कोलकाता। उज्जल हलदेर की उम्र 24 साल है। लेकिन वो बंगाल से शायद ऐसे पहले शख्स हैं जिन्होंने आल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन के रेफरी कमेटी में असिस्टेंट रेफरी के स्पेशलिस्ट की जगह पाई है।
इस शख्स की जिंदगी भी बाकी सफल लोगों की तरह ही हैं। पहले चाय बेची, सरकारी नौकरी छोड़ी और तब जाकर कहीं सपने का एक हिस्सा पूरा हो पाया।
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कोलकाता से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कल्यानी का यह शख्स अपनी सफलता पर प्रफुल्लित नहीं है।
इतना ही नहीं हलदेर को जब यह बताइए कि यह वही शख्स है जो सेकेंड डिवीजन आई लीग में चार उम्दा खेलने वालों में से एक था, तब भी वो बेपरवाह सा दिखता है।
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इन सबकी वजह का अंदाजा लगाया जा सकता है। संभवतः 24 साल के उज्जल के कष्टदायी जीवन ने उसे इतना सहनशील और उदार बना दिया है।
उज्जल ने हर दुख और सफलता को स्वीकार करना सीख लिया है। उज्जल 10 गुणे 10 के छोटे से घर में रहता है। बचपन में पिता की मौत हो गई और मां नीलूरानी घर के सामने ही एक चाय की दुकान चलाती है।
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उजज्ल ने का कि यह बात समझी जा सकती है कि चाय की दुकान से कितनी आमदनी हो सकती है लेकिन उस वक्त कोई और रास्ता नहीं था।
और कोलकाता प्रीमीयर फुटबॉल लीग में एक लाइन्समैन प्रति मैच सिर्फ 450 रुपए पाता है। इसलिए सीजन के खत्म होने पर वो बहुत कम रुपए कमा पाता है। इस वजह से कोई भी रेफरिंग के की ओर प्रेरित नहीं होता।
हालांकि उज्जल अब भी रेफरिंग के लिए काफी उत्साहित है। बीते साल उजज्ल को राज्य सरकार में अस्थाई नौकरी भी मिली।
लेकिन जब संतोष ट्रॉफी में लाइन्समैन के तौर पर सुपरवाईज करने का मौका मिला तो उज्जल ने अपनी अस्थाई नौकरी छोड़ने में तनिक भी हिचक नहीं दिखाई।
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उज्जल जानते हैं कि वो किसी भी बड़े चैंपियनशिप में विसल ब्लोअर नहीं हो सकते क्योंकि उनकी हाईट केवल 5 फीट 5 इंच ही है।
और अब उसका सपना एक और के शंकर की तरह पूरा होने वाला है। उज्जल कहते हैं कि बावजूद की छोटे कद का होने के भी के शंकर लीजेंड थे। उन्होंने लाइन पर खड़े रह कर विश्व कप के मैचों को सुपरवाइज किया।
मैं भी उनका अनुसरण करने की कोशिश करूंगा। उन्होंने मुझे बहुत सारे सुझाव दिए हैं। और अब मैं उस दिशा में चल रहा हूं।