रविवार के वही तीन बजे का व़क्त है, फिर एक वर्ल्ड कप फ़ाइनल मैच होनेवाला है और भारत और पाकिस्तान आमने-सामने हैं.
फ़र्क बस इतना कि टीम विराट कोहली की नहीं बल्कि मिताली राज की है. ऐसा होगा तो क्या आप मैच देखेंगे? पूछेंगे कि 'बाप' कौन और 'बेटा' कौन है?
या यूं कहूं कि 'मां' कौन और 'बेटी' कौन है? ये जानना चाहेंगे कि भारत और पाकिस्तान कितनी बार एक-दिवसीय मैच में आमने-सामने हुए हैं? (जवाब - नौ बार)
और कौन कितनी बार दूसरे पर भारी पड़ा है? (जवाब - भारत हर बार जीता है)
'क्रिकेट खेलोगी तो काली हो जाओगी, शादी कैसे होगी'
सचिन से पहले दोहरा शतक बनाने वाली क्रिकेटर
अगर ट्विटर पर अचानक #IndiaGirlsCanDoIt ट्रेंड करने लगे, कौतुहल में आप टीवी लगाएं और पता चले कि मैच फंसा हुआ है और भारत चैम्पियन बन सकता है, फिर क्या आखिरी 10 ओवर देखने का समय निकालेंगे?
बड़ी दुविधा है ना. महिला क्रिकेट देखने में व़क्त ज़ाया करें क्या?
बड़ी पुरानी दुविधा है. 1976 में जब भारत की महिला क्रिकेट टीम ने पहला टेस्ट मैच खेला था तब भी फ़ैन्स तय नहीं कर पा रहे थे.
दरअसल पुरुषों ने इस खेल में क़रीब पांच दशक पहले 1932 में शुरुआत कर ली थी. यानी तगड़ा 'फ़र्स्ट मूवर ऐडवान्टेज'.
जिसके बावजूद उन्हें असली लोकप्रियता मिली 1983 के वर्ल्ड कप की जीत से.
महिला क्रिकेट टीम का अगला मिशन वर्ल्ड कप
' जेन्टलमैन्स गेम'
भारत का खुलता बाज़ार और सैटेलाइट टीवी पर प्रसारण की पहल ने क्रिकेट को गली-नुक्कड़ के खेल से हीरो का दर्जा दे दिया.
पर हिरोईनें अब भी नदारद सी ही थीं. मोहल्ले में बैट-बॉल के साथ लड़के ही भागते दिखते थे.
1982 में 'टाइम्स आफ़ इंडिया' की साप्ताहिक पत्रिका 'धर्मयुग' ने महिला क्रिकेट टीम को कवर पेज पर जगह दी. पर फ़ैन्स की नज़र में क्रिकेट भद्र पुरुषों का खेल यानी 'जेन्टलमैन्स गेम' ही था.
ये ख़्याल बदले भी तो कैसे, भारत की महिला क्रिकेट टीम ने अंतर्राष्ट्रीय स्टर पर आज तक सिर्फ़ 36 टेस्ट मैच और 239 एक-दिवसीय मैच खेले हैं.
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जिनमें से गिनती के मैचों का टीवी पर प्रसारण होता है. वहीं पुरुषों की क्रिकेट टीम ने 512 टेस्ट और 911 एक-दिवसीय मैच खेले हैं.
टीम तो छोड़िए 1978-1995 तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलनेवाले कपिल देव ने भी 131 टेस्ट और 225 एक-दिवसीय मैच खेल लिए थे.
तो जो दिखेगा नहीं वो लोकप्रिय नहीं होगा, या यूं कहूं कि जो दिखेगा नहीं वो बिकेगा नहीं. साल 2005 में तो महिला क्रिकेट टीम वर्ल्ड कप जीतते-जीतते रह गई.
दक्षिण अफ़्रीका से जब फ़ाइनल हारे थे तब 23 साल की मिताली राज पहली बार कप्तान बनी थीं.
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इसके बाद 2006 में 'वुमेन्स क्रिकेट एसोसिएशन' को बीसीसीआई में मिलाया गया और आने वाले सालों में कुछ बदलाव भी आए.
एशिया कप में भारतीय महिला क्रिकेट टीम लगातार चैम्पियन रही, वर्ल्ड ट्वेंटी-ट्वेंटी में दो बार सेमी-फ़ाइनल तक पहुंची और टीवी पर उनके मैच प्रसारित भी होने लगे हैं.
पर टेनिस में सानिया मिर्ज़ा, बैडमिन्टन में साइना नेहवाल, बॉक्सिंग में मेरी कॉम और दंगल में फ़ोगाट बहनों जैसी लोकप्रियता नहीं मिली.
एकल प्रतियोगिता में औरतें पहचानी गईं पर टीम खेल में, चाहे हॉकी हो या क्रिकेट, 'चक दे इंडिया' उनके लिए शायद ही कभी बोला गया.
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तमाम निजी रिकॉर्ड्स के बावजूद वो क्या है जो टीम इंडिया को 'वुमेन इन ब्लू' की टैगलाइन नहीं दिला पाया है.
मिताली राज के मुताबिक इसके लिए क्रांति चाहिए, और वो एक वर्ल्ड कप जीत ही दिला सकती है.
1983 का जादू दोबारा हो सकता है क्या? वर्ल्ड नंबर पांच भारतीय महिला क्रिकेट टीम ऐसा कर पाएगी क्या? जीत मिलेगी या नहीं?
और सबसे अहम् सवाल जब 23 जुलाई को मैच खेला जा रहा होगा, तो आप देखेंगे क्या?