ब्राज़ील के दिग्गज फ़ुटबॉल खिलाड़ी रहे पेले ने भविष्यवाणी की थी कि 21वीं सदी शुरू होने से पहले कोई न कोई अफ़्रीकी टीम वर्ल्ड कप जीतने में कामयाब रहेगी.
लेकिन ये भविष्यवाणी सच तो नहीं ही हुई, साथ ही साल 1982 के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि कोई भी अफ़्रीकी टीम फ़ुटबॉल वर्ल्ड कप के नॉकआउट दौर में नहीं पहुंची.
मिस्र, मोरक्को, नाइजीरिया, सेनेगल और ट्यूनेशिया के फ़ैंस भले निराश हों, लेकिन फ्रांस और बेल्जियम के बीच फ़ुटबॉल विश्व कप सेमीफ़ाइनल पर अफ़्रीका गर्व कर सकता है.
इसकी वजह ये कि दोनों ही टीमों, ख़ास तौर से फ्रांस में अफ़्रीकी मूल के कई खिलाड़ी खेल रहे हैं. कुल मिलाकर दोनों टीमों में 23 खिलाड़ी ऐसे हैं, जिनकी जड़ें अफ़्रीका से जुड़ती हैं.
अर्जेंटीना के ख़िलाफ़ फ्रांस ने बेहद अहम मैच में धमाकेदार जीत दर्ज की और इसमें बड़ी भूमिका निभाई 19 साल के फ़्रांसीसी स्ट्राइकर काइलियन एमबापे ने.
एमबापे ख़ास टैलेंट हैं लेकिन दूसरे देश से फ्रांस जाकर बसने वाले परिवार की पहली पीढ़ी से आते हैं और फ़्रांसीसी फ़ुटबॉल टीम में उनसे पहले भी ऐसे कई खिलाड़ी रहे हैं.
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आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि फ़ुटबॉल विश्व कप खेल रही फ़्रांसीसी टीम के 23 में से 17 खिलाड़ी पहली पीढ़ी के इमिग्रेंट हैं. इसके अलावा स्विट्ज़रलैंड और बेल्जियम जैसी टीमों में भी बाहर से आए कई खिलाड़ी हैं.
एमबापे के पिता कैमरून से ताल्लुक रखते हैं जबकि मां अल्जीरिया से हैं. लेकिन ऐसा नहीं कि इन खिलाड़ियों को दिक्कतों को सामना नहीं करना पड़ता.
फ्रांस के आलोचक उनकी धमाकेदार परफ़ॉर्मेंस से चुप्पी साधे बैठे हैं, वहीं बेल्जियम के मामले में ऐसा नहीं है.
मैनचेस्टर यूनाइटेड के लिए खेलने वाले बेल्जियम के खिलाड़ी रोमेलू लुकाकू ने हाल में लिखा था, ''जब हालात मेरी तरफ़ थे तो अख़बार मुझे बेल्जियन स्ट्राइकर रोमेलू लुकाकू लिख रहे थे लेकिन जब हालात उलट थे तो वो लिखते थे कि लुकाकू कांगो मूल के हैं जो बेल्जियम के लिए खेल रहे हैं.''
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आप कह सकते हैं कि विश्व कप के अंतिम चार में जगह बनाने वालों में फ़्रांस, बेल्जियम, इंग्लैंड और क्रोएशिया जैसी यूरोप की टीमें हैं लेकिन ज़रा ठहरकर सोचेंगे तो पाएंगे कि इन चारों टीमों में खेलने वाले खिलाड़ी अलग-अलग देशों से वहां पहुंचे हैं.
मरूने फ़ेलानी, नासर चाडली, रोमेलू लुकाकू, विंसेंट कंपनी, डेडनिक बोयाटा, मिची बातशुयाई, मूसा डम्बेले, एक्सल विट्सल और अदनान जनुज़ाज वो खिलाड़ी हैं जो बेल्जियम की गोल्डन जेनरेशन का हिस्सा हैं लेकिन इनके माता या पिता में से एक विदेश से हैं.
विश्व कप में खेल रहे सारे खिलाड़ियों में से क़रीब 10 फ़ीसदी उस देश से बाहर पैदा हुए हैं जिसकी नुमाइंदगी कर रहे हैं. और इनमें बड़ी संख्या अफ़्रीकी मूल के खिलाड़ियों की है.
और बेल्जियम में कांगो मूल के लोग इतने क्यों हैं? दूसरे विश्व युद्ध के बाद बेल्जियम में कांगो के दस लोग थे लेकिन अब ये संख्या 40 हज़ार से ज़्यादा है.
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