प्रस्तुति:पवन नारा
विजेंदर सिंह आजकल अपने वज़न को कम करने की कवायद में लगे हुए है. आगामी 25-26 अगस्त को पटियाला में राष्ट्रमंडल खेलों के लिए मुक्केबाज़ी टीम चुनी जाएगी.इसके लिए विजेंदर अपनी तैयारियों से संतुष्ट हैं.तैयारियों पर विजेंदर कहते हैं "अभी मैंने अपना पूरा ध्यान वज़न घटाने पर लगा रखा है. मैं 75 किलोग्राम वर्ग में खेलता हूँ और अभी मेरा वज़न एक किलो ज़्यादा है."
विजेंदर को भरोसा है कि वो एक हफ्ते मे वज़न घटा लेंगे.विजेंदर तैयारियों के साथ-साथ राष्ट्रमंडल खेलों मे आने वाले अपने विरोधियों की ताक़त और कमियों का आकलन कर रहे हैं.इन खेलों में कौन से खिलाड़ी प्रमुख चुनौती हो सकते हैं, इस पर विजेंदर कहते हैं, "मेरा ध्यान मुख्य रुप से ऑस्ट्रेलिया के मुक्केबाज़ों पर है, इसके अलावा मुझे लगता है कि अफ़्रीकी देशों से आने वाले मुक्केबाज़ कड़ी चुनौती दे सकते हैं."
विजेंदर आत्म विश्वास से भरे हुए हैं. इसका अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते है कि विजेंदर उन खिलाड़ियों को बड़ी चुनौती नहीं मानते, जिन्हें वो हरा चुके हैं.कोच गुरबख़्श सिंह संधू को भरोसा है कि विजेंदर राष्ट्रमंडल खेलों में बेहतर प्रदर्शन करेंगें.
संधू कहते हैं, "विजेंदर मुक्केबाज़ी मे पूरे देश का आदर्श बन चुके हैं, ऐसे में उन पर काफी दबाव है. देश ही नहीं कैंप मे मौज़ूद बाक़ी मुक्केबाज़ो की नज़रें भी विजेंदर पर टिकी हुई हैं."वह भी मानते है कि एक चर्चित सितारा बन जाने के बाद से विजेंदर का ध्यान बँटा हैं पर कोच को विजेंदर पर भरोसा है कि वो अपनी सभी ज़िम्मेदारियों पर ध्यान देने में सफल होंगे.
विजेंदर सिंह को राष्ट्रमंडल खेलों के लिए ब्रांड एंबेस्डर बनाए जाने पर गुरबख़्श सिंह संधू काफी खुश हैं.ख़ुशी जताते हुए वह कहते हैं, "हमने वो दिन देखें हैं जब मुक्केबाज़ी को कोई नहीं जानता था लेकिन अब मुक्केबाज़ ब्रांड एंबेंस्डर बन रहे हैं. मैं इतना खुश हूँ कि मैं अपनी ख़ुशी बयाँ नहीं कर सकता. "
हरियाणा के भिवानी जिले के काणुवास गाँव से निकलकर विश्व भर में पहचान बनाने वाले विजेंदर सिंह का जन्म 29 अक्तूबर 1985 को हुआ.विजेंदर सिंह के पिता महिपाल सिंह बैनिवाल हरियाणा रोडवेज़ में ड्राईवर का काम करते हैं और उनकी माँ कृष्णा गृहिणी हैं.विजेंदर को मुक्केबाज़ी की प्रेरणा अपने बड़े भाई मनोज से मिली जो की ख़ुद एक राष्ट्रीय स्तर के मुक्केबाज़ रह चुके हैं और फ़िलहाल भारतीय सेना में कार्यरत हैं.
भिवानी बॉक्सिंग क्लब मे अपने पहले गुरू जगदीश सिंह की देख-रेख में विजेंदर ने मुक्केबाज़ी के शुरुआती गुर सीखे.विजेंदर ने 2001 में इटली की एक प्रतियोगिता में 54 किलोग्राम वर्ग में स्वर्ण पदक जीता . ये उनका पहला अंतरराष्ट्रीय पदक था जिसके बाद उन्होंने फिर कभी मुड़ कर नहीं देखा.
विजेन्दर का परिचय
बीजिंग ओलंपिक मे विजेंदर ने काँस्य पदक जीता, इतिहास में ये पहली बार था जब भारत को मुक्केबाज़ी में कोई पदक प्राप्त हुआ.इसके बाद इटली के मिलान शहर में हुई विश्व मुक्केबाज़ी चैंपियनशिप में विजेंदर को काँस्य पदक मिला है. ग़ौरतलब है कि इस प्रतियोगिता के इतिहास में ये पहला अवसर था जब किसी भारतीय मुक्केबाज़ को कोई पदक मिला .
विजेंदर सिंह को 2009 में प्रतिष्ठित राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार से नवाज़ा गया.विजेंदर 2011 में एक फिल्म में अभिनय भी करने वाले हैं और मुक्केबाज़ी के प्रचार प्रसार के लिए आईपीएल की तर्ज पर एक मुक्केबाज़ी प्रतियोगिता आयोजित करना चाहते है.विजेंदर अब 75 किलोग्राम वर्ग में दुनिया के नंबर एक मुक्केबाज़ हैं.