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नॉटिंघम टेस्ट : चार साल बाद वही जगह, वही कोच और सवाल भी वही

By गौतम सचदेव

नई दिल्ली। चार साल पहले टीम इंडिया के इंग्लैंड में सीरीज हार के बीच ही रवि शास्त्री को टीम डायरेक्टर का पद मिला था। धोनी की कप्तानी में भारतीय टीम 3-1 से पीछे चल रही थी, डंकन फ्लेचर की छुट्टी हो चुकी थी और इन्हें नई जिम्मेदारी मिली। मैदान था ट्रेंटब्रिज (नॉटिंघम) का, अब विराट कप्तान हैं जिनके पास कोच से अधिक 'पावर' है, मैदान वही है शास्त्री अब हेड कोच हैं। कोहली को मनमुताबिक टीम चुनने की आजादी है लेकिन इन चार सालों में एक बात नहीं बदली वह है टीम इंडिया का विदेशी जमीन पर हारने का सिलसिला और कोच-कप्तान की हार के बाद बहानेबाजी की जुगलबंदी। कप्तान क्रिकेट क्रिटिक के चॉपिंग और चेंजिंग पर दी हुई प्रतिक्रिया को बेतुका बताते हैं लेकिन पिछले 37 टेस्ट में लगातार बदलाव करते रहने वाले इस कप्तान को विदेशी जमीन पर हार और उसके बाद बहाने बनाने के सिवा कुछ नहीं मिला। जानिए वो कौन सी ऐसी कमजोरियां है जिससे क्रिकेट के ये कागजी शेर बाहरी पिचों पर ढेर हो जाते हैं।

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ओपनिंग बना 'सिरदर्द' :

ओपनिंग बना 'सिरदर्द' :

दक्षिण अफ्रीकी दौरे के बाद टीम इंडिया के लिए टेस्ट का ओपनिंग स्लॉट सिरदर्द बन गया है। मुरली विजय और धवन के लिए अलग-अलग परेशानियां हैं। आर्ट ऑफ LEAVING के मास्टर कहे जाने वाले मुरली विजय पिछले एक साल में कोई बड़ा स्कोर करने में नाकाम रहे हैं। पहले वो जिन गेंदों को आसानी से छोड़ते थे अब उन्हीं गेंदों को पोक करते हुए आउट हो रहे हैं। पिछली 10 पारियों में विदेशी जमीन पर विजय के बल्ले से कुल 128 रन बने हैं। उनके स्कोर 1,13,46,09, 08, 25,20, 06,00,00 हैं। लॉर्ड्स की दोनों पारियों में ये खाता भी नहीं खोल पाए थे। धवन दक्षिण अफ्रीकी दौरे पर शॉर्ट बॉल को संभाल नहीं पा रहे थे और इंग्लैंड में फुलर लेंथ क गेंद देखते ही किनारा दे बैठते हैं। उनके पहले टेस्ट में फ्लॉप होने के बाद राहुल को मौका मिला तो वो बाहर जाती गेंदों को पोक कर बैठे और दोनों पारियों में अपना विकेट गंवाया। क्या टीम इंडिया के पास एक ऐसा ओपनर नहीं है जो टेस्ट की ग्रिंडिंग तकनीक में माहिर हो ?

विराट को छोड़ मध्यम क्रम हुआ फुस्स :

विराट को छोड़ मध्यम क्रम हुआ फुस्स :

दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड दौरे (2017-18) का आकलन किया जाए तो विराट कोहली को छोड़कर अब तक कोई भी मध्यम क्रम का बल्लेबाज बहुत कमाल नहीं कर पाया है। विराट ने अब तक खेले गए इन मैचों में अकेले 525 रन बनाए हैं जबकि बांकी टॉप ऑर्डर के 5 बल्लेबाजों ने कुल मिलाकर 505 रन बनाए हैं। एक खिलाड़ी टीम को टेस्ट मैच तो नहीं जिता सकता। जहां कोहली का इन पांच मैचों में औसत 52.60 का रहा है वहीं बांकी स्पेशलिस्ट खिलाड़ी 20 के औसत का भी आँकड़ा पार नहीं कर पाए हैं। इन पांच मुकाबलों में रोहित शर्मा (19.50), शिखर धवन (17.75), अजिंक्य रहाणे (17.50), चेतेश्वर पुजारा (14.75), मुरली विजय (12.80) और लोकेश राहुल (8.12) के औसत से रन बना पाए हैं। ऐसे प्रदर्शन के दम पर तो कोहली की भाषा में टीम इंडिया हार ही डिजर्व करती है।

नंबर-3 पर नाकाम रहे पुजारा :

नंबर-3 पर नाकाम रहे पुजारा :

पुजारा जब भारतीय क्रिकेट में आए थे तो एक आध पारियों के बाद उनकी तुलना क्रिकेट की 'दीवार' द्रविड़ से होने लगी थी। एक क्रिकेट प्रशंसक के रूप में मुझे यह तुलना अटपटा लगा। किसी भी बल्लेबाज की अग्नि परीक्षा विदेशी जमीन पर होती है न कि पाटा विकेट पर। पुजारा उस तुलना को जी नहीं पाए, नंबर-3 के प्राइम स्लॉट पर बल्लेबाजी करने वाला यह खिलाड़ी पिछली 8 पारियों में यह खिलाड़ी सिर्फ 2 बार 20 रन का आंकड़ा पार कर पाया है। टेस्ट की बेस्ट टीम बनने के लिए किसी भी टीम का यह स्लॉट बहुत मजबूत होना चाहिए। पुजारा ने इन पारियों में औसतन 57 गेंदें खेली है और तीन बार 80 के करीब गेंदें खेली, वो मैदान पर वक्त बिताने में सफल रहे हैं लेकिन वो गेंदबाजों पर अपना प्रभाव छोड़ने में नाकाम रहे हैं। पुजारा ने इन मैचों में 454 गेंदें खेलकर महज 118 रन बनाया है।

ऑल राउंडर : एक अनंत खोज :

ऑल राउंडर : एक अनंत खोज :

टीम इंडिया में एक ऑल राउंडर की खोज एक अनंत खोज बन चुकी है, शिद्दत से की गई खोज में वास्कोडिगामा को भारत मिल गया,अल्बर्ट आइंस्टीन को E=mc2 का फॉर्मूला मिल गया, चार्ल्स डार्विन को evolution का सिद्धांत मिल गया लेकिन भारतीय टीम की यह तलाश अब भी जारी है। एक ऑल राउंडर की हैसियत से टीम में शामिल हार्दिक पांड्या पर सवाल उठने लगे हैं। कपिलदेव से हार्दिक की तुलना पर क्रिकेटिंग लीजेंड माइकल होल्डिंग ने कहा "मैं दुनिया में यह किसी को नहीं कहने वाला हूँ कि हार्दिक अगले 'कपिलदेव' नहीं हो सकते हैं लेकिन अभी वो कहीं भी उनके करीब भी नहीं है। हाल में गावस्कर ने भी इस तुलना को बेवकूफाना बताया है। ऐसी स्थिति में सिर्फ एक सवाल उठता है कि क्या आवश्यकता से अधिक तवज्जो पाने वाले इस औसत खिलाड़ी की जगह क्या टीम इंडिया में किसी ऐसे खिलाड़ी को जगह नहीं दी जा सकती है जो बल्लेबाजी को मजबूती प्रदान करे और इंग्लिश खिलाड़ी स्टोक्स और वोक्स की तरह मैच जिताऊ पारी खेल सकें। क्या पिछले दो टेस्ट की चार पारियों में कुल 90 रन बनाकर तीन विकेट लेने वाले पांड्या की जगह किसी मंझे बल्लेबाज को मौका नहीं दिया जाना चाहिए?

घर के शेर, विदेशी जमीन पर ढेर :

घर के शेर, विदेशी जमीन पर ढेर :

दक्षिण अफ्रीका में तीन और इंग्लैंड में अब तक खेले गए कुल दो टेस्ट मुकाबलों (कुल पांच) की बात करें तो टीम इंडिया की फ्लॉप बल्लेबाजी टीम की हार का सबसे बड़ा कारण बनी है। टीम इंडिया ने इन पांच मुकाबलों में सिर्फ एक बार 300 से अधिक रनों का आंकड़ा पार किया है वहीं 6 बार 200 से कम के स्कोर पर ढेर हुई है। टीम इंडिया का टेस्ट मैच में औसत स्कोर 188.7 रहा है। ऐसी स्थिति में यह सवाल उठना लाजमी है कि बोर्ड पर बिना रन लगाए आखिर कब तक पाटा विकेट पर खेलने वाली टीम इंडिया बादशाहत बरकरार रहेगी।

स्विंग करती गेंदों से कैसे लेंगे सबक :

स्विंग करती गेंदों से कैसे लेंगे सबक :

टीम इंडिया के फ्लॉप शो में जिस चीज की सबसे बड़ी भूमिका रही है वह है ऑउटस्विंग होती गेंद। टीम इंडिया के कोच रवि शास्त्री भले यह कहने से न चूकते हैं कि "दोनों टीमों के बल्लेबाजों को मुश्किल हुई हैं" लेकिन टीम इंडिया के खिलाड़ी बाहर जाती गेंदों पर कुछ ज्यादा ही तकलीफ में दिखे। आंकड़ों पर नजर डालें तो अजिंक्य रहाणे 34 गेंदों में 9 रन बनाकर 3 बार बाहर जाती गेंदों पर आउट हुए, लोकेश राहुल 11 गेंदों में 0 रन बनाकर 3 बार, शिखर धवन 31 गेंदों में 22 रन बनाकर 2 बार, हार्दिक पांड्या 36 गेंदों में 22 रन बनाकर 2 बार, कोहली 144 गेंदों में 78 रन बनाकर 2 बार, पुजारा 14 गेंदों में बिना खाता खोले 1 बार और मुरली विजय 17 गेंदों में 2 रन बनाकर 1 बार आउट हुए हैं। टीम इंडिया लक्ष्य का पीछा भले न कर पाए लेकिन यही हाल रहा तो बाहर जाती गेंदों का पीछा करने में एक नया रिकॉर्ड जरूर बना सकती है। अब सवाल सिर्फ यह है कि आखिर बाहर जाती गेंदों से ये बल्लेबाज अपना पीछा कब छुड़ाएंगे। चार साल बाद भी टीम इंडिया के विदेशी जमीन पर प्रदर्शन का स्तर एक सवाल ही बना हुआ है।

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Story first published: Saturday, August 18, 2018, 19:12 [IST]
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