अलग-अलग नंबरों से करीबियों से चल रही थी बात-
सुशील कुमार के ऊपर 4 मई को दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में सागर और उसके साथियों की पिटाई करने का आरोप है, इस दौरान गोलियां भी चली बाद में सागर की अस्पताल में मौत हो गई। पुलिस के अनुसार सुशील कुमार ने अलग-अलग नंबर लिए हुए थे जिनसे वह अपने करीबी लोगों से बात करता रहता था और आखिरकार दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल टीम को इस व्यक्ति को पकड़ने में कामयाबी हासिल हुई।
सुशील कुमार का जन्म 26 मई 1983 दिल्ली के नजफगढ़ के पास के गांव में हुआ था। उनके पिता दीवान सिंह दिल्ली एमटीएनएल में एक ड्राइवर थे जबकि उनकी माता कमला देवी एक हाउसवाइफ है। सुशील कुमार को रेसलिंग का शौक अपने पिता को देखकर लगा जो कि खुद एक पहलवान रहे हैं और साथ ही सुशील के कजिन संदीप भी पहलवान थे। बाद में संदीप ने तो पहलवानी छोड़ दी लेकिन सुशील कुमार को 14 साल की उम्र में छत्रसाल स्टेडियम दिल्ली में दाखिला दिलाया गया ताकि वह इस अखाड़े में रहकर पहलवानी के दांव सीख सकें।
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बचपन और दिग्गज पहलवान बनने का सफर-
माता पिता के पास उनकी ट्रेनिंग के लिए बहुत ज्यादा पैसा नहीं था और भारत में तब पहलवानी को लेकर सुविधाएं भी बहुत कम हुआ करती थी। परिवार ने उनकी पहलवानी के लिए जरूरी खुराक घर से ही जुटानी शुरू की थी जिसमें वह दूध, घी और ताजी सब्जियां देते थे। सुशील कुमार एक शुद्ध शाकाहारी व्यक्ति हैं। सुशील कुमार ने पोस्ट ग्रेजुएशन की हुई है जो कि नोएडा के फिजिकल एजुकेशन कॉलेज से की है। सुशील कुमार को छत्रसाल स्टेडियम में अर्जुन अवॉर्डी सतपाल के अंतर्गत ट्रेनिंग करने को मिली और फिर बाद में इंडियन रेलवे के कैंप में ज्ञान सिंह और राजकुमार गुर्जर जैसों ने उनको ट्रेनिंग थी। सुशील कुमार को सफलता 1998 से ही मिलनी शुरू हो गई थी जब उन्होंने वर्ल्ड कैडेट गेम्स में अपने भार वर्ग में गोल्ड मेडल जीता था। उसके बाद 2000 में एशियन जूनियर रेसलिंग चैंपियनशिप में भी गोल्ड मेडल जीता गया। सुशील कुमार ने 2003 में एशियन रेसलिंग चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता जबकि कॉमनवेल्थ रेसलिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता। सुशील कुमार को 2006 में अर्जुन अवार्ड दिया गया जबकि 2011 में पदम श्री अवार्ड भी भारतीय सरकार द्वारा दिया गया।
2000 के दशक में कामयाबी कदम चूमती रही-
इससे पहले उन्होंने 2008 के बीजिंग ओलंपिक में ब्रोंज मेडल जीता था इसके बाद अगले ही ओलंपिक, जो कि 2012 लंदन में हुआ, में सुशील ने सिल्वर मेडल जीतने में कामयाबी हासिल की और इस प्रकार एकमात्र ऐसे एथलीट बन गए जिन्होंने व्यक्तिगत तौर पर ओलंपिक में 2 पदक जीते। सुशील ने 2008 ओलंपिक में जो मेडल जीता था वह कुश्ती में तब भारत द्वारा जीता गया केवल दूसरा मेडल था। इससे पहले केडी जाधव ने 1952 के समर ओलंपिक्स में कांस्य पदक जीता था। सुशील कुमार की बड़ी उपलब्धियों के चलते 2012 लंदन ओलंपिक की ओपनिंग सेरेमनी में उनको भारतीय झंडा लेकर आगे चलने का सम्मान भी दिया गया। सुशील कुमार को जुलाई 2009 में राजीव गांधी खेल रत्न अवार्ड भी दिया गया जो भारत में खिलाड़ियों के लिए सबसे बड़ा सम्मान है। सुशील कुमार ने 2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स में भी 74 किलोग्राम डिवीजन में गोल्ड मेडल जीता है। सुशील की उपलब्धियों के बाद उनको रेलवे में असिस्टेंट कमर्शियल मैनेजर के तौर पर काम भी मिला।