कंगारूओं ने जूतों में भरी बीयर पीकर मनाया जश्न-
कंगारूओं ने फाइनल में कीवियों को खदेड़कर ट्रॉफी ऐसे हाथ में उठाई मानों पहले से ही इस पर ऑस्ट्रेलिया का नाम गुदा हुआ था। प्रचंड जीत के बाद जश्न भी जमकर मना और ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ी जूतों में बीयर भरकर पीते हुए देखे गए। जीत का यह जश्न आईसीसी ने अपने ट्विटर अकाउंट पर शेयर किया है। इसके साथ ही यह जानने की उत्सुकता भी बढ़ गई कि जश्न मनाने का यह कौन सा अंदाज है।
जूतों में शराब या बीयर भरकर पीने का यह तरीका पुराना है। इसको पार्टी करने का एक अंदाज माना जाता है। यह एक ऐसा तरीका है जो इसको मनाने वाले लोगों में गुड लक का संकेत भी माना जाता है। यह परंपरा आज भी ऑस्ट्रेलिया में लोकप्रिय है और इसको शुई के नाम से जाना जाता है।
फार्मूला वन में इस्तेमाल के बाद खेल में यह तरीका लोकप्रिय हो गया-
जश्न के इस तरीके में या तो आप अपना जूता निकालकर उसमें शराब या बीयर भरते हो या फिर अपने किसी दोस्त के जूते को नोमिनेट कर सकते हो जो शराब के बर्तन के तौर पर इस्तेमाल किया जाएगा। इस तरह से वह जूता खास बन जाता है और एक बीयर की पूरी कैन को भी इसमें उड़ेल दिया जाता है। यानी पहले एक बंदा जूते से बीयर पीएगा फिर दूसरे की बारी आने पर और बीयर उड़ेलकर पीता जाएगा। आमतौर पर इस परंपरा में बीयर ही इस्तेमाल होती है, हालांकि शराब का भी इस्तेमाल आम हो गया है।
20वीं सदी के दौरान लेडीज के जूतों में शैंपेन डालकर पीना एक चलन गया था। शुई इसी चलन का आज एक ऐसा रूप है जो ऑस्ट्रेलिया में विशेषकर लोकप्रिय है। ऑस्ट्रेलिया के मोटोजीपी सवार जैक मिलर ने 2016 में अपनी एक जीत के दौरान खुद के जूते में शैम्पेन डालकर पी थी। इसके बाद से फार्मूला वन ड्राइवर डेनियल रिकियॉर्डो ने मंच पर सबके सामने ऐसा किया। इसके साथ ही यह चलन फॉर्मला वन में शुरू हो गया।
T20 और ODI वर्ल्ड कप में कौन है बेहतर? टी20 के मुकाबले कितनी है एक वनडे विश्व कप की वैल्यू
ऑस्ट्रेलिया में 1990 के दशक में चलन बढ़ने लगा-
जश्न के इस तरीके में आप ना केवल जूते से बीयर पीते हो बल्कि उसको अपनी शर्ट पर भी डाल सकते हैं। तेजी से ड्रिंक करते हुए वह मुंह से टपकते हुए शर्ट पर भी गिरती जाती है। फिर वह गीला जूता किसी एक को रात भर पहनना होता है। ऑस्ट्रेलिया में शुई को जीत के जश्न के तौर पर मनाने का चलन लोकप्रिय तौर पर लगभग 20 साल पहले शुरू हुआ जब ऑस्ट्रेलियन फिशिंग और ऑउटडोर ब्रॉन्ड ने 1990 के दशक के अंत में ऐसी पार्टियां शुरू कर दी थी।
क्या जूतों से ड्रिंक करना हेल्थ के नजरिए से बुरा है?
जूतों से बीयर पीना आसान काम नहीं है। कई लोगो इसको साफ-सफाई के कारणों के चलते पूरा नहीं कर पाएंगे। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया में भी यह जरूरी नहीं है कि ऐसा जश्न मनाना जरूरी ही है। ये आप तब मनाते हैं जब आपको इसमें गहरी दिलचस्पी हो वर्ना कोई जरूरत नहीं है।
सवाल यह भी है कि जूतों से ड्रिंक करना हेल्थ के नजरिए से क्या बुरा है? तो जवाब है- शायद नहीं। अगर किसी के पैर नॉर्मल है, हेल्दी हैं और जूते उसमें टाइट हैं तो इंफेक्शन का रिस्क बहुत कम होता है।
|
शौंक और जुनून नहीं तो 'शुई' आपके लिए नहीं है-
इसके बावजूद इस परंपरा को बढ़ावा देने के पक्ष में बातें कम ही हैं क्योंकि जब ड्रिंक पीने के इतने तरीके हैं तो उन जूतों का इस्तेमाल करना कहां से उचित है जो पहले ही गंदे और बदबू मार रहे हों? लेकिन यह केवल आपका शौंक और जुनून है जो ऐसा काम कराता है और फिर उनको आगे बढ़ाता है। धीरे-धीरे चीजें चलन का रूप ले लेती हैं।
अगर हम इस चलन के पुराने समय में जाएंगे तो पाएंगे यह बेहद प्राचीन परंपरा है जहां पर लोग पहले जानवरों को अपने जूतों में पानी भरकर देते थे। कई इस्लामिक प्राचीन लेख में इस बात का जिक्र है कि लोग जानवरों को पानी देने के लिए अपने जूतों का इस्तेमाल करते थे। यहां तक की मध्यकाल की एक स्टोरी बताती है कि वर्जिन मैरी ने प्यासे कुत्ते को अपने जूते से पानी पिलाया था।