम

1987 का विश्वकप और छक्कों पर इनाम

क्रिकेट की अब तक तीनों विश्वकप प्रतियोगिता इंग्लैंड में हुई थी। 1987 में चौथा विश्वकप भारत-पाकिस्तान की संयुक्त मेजबानी में हुआ। इस प्रतियोगिता में एक बड़ा बदलाव किया गया था। पहले यह 60 ओवरों का मैच होता था। 1987 में 50 ओवरों का मैच कर दिया गया था। भारत की मशहूर कंपनी रिलायंस ने इस प्रतियोगिता को प्रायोजित किया था। रिलायंस ने भारतीय खिलाड़ियों में जोश भरने के लिए एक छक्के पर छह हजार रुपये का इनाम देने की घोषणा की थी । इस इनामी घोषणा से जिस बल्लेबाज ने सबसे अधिक फायदा उठाया वे नवजोत सिंह सिद्धू ही थे।

धोनी को लेकर खुलासा, जब कप्तान थे तो खिलाड़ियों पर 10 हजार का जुर्माना लगाना चाहते थे

यूं बदल गई सिद्धू का जिंदगी

यूं बदल गई सिद्धू का जिंदगी

नवजोत सिंह सिद्धू के पिता भगवंत सिंह भी क्रिकेट खिलाड़ी थे। लेकिन उनका करियर पंजाब तक ही सिमट गया था। तब उन्होंने अपने बेटे नवजोत को कामयाब क्रिकेटर बनाने का निश्चय किया। उन्होंने नवजोत के खेल को निखारने के लिए दिनरात मेहनत की। मेहनत रंग लायी। 1981 में नवजोत का पंजाब की टीम में चयन हुआ। रणजी ट्राफी में अच्छा प्रदर्शन किया। 1983 में वेस्टइंडीज की टीम भारत आयी हुई थी। नवजोत सिद्धू ने नॉर्थ जोन की टीम से खेलते हुए वेस्टइंडीज जैसी शक्तिशाली टीम के खिलाफ 122 रनों की शानदार पारी खेली। इस शतक ने उनका भारतीय टीम में आने का रास्ता खोल दिया। सिद्धू भारतीय टीम में चुने गये। तीसरे टेस्ट में दिलीप वेंगसरकर घायल हो गये तो सिद्दू को टेस्ट करियर शुरू करने का मौका मिला। वे वेंगसरकर की तरह वन डाउन खेलने आये। अभी 15 रन ही बने थे कि वे रनआउट हो गये। दूसरी पारी में सिद्धू ने केवल 4 रन बनाये और होल्डिंग का शिकार बन गये। इसी टेस्ट में कपिल ने एक पारी 9 विकेट लिये थे लेकिन भारत मैच हार गया था। इस लचर प्रदर्शन से सिद्धू को अगले दो टेस्ट मैचों से बाहर कर दिया गया। उनकी जगह अशोक मलहोत्रा को चुना गया। छठे और अंतिम टेस्ट में सिद्धू को एक बार फिर टीम में शामिल किया गया। इस मैच में गावस्कर ने ओपन नहीं किया था। आंशुमन गायकवाड़ के साथ सिद्धू सलामी बल्लेबाज के रूप में उतरे। सिद्धू ने 20 रनों की पारी खेली। दूसरी पारी में बैटिंग का मौका नहीं मिला। इस प्रदर्शन के बाद सिद्धू टीम से ड्रॉप हो गये।

चार साल बाद शानदार वापसी

चार साल बाद शानदार वापसी

1983 में टेस्ट टीम से बाहर होने के बाद सिद्धू चार साल तक गुमनामी के अंधेरे में खोये रहे। जब सिद्धू टेस्ट टीम से बाहर हुए थे तब एक अंग्रेजी अखबार के लेख में उन्हें स्ट्रोकविहीन बल्लेबाज बताया गया था । सिद्धू के पिता ने ये अखबार उन्हें दिया। सिद्धू उस लेख की कटिंग अपने आल्मारी पर चिपका दी। फिर स्ट्रोक प्लेयर बनने की जिद ठान ली। पिता ने उन्हें रोज 300 छक्के लगाने का टास्क दिया। वे सुबह में स्टेडियम जाते और छक्के लगाने की प्रैक्टिस करते। वे अभ्यास करते रहे। चार साल तक चयनकर्ताओं ने सिद्धू को भुलाये ऱखा। कोई दूसरा खिलाड़ी होता तो खेलने की उम्मीद छोड़ देता। लेकिन सिद्धू को खुद पर भरोसा था। इसी बीच 1987 की विश्वकप प्रतियोगिता आ गयी। तब तक ये मशहूर हो चुका था कि सिद्धू छक्का लगाने में माहिर हैं। चार साल बाद फिर उनका चयन भारतीय टीम में हुआ।

कप्तानी पर सवाल उठाने वालों को विराट कोहली ने दिया करारा जवाब

1987 के विश्वकप में सिद्धू के छक्के

1987 के विश्वकप में सिद्धू के छक्के

विश्व कप का तीसरा मैच भारत और आस्ट्रेलिया के बीच खेला गया। इस मैच से सिद्धू ने अपने वनडे करियर की शुरुआत की। आस्ट्रेलिया ने पहले बैटिंग की और 270 रन बनाये। मार्श ने 110 रनों का पारी खेली। जबाब में भारत की शुरुआत अच्छी रही। गावस्कर और श्रीकांत ने 69 रनों की साझेदारी की। गावस्कर 37 रन बना कर आउट हो गये। श्रीकांत ने 70 रन बनाये। पहले विकेट के पतन के बाद सिद्धू मैदान पर उतरे। उन्होंने 73 रनों की तेज तर्रार पारी खेली जिसमें 4 चौके और 5 छक्के शामिल थे। सिद्धू ने चार साल बाद वापसी की और पहले ही मैच में पांच छक्के ठोक डाले। एक समय भारत छह विकेट पर 246 रना बना कर जीतने की स्थिति में था । लेकिन अचानक विकेटों की पतझड़ शुरू हो गयी और भारत ये मुकाबला एक रन से हार गया।

सिद्धू ने लगाए चार अर्द्धशतक

सिद्धू ने लगाए चार अर्द्धशतक

भारत का दूसरा मैच न्यूजीलैंड से हुआ। इस मैच में सिद्धू ने 75 रनों की पारी खेली जिसमें 4 छक्के लगाये। भारत ये मैच 16 रनों से जीत गया। भारत का तीसरा मैच जिम्बाब्वे से हुआ। इस मैच में सिद्धू को बैटिंग का मौका नहीं मिला। भारत का चौथा मैच फिर आस्ट्रेलिया से हुआ। इस मैच में फिर सिद्धू ने अर्द्धशतक (51) लगाया लेकिन कोई छक्का नहीं मार सके। भारत ने ये मैच 56 रनों से जीता था। अपने पांचवें मैच में भारत फिर जिम्बाब्वे से भिड़ा। इस मैच में सिद्धू ने 55 रनों की पारी खेली जिसमें 5 चौका और एक छक्का शामिल था। भारत ने 7 विकेट से ये मैच जीता। छठे मैच में भारत का फिर न्यूजीलैंड से मुकाबला हुआ। इस मैच में गावस्कर ने एकदिवसीय मैचों का पहला शतक लगाया था। सिद्धू को बैटिंग का मौका ही नहीं मिला और भारत नौ विकेट से ये मैच जीत गया। इस प्रतियोगिता में उन्होंने चार अर्द्धशतक ठोके। उन्होंने कुल 10 छक्के लगाये। इसके बाद नवजोत को सिक्सर सिद्धू कहा जाने लगा। भारत सेमीफाइनल में पहुंचा लेकिन इंग्लैंड से हार गया। सेमीफाइनल में सिद्धू ने केवल 22 रन बनाये थे। विश्वकप के बाद सिद्धू भारतीय टीम के भरोसेमंद सदस्य बन गये थे। फिऱ उन्होंने 51 टेस्ट और 136 वनडे खेले।

Story first published: Wednesday, May 15, 2019, 17:14 [IST]
Other articles published on May 15, 2019
POLLS
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Yes No
Settings X