नई दिल्ली। खेल के मैदान के जरिए नई इबारत लिखने का सपना लेकर चलने वाले खिलाड़ियों की राह आसान नहीं होती कुछ को मंजिल मिलती है तो कुछ को बीच रास्ते में ही सिस्टम की बदहाली की मार मिलती है और वह अपने सपनों से कोसोंं दूूर हो जाते हैं। ऐसी ही एक कहानी है कल्पना रॉय की। दस साल पहले देश का प्रतिनिधित्व करने वाली महिला फुटबॉलर कल्पना रॉय आर्थिक तंगहाली के कारण सड़क पर चाय बेचने को मजबूर है। हालांकि उनके इरादे अभी भी मजबूत हैं और 26 साल की कल्पना रॉय अभी भी देश का भविष्य संवारने के लिए 30 लड़कों को दिन में दो बार प्रशिक्षण देती है। उनकी आंखों में अभी भी उम्मीद है कि एक बार फिर देश के लिए खेलने का है।
एक चोट ने बदल दी जिंदगी:
कल्पना को लगी एक घाव हमेशा के लिए उनकी जिंदगी की घाव बन गई।कल्पना बताती हैं कि 2013 में भारतीय फुटबॉल संघ द्वारा आयोजित महिला लीग के दौरान दाहिने पैर में उन्हें चोट लगी थी। उन्होंने कहा ,'मुझे इससे उबरने में एक साल लगा। मुझे किसी से कोई आर्थिक मदद नहीं मिली। इसके अलावा तब से मैं चाय का ठेला लगा रही हूं।'
पिता की बढ़ती उम्र भी मजबूरी का सबब:
कल्पना के पिता की उम्र बढ़ती रही है। पहले उनके पिता भी चाय का ठेला लगाते थे लेकिन बढ़ती उम्र के कारण वह बीमारियों से परेशान है। उन्होंने कहा ,'सीनियर राष्ट्रीय टीम के लिए ट्रायल के लिए मुझे बुलाया गया था, लेकिन आर्थिक दिक्कतों के कारण मैं नहीं गई। मेरे पास कोलकाता में रहने की कोई जगह नहीं है। इसके अलावा अगर मैं गई तो परिवार को कौन देखेगा। मेरे पिता की तबीयत ठीक नहीं रहती।'
यह भी पढ़ें -बेंगलुरू एफसी के खिलाफ क्लीनशीट का प्रयास करेगी एटीके
कल्पना पांच बहनों में सबसे छोटी है। उनमें से चार की शादी हो चुकी है और एक उसके साथ रहती है। उसकी मां का चार साल पहले निधन हो गया। अब परिवार कल्पना ही चलाती है। कल्पना ने 2008 में अंडर-19 फुटबॉलर के तौर पर चार अंतरराष्ट्रीय मैच खेले। अब वह 30 लड़कों को सुबह और शाम कोचिंग देती है। वह चार बजे दुकान बंद करके दो घंटे अभ्यास कराती है और फिर दुकान खोलती है।
ट्रेनिंग के जरिए चल रहा गुजारा:
कल्पना बताती हैं कि ,'लड़कों का क्लब उन्हें ट्रेनिंग के एवज में 3000 रुपए महीना देता है जो उनके लिए बहुत जरूरी है।' कल्पना को लगता है कि वह सीनियर स्तर पर खेलने के लिए फिट है और कोचिंग के लिए अनुभवी भी हैं। कल्पना का कहना है कि उन्हें एक नौकरी की जरूरत है जिससे वह अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें।