ये वाक्या है 1987 विश्व कप का
1987 में पहली बार इंग्लैंड के बाहर कोई विश्व कप आयोजित किया गया था। इस बार टूर्नामेंट की मेजबानी भारत और पाकिस्तान कर रहा था। भारतीय उपमहाद्वीप में क्रिकेट बहुत लोकप्रिय था। इसका फायदा उठाने के लिए जगमोहन डालमिया और पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने टूर्नामेंट की मेजबानी करने पर सहमति जताई थी। भारत ने 1983 में विजेता था। वह खिताब बचाने के लिए 1987 में उतरा। टूर्नामेंट का तीसरा मैच गत चैम्पियन भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच चेन्नई के चेपॉक मैदान पर खेला गया। 9 अक्तूबर को कप्तान कपिल देव ने टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी करने का फैसला किया। ऑस्ट्रेलियाई सलामी बल्लेबाज डेविड बूने और ज्योफ मार्श दोनों ने शानदार बल्लेबाजी करते हुए भारतीय गेंदबाजों की परीक्षा लेना शुरू कर दी। टीम के 110 रन बनाकर हालांकि बूने 49 रन बनाकर आउट हो गए।
बूने के लौटने के बाद डीन जोंस मैदान पर पहुंचे। जोंस ने एक साल पहले इसी चेन्नई मैदान पर एक टेस्ट मैच में ऐतिहासिक दोहरा शतक जड़ा था। जोंस ने एक बार फिर शानदार खेल दिखाया। वह स्पिन गेंदबाजों पर अटैक कर रहे थे। इस बीच दूसरे सलामी बल्लेबाज मार्श ने अपना शतक पूरा किया।
अंपायर ने दिया चाैका तो अड़ गए जोंस
जोंस भी फॉर्म में थे। उन्होंने मनिंदर सिंह की एक गेंद पर लॉन्ग ऑन की ओर शाॅट खेला। उस समय भारतीय टीम के सबसे लंबे खिलाड़ी रवि शास्त्री ऊंचाई से आ रही गेंद को पकड़ने में नाकाम रहे और गेंद नीचे गिर गई। यानी कि कैच लपकने से भी चूक गए। लेकिन गेंद बाउंड्री के बेहद करीब गिरी थी। ऐसे में यह एक छक्का है या चाैका, अंपायर डिकी बर्ड फैसला नहीं ले सके। जब उन्होंने रवि शास्त्री से पूछा कि यह चौका है या छक्का, तो शास्त्री ने इसे चाैका बताया। फिर मैदानी अंपायर बर्ड ने 4 रन दे दिए। इधर, बल्लेबाज डीन जोंस कह रहे थे, यह एक छक्का है। भारतीय विकेटकीपर किरण मोरे ने जोंस को बताया कि यह चौका था। आपको छक्का क्यों लग रहा है।
जोन्स ने एक बार फिर अंपायर बर्ड को समझाने की कोशिश की कि यह छक्का है, चौका नहीं। बर्ड ने जवाब दिया कि वह पारी के अंत में इस मामले पर चर्चा करेंगे। इसके बाद बाकी के ओवर खेले गए। ऑस्ट्रेलिया ने 50 ओवर में 268 रन बनाए। पहली पारी के बाद ऑस्ट्रेलियाई टीम के मैनेजर एलन क्रॉम्पटन ने ब्रेक के दौरान कहा कि वह इस फैसले से सहमत नहीं हैं। क्रॉम्पटन ने बर्ड और डेविड आर्चर से बात की और फिर तीनों कपिल देव के पास गए। कपिल देव ने भी खेल भावना दिखाते हुए कह दिया कि चलो ठीक है आप इसे छक्का मान लीजिए।
आखिरी ओवर में फिर 1 रन से हारे
ऐसे में ऑस्ट्रेलिया का स्कोर 268 से बढ़कर 270 हो गया और भारत के सामने जीत के लिए 271 रनों का लक्ष्य हो गया। अनुभवी भारतीय सलामी बल्लेबाज सुनील गावस्कर और कृष्णमाचारी श्रीकांत ने 69 रन बनाकर पारी की शुरुआत की। गावस्कर के आउट होने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने पहली गेंद से ही तेज खेलने की रणनीति अपनाई। स्कोरबोर्ड पर 131 रनों के साथ, श्रीकांत को स्टीव वॉ ने 70 रन पर आउट कर दिया। सिद्धू जब 73 रन पर आउट हुए तो भारत का स्कोर 207-3 था। ऐसा लगा कि भारत जीत जाएगा, लेकिन अजहरुद्दीन, शास्त्री, कपिल देव ने जल्दी विकेट गंवाकर मैच अचानक ऑस्ट्रेलिया की ओर कर दिया।
फिर 49वें ओवर में ऑलराउंडर मनोज प्रभाकर एलन बॉर्डर के एक सटीक थ्रो पर आउट हो गए। भारत को आखिरी ओवर में जीत के लिए छह रनों की जरूरत थी। वहीं किरण मोरे और मनिंदर सिंह मैदान पर आखिरी जोड़ी थी। स्ट्राइकर मनिंदर सिंह ने स्टीव वॉ की पहली और चौथी गेंद पर दो-दो रन बनाकर भारत को जीत के करीब पहुंचाया। फिर भारत को जीत के लिए दो गेंदों पर दो रन चाहिए थे, लेकिन पांचवीं गेंद पर मनिंगर आउट हो गए। इस तरह भारतीय टीम 269 रनों पर ढेर होकर 1 रन से मैच हार गई। अगर कपिल देव ने मुफ्त में कंगारूओं को 2 रन ना दिए होते तो मैच भारत के पक्ष में होता। लेकिन भले ही भारत ये मैच हार गया था, पर कपिल देव ने खेल भावना दिखाते हुए सबका दिल जीत लिया था।