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गरीबी की मार झेलती भारोत्तोलक मंदाकिनी

By Staff
भुवनेश्वर। वर्ष 2002 की एशियाई भारोत्तोलन प्रतियोगिता में रजत पदक और हाल ही में फेडरेशन कप में तीन स्वर्ण और एक रजत पदक। किसी एथलीट की प्रतिभा साबित करने के लिए इससे इतर और क्या चाहिए लेकिन शायद सरकार को ये उपलब्धियां नाकाफी लगती हैं।

संभवत: यही वजह है कि इन कामयाबियों का सेहरा अपने सिर बंधवा चुकीं मंदाकिनी महंता गरीबी की मार से अब लाचार हो चुकी हैं। मंदाकिनी (27 वर्ष) विगत 14 वर्षो से भारोत्तोलन जैसे खेल में अथाह गरीबी के आलम में भी अपना पैर जमाए हैं।

गरीबी की वजह से ही वह वर्ष 2006 में मेलबर्न राष्ट्रमंडल खेलों में चाहकर भी शिरकत नहीं कर सकीं थीं। अब तो आर्थिक तंगी के कारण दिल्ली में वर्ष 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में भी भाग ले पाना उनको बेहद मुश्किल लगता है।

मंदाकिनी ने कहा, "राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लेने के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं। मुझे किसी भी तरह का सरकारी सहयोग प्राप्त नहीं है। यह मेरे लिए बहुत बड़ी चुनौती है।" उनके पिता श्यामसुंदर महंता एक सेवानिवृत्त सरकारी अध्यापक हैं। श्यामसुंदर को मिलने वाली पेंशन और दो एकड़ जमीन की बदौलत ही मंदाकिनी की दो बहनें कॉलेज जा पाती हैं।

वह कहती हैं, "पिता ने हमेशा मेरा साथ दिया और मेरा उत्साह भी बढ़ाया। परंतु मैं उनसे आर्थिक सहयोग की उम्मीद नहीं कर सकती।" सामाजिक कार्यकर्ता विजय मिश्रा के मुताबिक, "मंदाकिनी एक अद्भुत भारोत्तोलक हैं। मैंने उनकी प्रतिभा को बहुत पहले पहचान लिया था तबसे मैं उनके उपकरणों और प्रशिक्षण पर आने वाले खर्च का वहन कर रहा हूं।

"इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

Story first published: Tuesday, November 14, 2017, 12:21 [IST]
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