कुल मिलाकर 2007 के हीरो युवराज 2014 के 'विलेन' साबित हुए। 2007 विश्व कप में युवराज के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि उन्होंने छह मैचों की पांच पारियों में 194 के स्ट्राइक रेट से दो अर्धशतकों सहित 148 रन बटोरे थे। युवी ने इंग्लैंड के खिलाफ 12 गेंदों पर 50 रन पूरे किए थे और एक ओवर में छह छक्के लगाने का कीर्तिमान बनाया था। टी-20 क्रिकेट में औसत नहीं बल्कि स्ट्राइक रेट मायने रखता है। ऐसा नहीं है कि 2007 में युवराज ने सबसे अधिक रन बनाए थे लेकिन जितने भी बनाए थे, वे शानदार स्ट्राइक रेट की देन थे। युवराज ने 2007 में नौ चौके लगाए थे और इससे अधिक 12 छक्के लगाए थे।
2007 के विश्व कप में 100 से अधिक रन बनाने वाले किसी भी बल्लेबाज का स्ट्राइक रेट 100 से कम नहीं था और 100 से अधिक रन बनाने वालों में युवराज का स्ट्राइक रेट सबसे अधिक था। पूरे टूर्नामेंट में सिर्फ शाहिद अफरीदी (97 रन) ने युवराज से अधिक 197 के स्ट्राइक रेट से रन बनाए थे। इन आंकड़ों ने युवराज को हीरो और टी-20 के चैम्पियन खिलाड़ी का दर्जा दिया था लेकिन 2014 के आंकड़ों ने उनकी इस छवि को पलटकर रख दिया। इस साल युवराज छह मैचों की पांच पारियों में 98.00 के स्ट्राइकर रेट से 100 रन बटोर सके। उनके बल्ले से आठ चौके और चार छक्के निकले। उनके खाते में एक अर्धशतक दर्ज है।
खास बात यह है कि इस साल 100 से अधिक रन बनाने वाले बल्लेबाजों की सूची में सिर्फ युवराज ही हैं, जिनका औसत 100 से नीचे रहा। और तो और 75 या उससे अधिक रन बनाने वाले खिलाड़ियों की सूची में सिर्फ तीन बल्लेबाज ऐसे हैं, जिनका स्ट्राइक रेट 100 से कम रहा। युवराज के अलावा नीदरलैंड्स के एमआर स्वार्ट और वेस्टइंडीज के मार्लन सैमुएल्स भी इनमें शामिल हैं। अब बात फाइनल की। युवराज ने रविवार को श्रीलंका के खिलाफ फाइनल मुकाबले में 21 गेंदों पर 11 रन बनाए। इस पारी में एक भी चौका या छक्का शामिल नहीं है। उनका स्ट्राइक रेट 52.38 का रहा, जो टी-20 में किसी भी कोण से मान्य नहीं हो सकता।
युवराज की यह पारी टी-20 में भारत की ओर से 20 रनों की पारी के दौरान खेली गई तीसरी सबसे धीमी पारी साबित हुई। फाइनल में कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने सात गेंदों पर चार रन बनाए और भारत अंतिम चार ओवरों में सिर्फ 19 रन बटोर सका। धौनी ने 2008 में आस्ट्रेलिया के खिलाफ मेलबर्न में 27 गेंदों पर नौ रन बनाए थे, जो भारत की ओर से सबसे धीमी टी-20 पारी है। युवराज की यह नाकामी हैरान नहीं करती। उनका फार्म और फिटनेस अवसान पर है और अब वह शायद भारत के लिए टी-20 के लिहाज से किसी तरह के 'एर्स्ट' नहीं रह गए हैं। युवी की बीती पांच पारियां इसकी गवाह हैं।
विश्व कप में हिस्सा लेने से पहले युवराज ने 10 मार्च 2013 को राजकोट में आस्ट्रेलिया के खिलाफ अंतिम टी-20 मैच खेला था। उस मैच में युवराज ने 57 गेंदों पर नाबाद 77 रन बनाए थे। स्ट्राइक रेट था 220, जो शानदार कहा जा सकता था। इसके बाद युवराज सीधे 2014 में विश्व कप के लिए मैदान में उतरे। टीम में उनकी वापसी हो रही थी और यह वापसी पाकिस्तान के खिलाफ दो गेंदों पर एक रन की उनकी पारी के साथ फ्लाप रही। वेस्टइंडीज के खिलाफ युवराज ने नौ गेंदों पर 10 रन बनाए और एक बार फिर फ्लाप रहे।
अब उनके टीम में बने रहने पर सवाल उठने लगा लेकिन धौनी की जिद और अपने पिछले रिकार्ड की वजह से वह टीम में बने रहे। बांग्लादेश के खिलाफ उन्हें बल्लेबाजी का मौका नहीं मिला। शिखर धवन की शीर्ष पर नाकामी के कारण युवराज को आस्ट्रेलिया के खिलाफ पारी की शुरूआत के लिए उतारा गया और उन्होंने अपनी छवि के अनुरूप खेलते हुए 43 गेंदों पर पांच चौकों और चार छक्कों की मदद से 60 रन बनाए। अब युवराज एक बार फिर टीम के लिए एर्स्ट बन गए लेकिन दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ अहम मुकाबले में युवराज ने 17 गेंदों पर 18 रन बनाए और फिर से फ्लाप कहे जाने लगे। हद तो तब हो गई, जब युवराज ने फाइनल में 21 गेदों का सामना कर सिर्फ 11 रन बनाए।
वह ऐसे मौके पर बल्लेबाजी के लिए आए थे, जब भारत बड़े स्कोर की ओर ताक रहा था। एक छोर पर विराट कोहली अच्छा खेल रहे थे, युवराज को सिर्फ स्ट्राइक बदलते हुए कोहली को मौका देना था और कमजोर गेंदों पर जोरदार प्रहार कर रन रेट को 8 के ऊपर बनाए रखना था। वह दोनों कामों में नाकाम रहे। डगआउट में धौनी और सुरेश रैना पैड पहने मन मनोससते रहे और अफसोस करते रहे। उन्हें गुस्सा भी आ रहा होगा लेकिन युवराज ने न तो रन बनाए और न ही टीम के हित में विकेट गंवाया। जब आप टीम के लिए खेल रहे होते हैं और जब आपका बल्ला नहीं चल पा रहा होता है तो अपना विकेट गंवाकर भी टीम का हित किया जा सकता है, लेकिन युवराज को देखकर लगा कि वह टीम के लिए नहीं बल्कि अपने लिए खेल रहे हैं। यह सब बातें युवराज को 'विलेन' नहीं बनातीं तो फिर और क्या बनाती हैं?