धोनी की युवराज से पहली मुलाकात-
महेन्द्र सिंह धोनी की युवराज से पहली मुलाकात बहुत विकट परिस्थितियों में हुई थी। दिसम्बर 1999 में अंडर-19 कूचबिहार ट्रॉफी का फाइनल मैच बिहार और पंजाब के बीच जमशेदपपुर के कीनन स्टेडियम में खेला जा रहा था। कूच बिहार ट्रॉफी जूनियर क्रिकेट की राष्ट्रीय प्रतियोगिता है। राष्ट्रीय चयनकर्ताओं की नजर भी इस प्रतियोगिता पर रहती है। नेशनल टीम में आने का यह इंट्री गेट है। बिहार की टीम से खेल रहे महेन्द्र सिंह धोनी ने तब युवराज सिंह को पहली बार देखा था। धोनी भी जूनियर लेबल पर छक्का मारने के लिए मशहूर हो चुके थे। उनको उम्मीद थी कि अगर इस मुकाबले में अच्छा खेले तो अंडर -19 विश्वकप के लिए चुने जा सकते हैं। युवराज भी उस समय हार्ड हिटर बल्लेबाज के रूप में उभर रहे थे। वे भी कुछ ऐसा ही सोच रहे थे।
जब युवराज के तिहरे शतक से धोनी को लगा झटका-
कूच बिहार ट्रॉफी के फाइनल में बिहार ने पहले बल्लेबाजी शुरू की। बिहार के कप्तान विकास कुमार थे। धोनी विकेटकीपर बल्लेबाज के रूप में खेल रहे थे। पहले दिन का खेल खत्म हुआ तो बिहार ने पांच विकेट पर 254 रनों का स्कोर बनाया। रतन कुमार 77 और धोनी 70 रनों पर नाबाद लौटे। अगले दिन खेल शुरू हुआ तो रतन कुमार 99 और धोनी 84 रनों पर आउट हो गये। बिहार की पारी 357 रनों पर खत्म हो गयी। जवाब में पंजाब ने ऐसा खेल दिखाया कि बिहार के खिलाड़ी डिप्रेशन में चले गये। पंजाब के कप्तान युवराज सिंह ने अकेले 358 रनों की ऐतिहासिक पारी खेली। वी. महाजन ने भी 204 रन बनाये। पंजाब ने पांच विकेट पर 839 रनों का विशाल स्कोर खड़ा किया। मैच ड्रा रहा। लेकिन पहली पारी की बढ़त के आधर पर पंजाब ने ट्रॉफी जीत ली। युवराज की इस पारी से धोनी को अपनी उम्मीदों पर पानी फिरता दिखा। वे इस बात से हताश थे कि युवराज ने अकेले जितने रन बनाये उतने रन बिहार की पूरी टीम न बना सकी। धोनी की उम्मीद सचमुच टूट गयी। 19 दिसम्बर 1999 को ये मैच खत्म हुआ। करीब 14 दिन बाद ही अंडर-19 विश्वकप के लिए भारतीय टीम का एलान हुआ। जनवरी 2000 में यह प्रतियोगिता श्रीलंका में खेली गयी थी। विकेटकीपर के रूप में हरियाणा के अजय रात्रा चुने गये। महेन्द्र सिंह धोनी पिछड़ गये। जब कि अपने तिहरे शतक के दम पर युवराज सिंह ने विश्वकप टीम जगह बना ली। कहा जाता है कि इसी समय धोनी के मन में युवराज को पछाड़ने की बात घर कर गयी।
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क्या धोनी युवराज से जलते थे?
युवराज सिंह के पिता योगराज ने कई बार खुलेआम आरोप लगाया था कि महेन्द्र सिंह धोनी खुन्नस की वजह से युवराज का करियर खराब करते रहे हैं। लेकिन धोनी और युवराज हमेशा एक दूसरे को दोस्त बताते रहे हैं। क्या धोनी युवराज से जलते थे ? भारत की तरफ से पहले खेलने के मामले में भी युवराज ने धोनी को पीछे छोड़ा था। अक्टूबर 2000 में युवराज ने केन्या के खिलाफ वनडे इंटरनेशनल में डेब्यू किया था। जब कि धोनी को चार साल बाद 2004 में भारत की तरफ से खेलने का मौका मिला। 2004 में जब भारत की टीम बांग्लादेश गयी तो उसमें धोनी विकेटकीपर बल्लेबाज के रूप में चुने गये थे। 23 दिसम्बर 2004 को उन्होंने बांग्लादेश के खिलाफ अपना पहला वनडे मैच खेला था। इस लिहाज से युवराज हमउम्र होते हुए भी धोनी से सीनियर थे।
धोनी-युवराज में विवाद
2014 के टी-20 विश्वकप फाइनल में युवराज ने 21 गेदों पर केवल 11 रन बनाये थे। धीमी बल्लेबाजी के कारण भारत सिर्फ 130 रन ही बना सका। श्रीलंका ने 17.4 ओवर में ही चार विकेट खो कर जीत का लक्ष्य हासिल कर लिया। फाइनल हारने का ठीकरा युवराज के माथे पर फोड़ा गया। टीम के कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी थे। इस मैच के बाद युवराज को टीम से बाहर कर दिया गया। तब ये आरोप लगा था कि धोनी ने अपनी पुरानी खुन्नस निकाली है। दरअसल युवराज कैंसर को पराजित कर फिर मैदान पर फिर अपना जलवा दिखा रहे थे। कहा जाता है कि धोनी ने उनको मन से सपोर्ट नहीं किया था। 2015 के विश्वकप में युवराज को जगह नहीं मिली तो धोनी फिर निशाने पर आ गये। तब युवराज के पिता योगराज सिंह ने धोनी पर पक्षपात करने का आरोप भी लगाया था। 2011 के विश्वकप में युवराज प्रचंड फॉर्म में थे। फाइनल मुकाबले में श्रीलंका के खिलाफ जब धोनी युवराज से पहले बल्लेबाजी करने के लिए आये तो उस समय भी बहुत नुख्ताचीनी हुई थी। कहा जाता है कि धोनी, युवराज को फाइनल में अच्छा प्रदर्शन करने से रोकना चाहते थे। हालांकि धोनी ने 91 नाबाद रनों की मैच जिताऊ पारी खेल कर विवाद को बेअसर कर दिया था। वैसे युवराज सिंह ने कभी धोनी के खिलाफ कुछ नहीं कहा। धोनी भी युवराज को दोस्त ही कहते हैं।