नई दिल्ली। क्रिकेट जगत में एक बार फिर से स्पॉट फिक्सिंग के एक मामले ने सनसनी मचा दी है। इस बार ऐतिहासिक एशेज सीरीजी फिक्सिंग के घेरे में है और इस फिक्सिंग का खुलासा इंग्लैंड के बड़े अखबर द सन ने किया है। द सन की रिपोर्ट के अनुसार भारत से दो लोगों ने सट्टेबाजी के लिए 140000 यूरो (12089936 रुपये) की मांग की थी।
आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि स्पॉट फिक्सिंग और मैच फिक्सिंग में अंतर क्या है? ये कैसे काम करता है?
कार्यप्रणाली
स्पॉट फिक्सिंग एक क्रिकेटर और एक बुकी के बीच आपसी समझौते के माध्यम से काम करता है। वहीं मैच-फिक्सिंग, फिक्सिंग का यह रूप व्यक्तिगत स्तर पर काम करता है और इसे पहचानना बहुत कठिन है। स्पॉट फिक्सिंग, मैच फिक्सिंग से बिल्कुल अलग है। स्पॉट फिक्सिंग में आवश्यक नहीं कि वह खेल के परिणाम को प्रभावित करे लेकिन मैच फिक्सिंग में खिलाड़ी सीधे-सीधे मैच के निर्णय को प्रभावित करते हैं।
मैदान पर रहते हुए एक खिलाड़ी कैसे सट्टेबाज को बताता है?
आमतौर पर यह ओवर के शुरुआत में होता है। खिलाड़ी अपनी कलाई घड़ी या हेड गियर या आर्म बैंड को टर्न करने के माध्यम से संकेत करता है। कोई खिलाड़ी अपने ट्राउजर में तौलिया रखने से लेकर स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करने से भी खुद के तैयार होने का संकेत दे सकता है। ये क्रिकेट के मैदान पर होने वाली सामान्य क्रियाएं हैं। लेकिन फिक्सिंग के संदर्भ में एक गहरा और दुर्भावनापूर्ण मकसद हो सकता है।
ऐसे भी काम करता है फिक्सिंग का जिन्न
बुकी के साथ निर्धारित समझौते के अनुसार, एक गेंदबाज एक ओवर में पहले से तय की हुई कोई एक गेंद नो बॉल फेंक सकता है या फुलटॉस डाल सकता है। इसकी के मुताबित सट्टेबाज लाइव सट्टेबाजी शुरू कर सकता है।
एक सट्टेबाज खिलाड़ी की पहचान कैसे करता है?
यह एक लंबी प्रक्रिया है क्योंकि बुकी या उसके एजेंट कमजोर लोगों को ढूंढने के लिए टीम के कई खिलाड़ियों को देखते हैं। फिर वे बड़े और आसान ऑफर देते हैं।
वो खिलाड़ी जो पकड़े गए और फिर बैन किए गए
खिलाड़ियों में एस श्रीसंत, अजित चंदीला, अंकित चव्हाण, हिकेन शाह, मोहम्मद आसिफ, मोहम्मद आमिर, सलमान बट्ट, मोहम्मद अशरफुल, दानिश कनेरिया, लो विन्सेंट, शारजील खान, मार्लोन सैमुअल्स कुछ नाम हैं।