भारत को निशानेबाज़ी के लिए ओलंपिक में पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक दिलाने वाले अभिनव बिंद्रा नेशनल राइफ़ल एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया (एनआरएआई) के रवैये से आहत हैं और उन्होंने कहा है कि निशानेबाज़ी में शायद उनके लिए कोई भविष्य नहीं है.
अंग्रेज़ी अख़बार 'हिंदुस्तान टाइम्स' को दिए इंटरव्यू में बिंद्रा ने कहा कि एनआरएआई का जिस तरह का रवैया है, ऐसे में उसके साथ जुड़ने का कोई मतलब नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर एसोसिएशन का रवैया ऐसा ही रहा तो इस खेल में भविष्य की उम्मीद करना बेकार है.
27 वर्षीय बिंद्रा दिल्ली में इसी साल होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों और चीन में एशियाई खेलों की तैयारियों के लिए पिछले छह महीने से विदेश में प्रशिक्षण ले रहे हैं. राइफ़ल एसोसिएशन चाहती है कि बिंद्रा देश में समय-समय पर होने वाले ट्रायल्स के लिए उपलब्ध रहें.
तकरार
बिंद्रा ऐसे ही एक ट्रायल में हिस्सा लेने के लिए दिसंबर में जर्मनी से भारत आए थे, लेकिन ये ट्रायल आख़िरी क्षणों में स्थगित कर दिया गया.
इसके बाद बिंद्रा ने राइफ़ल एसोसिएशन और खेल मंत्रालय को पत्र लिखा और कहा कि उन्हें राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों की तैयारी उसी तरह करने दी जाए जिस तरह उन्हें बीजिंग ओलंपिक खेलों के लिए की थी. लेकिन शुक्रवार तक उन्हें मंत्रालय या एसोसिएशन की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला था.
अभिनव बिंद्रा ने कहा कि वे अपनी ज़िम्मेदारी से भाग नहीं रहे हैं. उन्होंने कहा, "मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि मैं जवाबदेह नहीं होना चाहता. मैं अंतरराष्ट्रीय मुक़ाबलों में शिरकत करूँगा और उनमें मेरे प्रदर्शन का आकलन किया जा सकता है."
एसोसिएशन के रुख़ से आहत बिंद्रा ने कहा कि अब मुझे समझ में आ गया है कि भारत को एक स्वर्ण पदक जीतने में क्यों 112 साल लग गए.