इस कारण सचिन पर बरसे थे बाल ठाकरे
बाल ठाकरे ने 17 नवंबर 2012 को अंतिम सांस ली थी। बाल ठाकरे के बेटे उद्व ठाकरे ने 28 नबंवर को महाराष्ट्र के 19वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। बाल ठाकरे भले ही दुनिया छोड़ गए, लेकिन ये बात छिपी नहीं कि वो अपनी बेबाक बयानबाजी के कारण हमेशा चर्चा में रहते थे। उनपर कई केस भी दर्ज हुए। ऐसे में वो किस्सा भी याद आता है जब बाल ठाकरे के गुस्से का शिकार सचिन तेंदुलकर को होना पड़ा था। दरअसल, सचिन से साल 2009 में एक प्रेस कांफ्रेंस दाैरान पूछा गया था किया क्या सचिन से पूछा गया था कि क्या मुंबई सिर्फ मराठियों की है। इसका जवाब देते हुए सचिन ने कहा था, ''मैं पहले भारतीय हूं। इसके बाद महाराष्ट्रियन हूं। मुंबई सभी भारतीयों की है।'' मुंबई को लेकर सचिन का यह बयान तब बाल ठाकरे को बिल्कुल भी पसंद नहीं आया था। ऐसे में उन्होंने अपनी अखबार 'सामना' में लिखे एक लेख में सीधा कहा था कि तूने जो कमाया है, उसे राजनीति की पिच पर मत गंवा।
दी थी ये नसीहत
बाल ठाकरे ने उस दाैरान सचिन को जवाब देते हुए कहा था, ''तुम अपने खेल में बादशाह जैसे खेलते हो, तुम्हें अंतरराष्ट्रीय नाम मिला है, पैसे भी मिले हैं, तूने जो कमाया है उसे राजनीति की पिच पर मत गंवा। ऐसा प्रेमपूर्ण संकेत तुझे तेरे भले के लिए दे रहा हूं। तुम्हारे चौके छक्के पर लोग तालिया बजाते हैं, लेकिन मराठी जनमानस के न्याय अधिकार के मुद्दे पर अपनी जीभ को बैट बनाकर मराठियों को ठेस पहुंचाओगे तो इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।'' उन्होंने कहा था, ''प्रैस कांफ्रेंस में तुमने कहा कि मैं मराठी हूं और इसपर मुझे अभिमान है। फिर भी मैं पहले हिंदुस्तानी हूं...ऐसा कहकर तूने मराठी मानुष का दिल दुखाया है।'' बाल ठाकरे तब यहीं नहीं रूके थे। उन्होंने 'सामना' में छपे लेख में लिखा था कि तुम खेल की बजाय राजनीति के खेल पर बोलने लगे हो। तुमने इतना तक कहा कि मुंबई किसी एक की नहीं है, हिंदुस्तान के सभी लोगों का मुंबई पर अधिकार है। सचिन तुम्हारे ये शब्द सुनकर मराठी मानुष का मन काफी दुखी हुआ है।''
बताया था क्या किया मराठियों ने
सचिन को बाल ठाकरे ने यह भी बताया किया कैसे मराठियों ने मुंबई को हासिल किया था। उन्होंने लिखा था, ''मराठी लोगों ने मुंबई को पाने के लिए क्या नहीं किया...तेरे जन्म से पहले मुंबई को पाने के लिए 105 मराठी लोगों ने जान गंवा दी है, वो मुंबई किसी परप्रांती के बाप की कभी नहीं हो सकती।" बाल ठाकरे के इस जवाब के बाद सचिन ने कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी थी। शायद उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि मुंबई पर बयान देना उनपर इतना भारी पड़ जाएगा कि अखबार 'सामना' द्वारा उन्हें बाल ठाकरे से चेतावनी मिलेगी।
राजनीति की पिच पर 'सच' में फेल हुए सचिन
बाल ठाकरे की बात हालांकि सच भी साबित हुए जब सचिन क्रिकेट छोड़ने के बाग राजनीति की पिच पर आए पर प्रदर्शन ना के बराबर रहा। सचिन को साल 2012 में यूपीए के शासनकाल में राज्यसभा के लिए नामित किया गया था। वह राज्यसभा का सदस्य बनने वाले पहले खिलाड़ी बने थे। क्रिकेट मैदान पर वाहवाही लूटने वाले सचिन को राजनीति में आकर आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा। सचिन ने राज्य सभा के कुल कार्यवाही में सिर्फ 7.3 प्रतिशत ही भागीदारी निभाई। उन्होंने 400 दिन के संसदीय सत्रों में केवल 29 दिन ही हिस्सा लिया। उन्होंने 22 प्रश्न सभा के पटल पर रखे । उन्होंने कोई भी विधेयक पेश नहीं किया। सचिन ने हालांकि एक अच्चा का किया जो संसद ग्राम आदर्श योजना के तहत आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के एक-एक गांव को गोद लिया। इनके विकास के लिए सचिन ने सां को गोद लिया और उसके विकास पर अपनी सांसद निधि खर्च की।