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Tokyo 2020: डिप्रेशन से पार पाकर सुशीला देवी कैसे बनीं ओलंपिक में भारत की एकमात्र जुडोका

Tokyo olympics: Judoko Sushila Devi will be participating in her first Olympics | वनइंडिया हिंदी

नई दिल्लीः ओलंपिक काउंटडाउन शुरू हो चुका है और जूडो में भारत की एकमात्र चुनौती सुशीला देवी के लिए यह सपना पूरा होने जैसा है। उनके पिता इंटरनेशनल प्लेयर थे, जबकि भाई भी जूडो में नेशनल लेवल पर गोल्ड जीत चुके हैं। उनके चाचा, लिकमबम दीनित, जो एक अंतरराष्ट्रीय जूडो खिलाड़ी रहे हैं, दिसंबर 2002 में सुशीला को खुमान लम्पक ले गए। खुमान में, उन्होंने बहुत कम उम्र में प्रशिक्षण प्राप्त करना शुरू कर दिया था।

यह सुशीला के लिए पहला ओलंपिक है और वे 48 किग्रा कैटेगरी में कंपीट करेंगी, उनके पास 989 अंक थे जिसके चलते वे एशियन लिस्ट में 7वें नंबर पर थी। सुशीला को ओलंपिक में एंट्री कॉन्टिनेंटल कोटा के तहत मिली है जिसमें एशिया के पास 10 कोटा स्लॉट होते हैं।

पिछले एक महीने से फ्रांस में ट्रेनिंग ले रही सुशीला ने इंडिया टुडे से बात करते हुए बताया, मैं 5 या 6 साल की उम्र से ट्रेनिंग ले रही हूं। हंगरी में वर्ल्ड चैम्पियनशिप के बाद यह कैम्प मेरे लिए काफी फायदेमंद रहा है।"

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जुडोका सुशीला के करियर में उतार का वक्त तब आया जब 2018 में उनकी हैम्स्ट्रिंग मांसपेशी फट गई थी और वे कई अहम प्रतियोगिताओं में हिस्सा नहीं ले पाईं थीं। यह उनके लिए डिप्रेशन लेकर आया। उनको लगा करियर खत्म हो चुका है।

सुशीला को पिछले 11 साल से जीवन शर्मा ट्रेनिंग दे रहे हैं। उन्होंने जुडोका को मोटिवेट करने में अहम भूमिका निभाई और बताया की दुनिया खत्म नहीं हुई है। इंडिया टुडे के साथ विशेष बातचीत में सुशीला आगे बताती हैं, मेरे पिता कभी नहीं चाहते थे कि मैं जूडो प्लेयर बनूं। अगर मेरी मां का सपोर्ट नहीं होता तो मैं यहां पर नहीं होती। मैं अपनी मां के सपनों को पूरा कर रही हूं।"

2003 से 2010 तक सुशीला मणिपुर के इंफाल में ट्रेन हुईं और फिर पटियाला के एनआईएस में चली गईं। 2017 में सुशीला ने मणिपुर पुलिस को ज्वाइन कर लिया। भारत भले ही उनसे पदक की उम्मीद बहुत ज्यादा नहीं कर रहा है लेकिन ये सुशीला के लिए बड़ा अनुभव है। और अगर कोई अप्रत्याशित परिणाम सामने आया तो सुशीला का नाम देशवासियों पर जुबान पर होगा।

Story first published: Thursday, July 15, 2021, 14:59 [IST]
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