BBC Hindi

विवेचनाः वो कप्तान जिसने भारतीय टीम को जीतना सिखाया

By Bbc Hindi

मज़ाक में कहा जाता है कि 7 लोक कल्याण मार्ग पर रहने वाले शख़्स के बाद भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी करना शायद देश का सबसे कठिन काम है. कम से कम साठ के दशक में तो ये बिल्कुल सच था.

उस ज़माने में भारतीय टीम में एक-दो अच्छे खिलाड़ी ज़रूर थे, लेकिन उन्हें जीत का स्वाद चखने की आदत नहीं पड़ी थी. तेज़ गेंदबाज़ी का आलम ये था कि विकेटकीपर रहे बूधी कुंदरन पहला ओवर फेंका करते थे.

किसी रणनीति के तहत नहीं, बल्कि इसलिए कि पूरी टीम में कोई तेज़ गेंदबाज़ था ही नहीं.

'एक आंख, एक पैर' से ठसक जमाने वाला टाइगर

कॉन्ट्रैक्टर का सिर फटने के बाद बने कप्तान

'डेमोक्रेसीज़ इलेवनः द ग्रेट इंडियन क्रिकेट स्टोरी' लिखने वाले राजदीप सरदेसाई बताते हैं कि जब पटौदी भारतीय टीम के कप्तान बने तो उनकी उम्र थी मात्र 21 वर्ष और 70 दिन. बहुत ही अप्रिय हालात में उन्हें ये ज़िम्मेदारी दी गई.

1 मार्च, 1962 को बारबडोस के साथ मैच में उस समय दुनिया के सबसे तेज़ गेंजबाज़ चार्ली ग्रिफ़िथ की गेंद भारतीय कप्तान नारी कॉन्ट्रैक्टर के सिर में लगी और वो वहीं धराशाई हो गए.

चोट इतनी ज़बरदस्त थी कि कॉन्ट्रैक्टर के नाक और कान से ख़ून निकलने लगा. टीम के मैनेजर ग़ुलाम अहमद ने उप कप्तान पटौदी को सूचित किया कि अगले टेस्ट में वो भारतीय टीम की कप्तानी करेंगे.

इस तरह पटौदी युग की शुरुआत हुई जिसने भारतीय क्रिकेट को नई परिभाषा दी.

पॉली उमरीगर कैसे बने 'पाम-ट्री हिटर'

बल्लेबाज़ी नहीं कप्तानी की वजह से टीम में शामिल

पटौदी ने भारत के लिए 47 टेस्ट खेले जिनमें 40 टेस्टों में उन्होंने भारत की कप्तानी की, मानो कप्तानी उनका जन्मसिद्ध अधिकार हो. इनमें से सिर्फ़ 9 टेस्टों में उन्होंने जीत दर्ज की और 19 बार वो हारे.

ये इस तरह का रिकॉर्ड नहीं था जिस पर गर्व किया जा सके. लेकिन आंकड़े मात्र से इस बात का आभास नहीं दिया जा सकता कि भारत के लिए पटौदी की कप्तानी के मायने क्या थे.

बिशन सिंह बेदी का मानना है कि भारतीय क्रिकेट में पटौदी हर किसी से कम से कम सौ साल आगे थे.

उनकी टीम के एक और सदस्य प्रसन्ना कहते हैं कि क्लास और लीडरशिप क्या होती है, इसका अंदाज़ा पटौदी के मैदान में उतरने के ढंग से लग जाता था. शायद दुनिया में दो ही खिलाड़ी ऐसे हुए हैं जिन्हें उनकी कप्तानी की वजह से टीम में शामिल किया जाता था. एक थे इंग्लैंड के कप्तान माइक ब्रेयरली और दूसरे मंसूर अली ख़ाँ पटौदी.

'हर कोई पूछता है मिताली राज शादी कब करेगी?'

खुद न खेलेने की पेशकश की

पटौदी के भांजे और दक्षिण क्षेत्र की ओर से खेलते हुए वेस्ट इंडीज़ के ख़िलाफ़ शतक जड़ चुके साद बिन जंग बताते हैं, "1975 में वेस्ट इंडीज़ के दौरे से पहले मैं दिल्ली में अपने घर के पीछे सीमेंट की पिच पर पटौदी को अभ्यास करा रहा था. उन्होंने मुझसे कहा कि मैं 15 गज़ की दूरी से प्लास्टिक की गेंद से जितनी तेज़ गेंदबाज़ी कर सकता हूँ, उन्हें करूँ. दो तीन गेंद तो उन्होंने खेल लीं, लेकिन चौथी गेंद पर वो बोल्ड हो गए. दो गेंद बाद साद ने उन्हें फिर बोल्ड कर दिया. पटौदी बहुत परेशान हो कर बोले कि उन्हें गेंद दिखाई ही नहीं दी."

वो कहते हैं, "उन्होंने फ़ौरन चयन समिति के अध्यक्ष राज सिंह डूंगरपुर को फ़ोन मिला कर कहा कि उन्हें वेस्ट इंडीज़ के ख़िलाफ़ टीम में न चुना जाए, क्योंकि वो गेंद को देख नहीं पा रहे हैं. ये सुनते ही राजसिंह हंसे और बोले, पैट हम आपको आपकी बल्लेबाज़ी के लिए नहीं, बल्कि आपकी कप्तानी के लिए भारत की टीम में चुन रहे हैं."

क्रिकेट में तहलका मचाने उतरीं कश्मीरी लड़कियां

पिटने पर भी चंद्रशेखर को नहीं हटाया

पटौदी ने राज सिंह डूंगरपुर को निराश नहीं किया और 0-2 से पिछड़ रही भारतीय टीम को वो कलकत्ता और मद्रास टेस्ट जीत कर 2-2 की बराबरी पर ले आए.

उस टीम के सदस्य प्रसन्ना याद करते हैं, "कलकत्ता टेस्ट के चौथे दिन की रात पटौदी ने मेरे कमरे का दरवाज़ा खटखटाया और बोले, देखो विकेट टर्न कर रही है. रनों के बार में चिंता मत करो. मैं चाहता हूँ कि तुम और चंद्रशेखर वेस्ट इंडीज़ के खिलाड़ियों को आउट करो."

बिल्कुल यही हुआ. लॉयड ने चंद्रशेख़र की गेंद पर लगाचार दो चौके लगाए, लेकिन पटौदी ने उन्हें नहीं हटाया. अगले ही ओवर में चंद्रशेखर ने उन्हें विश्वनाथ के हाथों कैच करवा कर पवेलियन का रास्ता दिखा भारत की जीत का रास्ता खोल दिया.

धोनी का वनडे क्रिकेट में अनोखा शतक

कार दुर्घटना में आँख गई

पटौदी का क्रिकेट करियर और अधिक परवान चढ़ता अगर 20 साल की उम्र में उनके साथ एक दुर्घटना न हुई होती.

1 जुलाई, 1961 को ब्राइटन में ससेक्स के साथ मैच ख़त्म होने के बाद ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय के सब खिलाड़ी तो मिनी वैन में बैठ कर चले गए लेकिन पटौदी ने विकेटकीपर रॉबिन वालटर्स के साथ मौरिस 1000 कार में जाने का फ़ैसला किया. कार अभी थोड़ी दूर ही गई थी कि उसे सामने से आती कार ने टक्कर मार दी.

ऑक्सफ़र्ड टीम के एक और भारतीय सदस्य जिन्होंने भारत के लिए 10 टेस्ट मैच खेले, अब्बास अली बेग याद करते हैं, "हमने पटौदी को अपनी दाहिनी आँख को दबाए कार से बाहर आते देखा. उनकी आँख से ख़ून निकल रहा था. उस समय मुझे ऐसा नहीं लगा कि ये बड़ा एक्सिडेंट था. हमने सोचा कि अस्पताल में मलहम पट्टी के बाद वो ठीक हो जाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ."

उन्होंने कहा, "कार के शीशे का एक टुकड़ा उनकी आँख में जा घुसा था. उसकी सर्जरी हुई. लेकिन उनकी आँख ठीक नहीं हो सकी. जब उन्होंने कुछ दिन बाद क्रिकेट खेलने की कोशिश की तो उन्हें अपनी तरफ़ दो गेंदे आती दिखाई देती थीं और वो भी छह इंच की दूरी पर."

बाद में पटौदी ने अपनी आत्मकथा 'टाइगर्स टेल' में लिखा, "जब मैं लाइटर से अपनी सिगरेट जलाने की कोशिश करता था, तो मैं उसे करीब चौथाई इंच से मिस कर जाता था. जब मैं जग से गिलास में पानी डालने की कोशिश करता था तो वो गिलास में न जा कर सीधे मेज़ पर गिर पड़ता था."

भारतीय क्रिकेट की नई सनसनी दीप्ति शर्मा

मेलबर्न में खेली सर्वश्रेष्ठ पारी

घंटों नेट पर अभ्यास करने के बाद पटौदी ने अपनी इस अक्षमता पर करीब-करीब काबू पा लिया. उन्होंने दिल्ली टेस्ट में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ नाबाद 203 रन बनाए, लेकिन उनका मानना था कि उनके जीवन की सर्वश्रेष्ठ पारी थी 1967 में मेलबर्न की हरी पिच पर बनाए गए 75 रन.

25 रन पर भारत के पाँच विकेट गिर चुके थे. पटौदी के घुटने के पीछे की नस (हैमस्ट्रिंग) में चोट लगी हुई थी और वो एक रनर (अजीत वाडेकर) के साथ मैदान पर उतरे थे. वो सामने की तरफ़ झुक नहीं सकते थे. इसलिए उन्होंने सिर्फ़ हुक, कट और ग्लांस के ज़रिए 75 रन बनाए.

बाद में इयान चैपल ने लिखा, "इस पारी के दो शॉट मुझे अभी भी याद हैं. पहला जब उन्होंने रेनेबर्ग को ऑफ़ द टोज़ मिड विकेट बांउंड्री पर चौका मारा था और दूसरा जब उन्होंने उस समय दुनिया के सबसे तेज़ गेंदबाज़ ग्रैम मेकेंज़ी के सिर के ऊपर से वन बाउंस चौका मारा था. दिलचस्प बात ये थी कि उन्होंने इस पारी के दौरान पाँच अलग अलग बल्लों का इस्तेमाल किया था."

चैपल लिखते हैं, "शाम को मैंने उनसे पूछा भी कि आज आप बार-बार बल्ले क्यों बदल रहे थे? पटौदी का जवाब था, मैं कभी अपना बल्ला ले कर किसी दौरे पर नहीं जाता. मेरी किट में सिर्फ़ जूते, मोज़े, क्रीम और कमीज़े होती है. मुझे पवेलियन के दरवाज़े के बाद जो भी बल्ला पड़ा हुआ दिखाई देता है, मैं उसे ही उठा लेता हूँ."

इस पारी के बारे में मिहिर बोस ने अपनी किताब, "हिस्ट्री ऑफ़ क्रिकेट" में लिखा था, "एक आँख और एक पैर के सहारे खेली गई पारी."

वनडे की टॉप गेंदबाज़ बनीं झूलन गोस्वामी

ग़ज़ब के फ़ील्डर

पटौदी एक अच्छे बल्लेबाज़ होने के साथ साथ बला के फ़ील्डर भी थे. सुरेश मेनन अपनी किताब 'पटौदी नवाब ऑफ़ क्रिकेट' में लिखते हैं, "1992 में जब मैं भारतीय टीम का दौरा कवर करने दक्षिण अफ़्रीका गया तो मुझे अपने ज़माने के बेहतरीन फ़ील्डर रहे कोलिन ब्लैंड ने बताया था कि मेरी नज़र में पटौदी कवर पॉइंट पर जोंटीं रोड्स से भी बेहतर फ़ील्डर थे. उनका पूर्वानुमान इतना अच्छा था कि वो कभी भी डाइव लगा कर अपनी पतलून गंदी नहीं करते थे."

राजदीप सरदेसाई पटौदी की फ़ील्डिंग का एक अलग तरह से विश्लेषण करते हैं, वो कहते हैं, "भारत के जितने भी राजकुमारों ने क्रिकेट खेली है, उसमें रणजी भी शामिल हैं, वो सभी अपनी बल्लेबाज़ी के लिए जाने जाते थे, न कि अपनी फ़ील्डिंग के लिए. वैसे भी भारत के ब्राह्मण प्रधान समाज में फ़ील्डिंग निचली जातियों का काम माना जाता था."

वो आगे कहते हैं, "चालीस और पचास के दशक में विजय मर्चेंट से लेकर विजय हज़ारे तक के सभी भारतीय महान बल्लेबाज़ घंटों बैंटिंग तो कर सकते थे, लेकिन फ़ील्डिंग में उनके हाथ काफ़ी तंग थे. पटौदी ने अपनी आक्रामक बल्लेबाज़ी के साथ साथ फ़ील्डिंग को भी फ़ैशन में ला दिया. जब वो कवर पर खड़े होकर जिस तरह गेंद के पीछे कुलांचे भरते थे, लगता था कि एक चीता अपने शिकार का पीछा कर रहा हो. शायद इसी वजह से उनका नाम टाइगर पड़ा."

समित ने तोड़ा क्रिकेट का 117 साल पुराना रिकॉर्ड

ट्रेन से सफ़र करना पसंद

पटौदी को ताउम्र जहाज़ से सफ़र करने का फ़ोबिया रहा. जहाँ तक संभव हो, वो ट्रेन से सफ़र करना पसंद करते थे.

एक टेस्ट में सर्वाधिक कैच लेने का रिकॉर्ड बनाने वाले यजुर्वेंद्र सिंह बताते हैं, "रिटायर होने के बाद भी पटौदी के स्टाइल में कोई कमी नहीं आई थी. जब किसी स्टेशन पर ट्रेन रुकती थी तो उनका वेले किशन उनके टिफ़िन को स्टेशन की रसोई में ले जाकर गर्म करता था. स्टेशन मास्टर तब तक ट्रेन को रोके रखता था जब तक पटौदी का खाना गर्म नहीं हो जाता था. उनके कूपे के चारों तरफ़ लोगों की भीड़ लग जाती थी. इस सबसे बेफ़िक्र पटौदी के हाथ में व्हिस्की का एक गिलास होता था और वो कोई न कोई ग़ज़ल गुनगुना रहे होते थे."

क्रिकेट में शतरंज की चाल चलने वाले चहल

पटौदी का हिरण डांस

पटौदी को संगीत का बहुत शौक था. वो शौकिया हारमोनियम और तबला बजाते थे. जब वो मूड मे होते थे तो वो अक्सर 'हवा मे उड़ता जाए, मेरा लाल दुपट्टा मलमल का' गाया करते थे.

एक बार उन्हें रोड्स स्कॉलर का चयन करने के लिए इंटरव्यू लेने के लिए बुलाया गया था. एक प्रतियोगी ने अपने सीवी में लिखा था कि उसे संगीत का शौक है. पटौदी ने मेज पर अपने हाथों से तीन ताल बजा कर उससे पूछा था कि ये कौन सी ताल है?

शर्मिला टैगोर बताती हैं, "पटौदी को तबले का इतना शौक था कि वो कभी कभी महान सरोद वादक अमजद अली ख़ाँ के साथ जुगलबंदी किया करते थे. एक बार अमजद भोपाल में खुले मैदान में सरोद बजा रहे थे. तभी बारिश होने लगी. सब लोग भाग कर अंदर आ गए. तब अमजद और पटौदी ने देर रात तक अपने संगीत से हमारा मनोरंजन किया."

सरदेसाई बताते हैं कि पटौदी को गाने के अलावा 'हिरण डांस' करने का भी शौक था.

शर्मिला टैगोर बताती हैं कि एक बार उन्होंने और बगी (अब्बास अली बेग) ने मशहूर नृत्यांगना सोनल मान सिंह के सामने वो डांस दिखाने की जुर्रत कर डाली थी. वो अक्सर 'दिल जलता है तो जलने दो' गुनगुनाया करते थे, जिसे गाकर एक ज़माने में उन्होंने मुझे पटाया था.

पूर्व क्रिकेटर जयंतीलाल कहते हैं कि पटौदी को हाथ से खाना नहीं आता था. उन्होंने ही पटौदी को हाथ से खाना सिखलाया था.

क्रिकेट लीग, जिसमें है हिंदू-मुसलमान कोटा

विश्वनाथ को पेड़ से बंधवाया

पटौदी को अपने साथियों के साथ प्रैक्टिकल जोक्स करने में बहुत मज़ा आता था. एक बार भोपाल में उनके महल में ठहरे गुंडप्पा विश्वनाथ और इरापल्ली प्रसन्ना को कुछ डाकुओं ने बंधक बना लिया.

राजदीप सरदेसाई बताते हैं, "विश्वनाथ ने मुझे बताया था कि अचानक रात में हमें गोलियों की आवाज़ सुनाई दी और कुछ डाकू हमारे कमरे में घुस आए. उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने प्रसन्ना को गोली से उड़ा दिया है और अब मेरी बारी है. मुझे पेड़ से बाँध दिया गया. मैं ज़ोर जोर से रोने लगा. तभी पटौदी ने हंसते हुए कमरे में प्रवेश किया. पता चला कि डाकू और कोई नहीं पटौदी के महल में काम करने वाले कर्मचारी थे और उन्होंने ये सब पटौदी के कहने पर हमें डराने के लिए किया था."

इमरान ख़ान गावस्कर और कपिल के दीवाने थे

ब्रिटिश एयरवेज़ से सफ़र

पटौदी को रंगीन कैशमेयर मोज़े पहनने का शौक था. वैसे तो वो सूट बहुत कम पहनते थे, लेकिन जब भी पहनते थे, वो इंग्लैंड के मशहूर टेलर 'सेविल रो' के यहाँ से सिला होता था.

जब कभी भी वो ब्रिटेन जाते थे तो हमेशा 'ब्रिटिश एयरवेज़' से सफ़र करना पसंद करते थे, क्योंकि उन्हें उनके पायलट और एयर होस्टेस का ब्रिटिश लहजे में बात करना अच्छा लगता था.

पटौदी को किताबें पढ़ने का बहुत शौक था. यजुर्वेंद्र सिंह बताते हैं कि उन्होंने अक्सर देखा है कि पटौदी हाथ में किताब लिए लिए ही सो गए हों. सुबह जब वो उठते थे तो उनके बग़ल में किताब रखी होती थी.

वो कपिल देव जिन्हें दुनिया नहीं जानती

खाना बनाने के शौकीन

रिटायर होने के बाद पटौदी मशहूर खेल पत्रिका 'स्पोर्ट्सवर्ल्ड' का संपादन भी करने लगे थे जो कलकत्ता से छपा करती थी.

उस ज़माने में 'स्पोर्ट्सवर्ल्ड' में काम करने वाले मुदर पाथरेया बताते हैं, "जब भी वो दिल्ली से कलकत्ता ट्रेन से आते थे तो 'स्पोर्ट्सवर्ल्ड' के स्टाफ़ के लिए 'हाइनाकेन' बियर का केस ले कर जाया करते थे. लौटते समय वो कलकत्ता से बकरे की रान बर्फ़ में रखवा कर दिल्ली ले जाया करते थे. उनका मानना था कि कलकत्ता में दिल्ली से बेहतर बकरे का गोश्त मिलता है."

पटौदी बहुत अच्छा खाना भी बनाते थे. वो अक्सर रसोई में घुस कर अपने ख़ानसामों के साथ तंदूरी पकवान बनाने में लगे रहते थे.

उनकी बेटी अभिनेत्री सोहा अली ख़ाँ बताती हैं कि जब भी वो मुंबई में उनके साथ ठहरते थे, वो मिनटों में 'स्क्रैंबेल्ड एग्स' का नाश्ता बना लाते थे.

रवि शास्त्री में नहीं थी प्रतिभा: कपिल देव

सेल्फ़ रेस्पेक्ट मूवमेंट

साठ के दशक में जब पटौदी ने भारतीय क्रिकेट की बागडोर संभाली तो भारतीय क्रिकेट की स्थिति ऐसी ही थी जैसी कि आजकल ज़िंबाब्वे की है.

ये पटौदी का ही बूता था कि उन्होंने भारतीय क्रिकेट खिलाड़ियों में पहली बार विश्वास जगाया कि वो भी जीत सकते हैं.

राजदीप सरदेसाई कहते हैं, "उन दिनों भारतीय टीम मैच ज़रूर खेलती थी लेकिन उनमें जीतने का जुनून बिल्कुल नहीं था. उनमें ये विश्वास भी नहीं था कि वो कोई अंतरराष्ट्रीय मैच जीत सकते हैं. पटौदी ने इस सोच को बदला और भारतीय क्रिकेट में 'सेल्फ़ रेस्पेक्ट मूवमेंट' की शुरुआत की."

BBC Hindi

Story first published: Tuesday, November 14, 2017, 12:19 [IST]
Other articles published on Nov 14, 2017
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X