गोल्ड हाथ में आकर फिसल गया जैसे-
38 साल के नोएडा के जिला अधिकारी अपनी इस उपलब्धि से खुश भी है और बहुत ज्यादा निराश भी। उनका कहना यह है कि उन्होंने अपनी जिंदगी में इससे पहले एक ही समय निराशा और खुशी को एक साथ इस तरह से अनुभव नहीं किया। सुहास ने मेडल जीतने के बाद एक वीडियो मैसेज पोस्ट किया है जो कि पैरालंपिक कमेटी ऑफ इंडिया के द्वारा आयोजित किया गया था। वह कहते हैं, "यह बहुत ही भावुक क्षण है। मैं इससे पहले कभी भी अपनी जिंदगी में एक साथ इतना निराश और इतना खुश नहीं हुआ। मैं बहुत खुश हूं क्योंकि मैंने सिल्वर मेडल जीता और बहुत ज्यादा निराश हूं क्योंकि मैं गोल्ड मेडल जीतने से बहुत बड़े ही मामूली अंतर से चूक गया।"
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सिल्वर पर भी है बहुत गर्व- सुहास
सुहास वैसे तो दिखने में ठीक-ठाक लगते हैं लेकिन उनके टखने में कमी है जिसके चलते वे दिव्यांग श्रेणी में ही आते हैं और उनको पूरी उम्मीद थी कि वह टोक्यो में भारत का राष्ट्रीय गान बजवाने में कामयाब रहेंगे लेकिन ऐसा नहीं हो पाया और क्योंकि गोल्डन उंगली से फिसल गया। SL4 क्लास सिंगल्स में विश्व नंबर 3 पर मौजूद इस खिलाड़ी का कहना है कि- हां, आप गोल्ड मेडल के लिए ही प्रार्थना करते हैं तो इसी के लिए आप ट्रेनिंग लेते हैं और यही आपकी आशा होती है, यही आपका सपना है। जैसा कि मैं कह चुका हूं मैं जिंदगी में कभी इतना निराश और खुश नहीं हुआ। इतना ज्यादा करीब आया हूं मैं लेकिन जीत नहीं पाया पर फिर भी एक पैरालंपिक मेडल छोटी बात नहीं है और मैं इसके लिए काफी गर्व महसूस करता हूं जो मैंने इन पिछले दिनों में हासिल किया।"
इंजीनियर, IAS, पैरालंपिक मेडलिस्ट-
सिराज पढ़ाई में एक कंप्यूटर इंजीनियर रहे हैं और वे 2007 में आईएएस ऑफिसर बने थे। वह नोएडा के डीएम रहते हुए कोविड-19 महामारी से लड़ने में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं और उन्होंने अपनी ट्रेनिंग का भी साथ-साथ समय निकाला है जिसके लिए उनकी जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है। सुहास अपने खेल करियर में अभी तक 5 गोल्ड मेडल जीत चुके हैं। 4 सिल्वर उनके खाते में आए हैं और 7 बार ब्रॉन्ज मेडल उन्होंने इंटरनेशनल कंपटीशन में जीता। वे अपने खेल करियर में इस पैरालंपिक मेडल को सबसे खास मानते हैं क्योंकि वह कहते हैं किसी भी खिलाड़ी के लिए ओलंपिक और पैरालंपिक से ऊंचा कुछ भी अचीवमेंट नहीं होता तो यह मैडम मेरे लिए पूरी दुनिया हासिल करने के समान है।