5. मीराबाई चानू ने वेटलिफ्टिंग में भारत को पहला सिल्वर दिलाया-
मीराबाई चानू टोक्यो ओलंपिक 2020 की पहली भारतीय मेडलिस्ट रही और वे वेटलिफ्टिंग में सिल्वर मेडल लाने वाली देश की पहली महिला भी बनी। चानू ने 49 किलोग्राम भार वर्ग में मेडल जीता और टोक्यो ओलंपिक में भारत को रिप्रेजेंट करने वाली अकेली वेटलिफ्टर थीं। मणिपुर के छोटे से गांव से आने वाली मीराबाई चानू की यह उपलब्धि लड़कियों के लिए इस खेल में और भी ज्यादा प्रेरणा देने के लिए बड़ी अहम है। चानू अपने मुकाबले में इतनी मजबूत थी कि पहले स्थान पर आई चीन जे होउ के बाद वे अकेली ऐसी महिला थीं जिन्होंने इस प्रतियोगिता में कुल मिलाकर 200 किलो से ऊपर का वजन उठाया क्योंकि ब्रोंज मेडल जीतने वाली इंडोनेशिया की कांतिका विंडी चानू से बहुत पीछे 194 किलोग्राम पर थीं।
चानू की जीत ने नॉर्थ ईस्ट रीजन के साथ हमारी भावनाओं को और मजबूत किया है और उन्होंने साबित कर दिया है आप का आगाज कितना भी खराब हो लेकिन लोग इस बात को याद रखते हैं कि आपने अंजाम किस तरीके से किया। टोक्यो ओलंपिक के सिल्वर मेडलिस्ट की शुरुआत रियो ओलंपिक 2016 में हुई थी जो काफी खराब थी पर उन्होंने उन सब चीजों से निजात पाकर 24 जुलाई 2021 में इतिहास रच दिया।
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4. अदिति अशोक- इतिहास बिना मेडल के भी बनते हैं
गोल्फ एक ऐसा खेल है जिसको भारत में काफी कम देखा जाता है और विदेशों में यह काफी लोकप्रिय है। लेकिन भारत की अदिति अशोक ने जो हैरतअंगेज कारनामा किया उसके बाद इस खेल को भी देश में नई पहचान मिलने की पूरी उम्मीद है। यह ओलंपिक भारत की बेटियों के लिए खास रहा है और अदिति अशोक ने इसको और भी बेहतरीन बना दिया। अदिति अशोक महिला इंडिविजुअल स्ट्रोक प्ले में शुरू के 3 राउंड में तीन दिन तक लगातार टॉप 3 पर रहीं और फाइनल राउंड में केवल 1 स्ट्रोक से ऐतिहासिक मेडल से चूक गईं।
यह भारत की झोली में पहला गोल्फ मेडल होता। उनका मुकाबला दुनिया की बेस्ट गोल्फर्स से था जिनकी रैंकिंग टॉप में थी लेकिन अदिति ने 200वीं रैंक होने के बावजूद उनको इस तरीके से टक्कर दी कि सभी लोग दांतों तले अंगुली चबा उठे। इस मुकाबले में कई बार मौसम खराब हुआ जिसने खिलाड़ियों की लय तोड़ी। महान खिलाड़ियों के बीच नंबर चार पर रहीं अदिति किसी विजेता से कम नहीं है।
भारत ने गोल्फ में अदिति से इस प्रदर्शन की उम्मीद ही नहीं की थी, जैसे ही अचानक सोशल मीडिया पर अदिति अशोक का नाम वायरल होने लगा तो कई लाख लोगों को पता चला कि गोल्फ में भी पदक मिलने की प्रबल संभावनाएं जग गई हैं। गोल्फ ना समझने वाले कई लोगों ने अपने टेलीविजन सेट ऑन कर लिए। भारतीय महिला हॉकी टीम की तरह अदिति ने बिना मेडल के कमाल कर दिया।
3. महिला हॉकी टीम- हारकर भी जीतीं
भारतीय महिला हॉकी टीम के लिए यह ओलंपिक कायापलट करने वाला रहा। यह सही मायनों में कबीर खान की फिल्म 'चक दे इंडिया' जैसी स्टोरी हो गई जहां पर भारतीय महिला हॉकी टीम ने रानी रामपाल के नेतृत्व में शुरुआत बहुत ही खराब की, लेकिन उसके बाद किसी परीकथा सरीखा सफर चल पड़ा। महिला हॉकी टीम अपने पहले ही मैच में नीदरलैंड के हाथों हारी, फिर उनको अगले ही मुकाबले में जर्मनी ने हराया और तीसरे मैच में ग्रेट ब्रिटेन ने हराया।
लगातार हार की हैट्रिक बनाने के बाद भारतीय महिला हॉकी टीम का सफर तकरीबन समाप्त होने को ही था लेकिन अभी भी ग्रुप के दो मुकाबले बचे थे। महिला हॉकी ने अगले 2 मुकाबले आयरलैंड और साउथ अफ्रीका के खिलाफ खेले और बेहतरीन जीत दर्ज की। इस ग्रुप में ऐसा फेरबदल हुआ कि किस्मत ने महिला हॉकी टीम की एंट्री क्वार्टर फाइनल में कराई जहां उनका मुकाबला बहुत मजबूत ऑस्ट्रेलिया के साथ था। यह मैच एकतरफा माना जा रहा था लेकिन यहां पर रानी रामपाल की टीम ने 1-0 से जीत दर्ज करके इतिहास रच दिया।
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भारतीय टीम ने सेमीफाइनल में अर्जेंटीना के खिलाफ भी बहुत अच्छा मुकाबला किया लेकिन वह 1-2 से यह मैच हार गए। इसके बाद कांस्य पदक के लिए ग्रेट ब्रिटेन की टीम से मुकाबला था जिन्होंने भारत को पहले ही ग्रुप की स्टेज में हरा दिया था। यह इतना जबरदस्त मैच था कि भारतीय महिला हॉकी टीम मैच में 0-2 से पिछड़ने के बावजूद 3-2 की लीड लेने में कामयाब रही लेकिन यह आखिर के कुछ क्षण थे जब ग्रेट ब्रिटेन ने वापसी की और 4-3 की लीड ले ली जो बाद में निर्णायक साबित भी हुई।
इस मैच में ग्रेट ब्रिटेन ने आखिर तक चैन की सांस नहीं ली क्योंकि भारतीय महिला टीम ने अंग्रेजों को बहुत जबरदस्त टक्कर दी थी। इस हार से भारतीय महिला टीम का दिल टूट गया लेकिन बाद में लेकिन पूरा देश जानता था कि उन्होंने क्या किया है। भारतीय महिला हॉकी टीम ने पहली बार ओलंपिक के इतिहास में सेमीफाइनल मुकाबले में पहुंचने में कामयाबी हासिल की और वे पदक से बहुत ही मामूली अंतर से चूक गई।
2. भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने सबको भावुक कर दिया-
भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने अपने सुनहरे इतिहास में एक शानदार पेज जोड़ दिया। 1980 के बाद से हमने हॉकी में पहली बार ओलंपिक मेडल जीता और पूरे देश में उस दिन जो भावनाएं थी वह देखने लायक थी। अपने राष्ट्रीय खेल की ओलंपिक में वापसी होते देखना सभी देशवासियों के लिए एक भावुक पल था। क्रिकेट की कई जीते होती रहती हैं, भारतीयों गेंद-बल्ले के इस खेल को अपने गले से लगाया है, लेकिन हॉकी हमारे दिल का मामला है।
यहां पर मनप्रीत सिंह की टीम ने ब्रोंज मेडल जीतकर 41 साल का पदक का इंतजार खत्म किया। भारत ने पूल ए के मैच में न्यूजीलैंड के खिलाफ जीत से शुरुआत की लेकिन ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 1-7 से करारी हार का सामना करना पड़ा। स्पेन के खिलाफ हमारी बेहतरीन वापसी हुई और फिर अर्जेंटीना को भी हमने 3-1 से मात दी है। भारत ने अगले मुकाबले में जापान को मात देने के बाद क्वार्टर फाइनल में जगह बनाई जहां पर ग्रेट ब्रिटेन को 3-1 से पीट दिया गया। अब सेमीफाइनल में भारत का मुकाबला दुनिया की बहुत मजबूत टीम बेल्जियम से था जहां हम 2-5 से हार गए। अब ब्रॉन्ज मेडल के मुकाबले मजबूत जर्मनी से मैच था जहां पर हमने 5-4 से जीत दर्ज की और 41 साल के सूखे को खत्म किया। यह एक जबरदस्त मुकाबला था जिसमें भारतीय टीम विजेता बनकर उभरी और पूरा देश भाव-विभोर हो उठा।
1. पूरे देश का हीरो- नीरज चोपड़ा
23 साल के नीरज चोपड़ा ने भाला फेंक क्वालिफिकेशन प्रतियोगिता में पहला ही थ्रो ऐसा फेंका कि वे सीधा फाइनल के लिए अपना टिकट कटा गए। उन्होंने 86.65 मीटर का भाला फेंका था। नीरज ने इतना बेहतरीन भाला फेंकने के बाद भी कहा था कि वह जानते हैं फाइनल में और भी शानदार प्रयास करना होगा। नीरज फाइनल में ऐसा ही करते नजर आए जब उन्होंने पहले ही प्रयास में 87.03 मीटर का भला फेंका और फिर दूसरे अटेम्प्ट में 87.58 मीटर का भला फेंका जिसके चलते उनको गोल्ड मेडल मिला। यह भारतीय खेल के इतिहास में सबसे समान डिंपल है। हमने हॉकी में 8 बार गोल्ड मेडल जीते हैं लेकिन वे सब टीम के मिले-जुले प्रयास का नतीजा होते थे। अभिनव बिंद्रा ने व्यक्तिगत स्पर्धा में 2008 में पहली बार गोल्ड मेडल जीता था और हमने जाना था कि किस तरीके से इन इवेंट में गोल्ड मेडल आना बहुत बड़ी बात होती है। उसके बाद हमको लंबा इंतजार करना पड़ा लेकिन सबसे लंबा इंतजार हमने एथलेटिक्स में किया।
यह वही एथलेटिक्स है जिसमें किसी भारतीय खिलाड़ी को ओलंपिक पोडियम पर चढ़ते देखने का सपना लेकर मिल्खा सिंह जी इस दुनिया से विदा हो गए। यह वही एथलेटिक्स है जिसमें भारत सवा सौ के लंबे इंतजार के बाद भी अपने मेडल के लिए तरस रहा था। ब्रिटिश मूल के खिलाड़ी नॉर्मन प्रिचर्ड के एथलेटिक्स मेडल पर हम काफी इतराते थे लेकिन उसको लेकर भी विवाद बरकरार रहा। अब नीरज चोपड़ा ने सभी हर तरह के सपनों को नई उड़ान दे दी है। चोपड़ा ने भारत के लिए खेलों में बिल्कुल नया युग खोल दिया है। अभी यहां से भारतीय खेल आगे बढ़ने चाहिए और ओलंपिक में और भी पदक आने चाहिए जिसकी शुरुआत देश के हीरो नीरज चोपड़ा ने कर दी है।