सुशील कुमार ने लगातार तीसरी बार राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीत कर नया रिकार्ड बनाया है.
जिस तरह से उन्होंने चार कुश्तियों में अपने प्रतिद्वंदी पहलवानों को धूल चटाई, उसे देख कर साफ़ लगा कि उनमें अभी भी कम से कम दो साल की कुश्ती बची हुई है.
35 साल के सुशील कुमार को स्वर्ण पदक जीतने के लिए ज़रा भी पसीना नहीं बहाना पड़ा. यहाँ तक कि कोई भी पहलवान उनके ख़िलाफ़ एक अंक तक नहीं ले पाया.
लेकिन इतनी बड़ी जीत हासिल करने के बाद उन्होंने मीडिया से बात नहीं की. वो दो बार मेरे सामने आए. पहली बार उन्होंने कहा कि मेडेल सेरेमनी के बाद बात करेंगे. जब मेडेल सेरेमनी हो गई तो बोले कि मुझे डोप टेस्ट कराने जाना है. अभी दो मिनट में आता हूँ.
मैं इंतज़ार करता रह गया पर सुशील बाहर नहीं आए और पिछले दरवाज़े से निकल गए.
गोल्डकोस्ट आने से पहले उनका नाम कई विवादों से जुड़ गया था. एक पहलवान प्रवीण राणा ने आरोप लगाया था कि सुशील के समर्थकों ने उनकी पिटाई की थी. शायद वो इन सब चीज़ों पर बात करने से बच रहे हैं.
बबिता कुमारी को इस बात का ग़म तो था ही कि वो यहाँ स्वर्ण पदक नहीं जीत पाईं, इस बात का ग़म ज़्यादा था कि पहली बार उनको लड़ते देखने विदेश आने के बावजूद उनके पिता महावीर सिंह फोगाट करारा स्टेडियम में नहीं घुस पाए. और तो और वो टीवी पर भी उन्हें लड़ते हुए नहीं देख पाए.
गोल्डकोस्ट में हर खिलाड़ी को अपने परिजनों के लिए दो टिकट दिए गए हैं, लेकिन बबिता को वो टिकट नहीं मिल पाए. जब उन्होंने शेफ़ डे मिशन विक्रम सिसोदिया से शिक़ायत की तो उन्होंने बताया कि पहलवानों के सारे टिकट उनके कोच राजीव तोमर को दिए जा चुके हैं. उन्होंने ख़ुद अपने हाथों से पाँच टिकट तोमर को दिए हैं.
तोमर से जब बबिता ने टिकट मांगा तो उनके पास कोई टिकट उपलब्ध नहीं था. महावीर सिंह फोगाट भारत में ख़ुद एक बड़े स्टार हैं, क्योंकि उन्होंने ही फोगाट बहनों को ट्रेनिंग देकर नामी पहलवान बनाया, लेकिन शायद भारतीय कुश्ती अधिकारी उनके इतने बड़े फ़ैन नहीं हैं.
यहाँ कई खेल स्टार्स के माता पिता को भारतीय ओलंपिक संघ की तरफ़ से 'एक्रेडिटेशन' तक दिए गए हैं, लेकिन बबिता इस बात से दुखी थीं कि इतनी दूर आने के बावजूद उनके पिता को स्टेडियम के अंदर तक प्रवेश नहीं मिल पाया.
आख़िर में ऑस्ट्रेलियाई टीम ने उनकी मदद की और किसी तरह उन्हें एक टिकट दे दिया. लेकिन वो जब तक स्टेडियम के अंदर पहुँच पाते, बबिता का फ़ाइनल मैच समाप्त हो चुका था.
बबिता ने वैसे तो अपनी सारी कुश्तियाँ अच्छी लड़ीं, लेकिन फ़ाइनल में कनाडा की डायना विकर उनपर भारी पड़ीं.
बबिता ने बताया कि कनाडियन पहलवान का डिफ़ेस बहुत अच्छा था. मेरे घुटनों में चोट थी, लेकिन फिर भी मैंने अपना 100 फ़ीसदी दिया. चोटे तो खिलाड़ी का गहना होती हैं. हो सकता है मुझसे कुछ ग़लती हुई हो, क्योंकि कुश्ती में एक सेकेंड के सौंवे हिस्से में भी बाज़ी पलट सकती है.
बबिता ने राष्ट्रमंडल खेलों में लगातार तीसरी बार पदक जीता है.
महाराष्ट्र के कोल्हापुर में रहने वाले राहुल आवारे ने जिस तरह से अपनी पहली कुश्ती में इंग्लैंड के पहलवान जॉर्ज रैम को हराया, उससे इस पहलवान की प्रतिभा का आभास मिल गया.
पाकिस्तान के पहलवान बिलाल मोहम्मद ने उन्हें कड़ी टक्कर ज़रूर दी, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं था कि राहुल उनसे बेहतर पहलवान थे. फ़ाइनल में उनका सामना कनाडा के जापानी मूल के पहलवान स्टीवेन ताकाशाही से था.
ताकाशाही विश्व स्तर के पहलवान हैं. उन्होंने एक समय पर भारतीय दाँव धोबी पछाड़ लगा कर राहुल पर बढ़त भी बनाई, लेकिन राहुल ने कई बार अपने दांवो में फंसा कर जल्द ही उस बढ़त को पाट दिया.
कुश्ती ख़त्म होने से एक मिनट पहले राहुल को जांघ के आसपास चोट भी लगी, लेकिन थोड़े से उपचार के बाद वो फिर मैट पर उतरे और फिर उन्होंने ताकाशाही को कोई मौका नहीं दिया.
अंतिम क्षणों में ताकाशाही ने उन्हें चित करने की आखिरी कोशिश की, लेकिन तब तक हूटर बज चुका था. राहुल रियो ओलंपिक में भी भारत का प्रतिनिधित्व करने के दावेदार थे, लेकिन उनकी सगह संदीप तोमर को चुना गया था.
राहुल ने जीत के बाद सबसे पहले मुझसे बात की. वो बोले ये मेरी ज़िदगी का सबसे बड़ा दिन है. मैं अपना ये स्वर्ण पदक अपने पहले कोच हरिश चंद्र बिराजदार को समर्पित करता हूँ. उन्होंने भी राष्ट्रमंडल खेलों में मेरी तरह पदक जीता था, लेकिन वो अब इस दुनिया में नहीं हैं.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)