वर्ल्ड कप फुटबॉल के दूसरे सेमीफ़ाइनल में क्रोएशिया ने कहीं मज़बूत समझे जाने वाली इंग्लिश टीम को हराकर सबको चौंकाते हुए फ़ाइनल का टिकट हासिल कर लिया.
इस टूर्नामेंट की शुरुआत से ना तो क्रोएशिया को ख़िताब का दावेदार माना जा रहा था और ना ही इंग्लैंड को. लेकिन शुरुआती मुक़ाबलों में ज़ोरदार प्रदर्शन के साथ इंग्लैंड की टीम मज़बूत दावेदार के तौर पर उभरी.
इंग्लिश मीडिया में इस तरह का माहौल बनने लगा था कि इस बार वर्ल्ड कप बस इंग्लैंड के कब्ज़े में आने वाला है. लेकिन इस माहौल ने इंग्लैंड की टीम का नुक़सान भी किया.
क्रोएशियाई टीम के मिडफ़ील्डर लुका मोद्रिक ने सेमीफ़ाइनल मुक़ाबले में जीत हासिल करने के बाद ब्रिटिश टीवी चैनल आईटीवी से बात करते हुए कहा, "अंग्रेजी पत्रकारों और टीवी पर एक्सपर्ट रखने वालों ने हमें कमतर करके आंका था, यही उनकी सबसे बड़ी ग़लती रही."
मौद्रिक ने इस इंटरव्यू में आगे कहा, "उन लोगों को अपने विपक्षियों के प्रति थोड़ा सम्मान का भाव रखना चाहिए. वो जो कुछ भी लिख या कह रहे थे, हम उसे पढ़ रहे थे और हमने ये तय किया था कि हम देखेंगे कि इस मैच के लिए कौन कितना थका हुआ है."
मौद्रिक के मुताबिक उनकी टीम ने इंग्लैंड को खेल के हर पहलू में हरा दिया. वे कहते हैं, "हमने एक बार फिर दिखा दिया कि हम थके नहीं हैं, इस मुक़ाबले में शारीरिक और मानसिक तौर पर हमारा दबदबा देखने को मिला."
क्रोएशियाई मिडफ़ील्डर लुका मोद्रिक के इस बयान से ज़ाहिर होता है कि खेल के मैदान पर अगर कोई टीम मिल जुलकर एक लक्ष्य बना ले और उसे हासिल करने में जी जान से जुट जाए तो कोई भी लक्ष्य मुश्किल नहीं होता.
मेसी से मिलने ये भारतीय साइकिल से रूस पहुंच गया
क्रिकेट के बादशाह भारत को कब मिलेगा अपना मेसी- रोनाल्डो?
ऐसा ही एक दिलचस्प उदाहरण 1950 के वर्ल्ड कप फुटबॉल फ़ाइनल का है, जब कमज़ोर समझी जाने वाली उरुग्वे की टीम ने ब्राज़ील को उसके घरेलू मैदान पर हराकर ख़िताब जीत लिया था.
1950 के वर्ल्ड कप का फ़ाइनल जिस दिन खेला जाना था, ठीक उसी दिन सुबह में ब्राज़ील के एक अख़बार के पहले पन्ने की हेडलाइन बैनर के साथ छपी थी, जिसमें ब्राज़ील की फुटबॉल टीम की तस्वीर थी और हेडलाइन थी दिज आर द चैंपियंस ऑफ़ द वर्ल्ड!
एक अख़बार की इस ख़बर का उरुग्वे की टीम पर क्या असर हुआ था, इसका दिलचस्प विवरण महान फ़ुटबॉलर पेले ने अपनी किताब व्हाई सॉकर मैटर्स में लिखा है.
उन्होंने लिखा है, "फ़ाइनल मुक़ाबले की सुबह रियो स्थित उरुग्वे के राजनयिक मैन्युएल काबालेरो टीम होटल में अख़बार की 20 प्रतियों के साथ पहुंचे और सुबह के नाश्ते के समय टेबल पर खिलाड़ियों के सामने अख़बार रखते हुए कहा कि आप सब ये मुक़ाबला हार चुके हो."
पेले ने लिखा है कि उपलब्ध जानकारी के मुताबिक़ इससे उरुग्वे के खिलाड़ी एकदम से आक्रोश में आ गए और चीखने लगे, "नहीं वे चैंपियन नहीं हैं, हम देखेंगे कि कौन चैंपियन हैं."
इतना ही नहीं, पेले ने ये भी बताया है कि उरुग्वे के कप्तान ने अख़बार की प्रतियों पर उरुग्वे के खिलाड़ियों ने एक साथ जमा होकर ब्राज़ील के खिलाड़ियों की तस्वीर पर पेशाब भी किया और ब्राज़ील को हराने का संकल्प लिया.
दूसरी ओर ब्राज़ील की जीत को लेकर किस तरह का माहौल था, इसका अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि फ़ाइनल मुक़ाबले से ठीक पहले ब्राज़ील की टीम के सदस्यों को सोने की घड़ी उपहार स्वरूप भेंट की गई थी, जिस पर ख़ास तौर पर प्रिंट करवाया गया था- द चैंपियंस ऑफ़ द वर्ल्ड.
लेकिन उरुग्वे के खिलाड़ियों ने मैदान में वो कारनामा कर दिखाया, जिसे आज भी फुटबॉल वर्ल्ड कप इतिहास के सबसे बड़े उलटफ़ेर के तौर पर देखा जाता है.
उरुग्वे ने इस मुक़ाबले में ब्राज़ील को 2-1 से हराकर, चैंपियन बनने का करिश्मा कर दिखाया.
इस मैच में उरुग्वे की ओर से निर्णायक गोल दागने वाले एलसिडेस घिगिगा के गोल के बाद मरकाना स्टेडियम में सन्नाटा पसर गया था.
घिगिगा ने इस गोल के बारे में मीडिया से बातचीत में कहा था, "मरकाना स्टेडियम में केवल तीन लोग सन्नाटा ला सकते हैं- मशहूर सिंगर फ्रैंक सिनात्रा, पोप और मैं."
उल्लेखनीय है कि 1950 के इस फ़ाइनल मुक़ाबले को देखने के लिए मरकाना स्टेडियम में दो लाख लोग जमा हुए थे, ये किसी वर्ल्ड कप फुटबॉल मैच देखने के लिए जमा हुए दर्शकों के लिए आज भी एक वर्ल्ड रिकॉर्ड बना हुआ है.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)